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पैरों तले लोहे का विशाल भंडार, लेकिन आदिवासियों को मिलती सिर्फ़ बीमारी और मौत

खनन कंपनी चाहे इस ज़मीन से जितना भी पैसा कमा रही हो, लेकिन इलाक़े में रहने वाले आदिवासियों के जीवन में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है. बल्कि उनकी ज़िंदगी बदतर ही हई है.

पिछले कुछ महीनों से ओडिशा की सबसे बड़ी लोहे की खदानों (Iron Ore Mine) में से एक, क्योंझर की गंधमर्दन खदानों के पास बसे रूगुदिसाही और दूसरे आदिवासी गांव के निवासी खांसी और बुखार से पीड़ित हैं.

एक हफ़्ते पहले बस्ती के एक आदमी की मौत भी हुई. मौत से पहले 25 साल के रायबारी मुंडा का तेज़ी से वज़न घटा. रायबारी के 46 साल के पड़ोसी ताला मुंडा की भी कुछ महीने पहले ऐसे ही हालात में मौत हुई थी.

उप्पार कैंसरी गांव में 2020 से अब तक ऐसे लक्षणों के साथ 10 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि पास के एक दूसरे गांव सालारापेंथ में ऐसी दो मौतें हुई हैं.

हालांकि ज़िला मुख्यालय अस्पताल सिर्फ़ 15 किमी दूर है, लेकिन अधिकांश ग्रामीण इलाज के लिए जाने में एक दिन की मज़दूरी खोना लाज़िमी नहीं समझते.

इन गांवों के पास, ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन (ओएमसी) के बड़े-बड़े earth excavator रोज़ ज़मीन से आयरन ओर निकालते हैं. ओएमसी के पास गंधमर्दन खदानों का पट्टा है, और वो राज्य की सबसे ज़्यादा प्रॉफ़िट कमाने वाली पब्लिक सेक्टर कंपनी है.

खनन कंपनी चाहे इस ज़मीन से जितना भी पैसा कमा रही हो, लेकिन इलाक़े में रहने वाले आदिवासियों के जीवन में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है. बल्कि उनकी ज़िंदगी बदतर ही हई है. कंपनी ने पिछले पांच सालों में गंधमर्दन खदानों से 5,000 करोड़ रुपये का आयरन ओर निकाला है.

इलाक़े की एक आदिवासी महिला, सुकुरमणि ने द हिंदु से बातचीत में कहा, “हम पूरे साल सिर्फ़ पाखला पर ही जीवित रहते हैं. इसके अलावा जो एकमात्र व्यंजन हम खरीद सकते हैं, वह है अरुम के पत्ते.”

इन आदिवासियों ने पैरों तले भले ही एक लोहे का विशाल भंडार है, लेकिन रुगुदिसाही के ग्रामीण अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में भी असमर्थ हैं. गांव में एक आंगनबाडी तक नहीं है. इस साल, रुगुदिसाही के छह बच्चे स्कूल छोड़ने को मजबूर हुए, और अब वो बकरियां पालते हैं.

जिस नदी के पानी पर पूरा गांव निर्भर है, उसमें आमतौर पर आयरन ओर की धूल मिली रहती है, तो पानी भूरे रंग का होता है.

प्रदूषण की चिंता

सुरक्षित पेयजल तक पहुंच की कमी और खनन की वजह से होने वाला प्रदूषण, लोगों के जल्दी मरने की मुख्य बजहें हैं. ज़िले में आयरन ओर खदानों के आसपास रहने वाले आदिवासी परिवारों में असमय मौत आजकल आम बात है.

क्योंझर के विधायक मोहन मांझी का कहना है कि उन्होंने ज़िला प्रशासन से ग्रामीणों के इलाज के लिए मोबाइल स्वास्थ्य यूनिट भेजने का अनुरोध किया था, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. उनका आरोप है कि एक तरफ़ सरकारी खज़ाने भरे जा रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है.

क्योंझर के मुख्य ज़िला चिकित्सा अधिकारी अशोक कुमार दास का दावा है कि यह गांव जिला स्वास्थ्य प्रशासन के विशेष ध्यान में हैं. उनका यह भी दावा है कि आदिवासी लोगों द्वारा शराब का ज़्यादा सेवन उनकी मौतों के पीछे एक वजह हैं. वो यह भी कहते हैं कि जागरुकता की कमी आदिवासियों को अस्पतालों तक जाने से रोकती है.

आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन अफ़सोस जताते हैं कि क्योंझर में खनन कंपनियों को मिलने वाले लाभ का एक छोटा सा हिस्सा भी ज़िले के सबसे ग़रीब लोगों तक नहीं पहुंचता है.

क्योंझर सिटीजन फोरम के अध्यक्ष किरण शंकर साहू कहते हैं, “2017 में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के लिए खनन कंपनियों पर जुर्माना लगाया. इसके लिए Odisha Mineral Bearing Areas Development Corporation ने 17,000 करोड़ रुपए का एक फ़ंड बनाया. इस फ़ंड को खनन प्रभावित लोगों पर ही खर्च किया जाना अनिवार्य कहा गया. लेकिन, फंड की एक बड़ी राशि अभी तक इस्तेमाल नहीं की गई है.”

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