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मद्रास हाईकोर्ट का सरकारी स्कूलों के नामों से ‘आदिवासी’ शब्द हटाने का निर्देश कितना उचित

ज़हरीली शराब पीने से कल्लाकुरिची ज़िले की कलवरायण पहाडियों में हुई मौतों के मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति सी कुमारप्पन ने कहा कि यह दुखद है कि 21वीं सदी में भी सरकार सार्वजनिक पैसे से चलने वाले स्कूलों में ऐसे नामों के प्रयोग की अनुमति देती है.

मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को तमिलनाडु सरकार को राज्य के सरकारी स्कूलों के नामों से आदिवासी जैसे शब्द हटाने के लिए कार्रवाई शुरु करने का निर्देश दिया है.

मद्रास उच्च न्यायालय ने 10 जुलाई को, कल्लाकुरिची ज़िले की कलवरायण पहाडियों में ज़हरीली शराब पीने से कम से कम 47 लोगों की मौत के मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से इस इलाके के आदिवासियों की जीवन स्थिति पर रिपोर्ट मांगी थी.

लेकिन अदालत सरकार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से असंतुष्ट है. अदालत ने कहा, “आदि द्रविड़ और जनजातीय कल्याण विभाग द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट, हमारी राय में अपर्याप्त है और यह ज़मीनी हक़ीकत नहीं है.”

अदालत ने आगे कहा कि कलवरायण के पहाड़ी इलाके पर खर्च की गई धनराशि और स्थिति रिपोर्ट में दिए गए विवरण से ही शक पैदा होता है कि क्या इलाके के लोगों के विकास के लिए खर्च किए गए रुपयों का प्रयोग उचित ढंग से किया गया है.

इसी मामले की जाँच के दौरान अदालत के संज्ञान में लाया गया कि उस इलाके में पब्लिक स्कूल “सरकारी जनजातीय आवासीय विद्यालय” के नाम पर चल रहे हैं.

यह पता चलने के बाद अदालत ने सरकारी स्कूलों के नामों में से आदिवासी शब्द को हटाने का आदेश दिया है.

इस संबंध में तर्क देते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे नामों से स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के मन में यह भाव पैदा होगा कि वे आदिवासी स्कूल में पढ़ रहे हैं, न कि आस-पास के इलाके के दूसरे बच्चों जैसे स्कूलों में.

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति सी कुमारप्पन ने कहा कि यह दुखद है कि 21वीं सदी में भी सरकार सार्वजनिक पैसे से चलने वाले स्कूलों में ऐसे नामों के प्रयोग की अनुमति देती है.

जस्टिस सुब्रमण्यम और कुमारप्पन की बेंच ने कहा कि न्यायालयों और सरकार को किसी भी परिस्थिति में ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे बच्चों के मन में पक्षपात की भावना या इस तरह का कोई अन्य पूर्वाग्रह उत्पन्न हो.

अदालत ने आगे कहा कि जहाँ भी ऐसे नामों का इस्तेमाल किया जाता है जो किसी विशेष जाति को दर्शाते हैं, उन्हें हटाया जाना चाहिए और स्कूलों का नाम “सरकारी स्कूल” रखा जाना चाहिए.

पीठ ने यह भी कहा कि तमिलनाडु सामाजिक न्याय में अगुआ की भूमिका निभाता है और यह राज्य ऐसे शब्दों स्कूलों के नाम के आगे या पीछे जोड़े जाने की अनुमति नहीं दे सकता.

अदालत ने राज्य सरकार को इस सिलसिले में उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है.

अदालत के इस फैसले में बेशक आदिवासी समुदाय के लोगों के जीवन स्तर और उनके साथ भेदभाव की चिंता झलकती है. लेकिन स्कूलों के नाम से आदिवासी शब्द हटाए जाने के निर्देश पर अलग अलग राय हो सकती है.

अदालत को यह लगता है कि आदिवासी शब्द स्कूल के नाम में जोड़े जाने से छात्रों को यह लग सकता है कि वे एक ऐसे स्कूल में पढ़ रहे हैं जो अन्य स्कूलों से अलग है. लेकिन इससे ऐसा संदेश भी मिलता है जिससे लगता है कि आदिवासी शब्द अपमानजनक है.

जबकि देश के अलग अलग राज्यों में यह देखा जा रहा है कि जनजातीय समुदाय आदिवासी शब्द को अपनी पहचान और अधिकार के तौर पर देखते हैं.

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