झारखंड की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर निशाना साधा है.
पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता विनोद कुमार पांडेय ने कहा कि बीजेपी एक ओर आदिवासी नायकों को सम्मान देने का दिखावा करती है, वहीं दूसरी ओर उनके आदर्शों और इतिहास का लगातार अपमान कर रही है.
उन्होंने कहा कि बीजेपी को झारखंड के महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों पर टिप्पणी करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है क्योंकि बीजेपी ने अपने कार्यकाल में आदिवासी समाज की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया.
जल, जंगल, जमीन को कॉरपोरेट के हवाले करने की साज़िश
जेएमएम ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार ने सत्ता में रहते हुए जल, जंगल और जमीन जैसी बहुमूल्य प्राकृतिक संपत्तियों को कॉरपोरेट घरानों के हवाले करने की कोशिश की. जेएमएम ने 2017 में लाए गए भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक को इसका बड़ा उदाहरण बताया.
झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता का कहना है कि 2017 में लाए गए भूमि अधिग्रहण कानून के ज़रिए आदिवासियों से बिना सहमति के उनकी ज़मीन छीनने की कोशिश की गई थी. लेकिन जेएमएम और आदिवासी समाज के संघर्ष के कारण यह कानून पूरी तरह लागू नहीं हो पाया.
जेएमएम ने कहा कि बीजेपी ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाने की पहल जरूर की, लेकिन यह कदम महज़ एक प्रतीक बनकर रह गया.
ज़मीनी स्तर पर आदिवासी समाज के लिए कोई ठोस योजना या नीति सामने नहीं आई. सरकार की नीतियाँ आदिवासियों के अधिकारों को मज़बूत करने के बजाय उन्हें कमज़ोर करने वाली साबित हुईं हैं.
इतिहास से न सीखने वाली पार्टी है बीजेपी: जेएमएम
जेएमएम ने कहा कि झारखंड की माटी ने सिदो कान्हू, तिलका मांझी, वीर बुधु भगत जैसे योद्धा दिए जिन्होंने औपनिवेशिक शोषण और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया.
आज उन्हीं नायकों की विरासत को बीजेपी ओछी राजनीति में इस्तेमाल कर रही है जबकि उनके सिद्धांतों को ठुकरा रही है.
जेएमएम ने कहा कि 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बीजेपी को करारी हार मिली है. यह साबित करता है कि झारखंड की जनता अब बीजेपी की चालों को पहचान चुकी है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जेएमएम ने हमेशा आदिवासी हितों को प्राथमिकता दी है और आगे भी देती रहेगी.
पांडेय ने साफ कहा, “बीजेपी की दिखावटी नीतियों और दोहरे चरित्र को जनता के सामने लाते रहेंगे. हमारा संघर्ष आदिवासी समाज के सम्मान, स्वाभिमान और अधिकारों की रक्षा के लिए है.”
उन्होंने झारखंड की जनता से अपील की कि वे एकजुट होकर अपने इतिहास, पहचान और संस्कृति की रक्षा करें और ऐसे दलों के बहकावे में न आएँ जो सिर्फ सत्ता के लिए आदिवासी नामों का इस्तेमाल करते हैं.