तमिलनाडु में पहली बार किसी आदिवासी समुदाय को अपनी कृषि उपज के लिए जैविक प्रमाणीकरण (organic certification) दिया गया है.
अगस्तियार, सेर्वलार, चिन्ना मयिलार और पेरिया मयिलार बस्तियों में रहने वाले काणी आदिवासी समुदाय के लोगों को यह सर्टिफ़िकेशन मिला है. यह आदिवासी सेर्वलार और पापनासम बांधों के पास घने जंगलों के अंदर रहते हैं.
यह लोग जंगल में नींबू, केला, कटहल, टैपिओका, काजू, नारियल, हरा चना, काली मिर्च, अनानास, आम और बादाम उगाते हैं. इसके अलावा लघु वनोपज जैसे शहद, आंवला, तेजपत्ता, अंजीर और जामुन जंगल से इकट्ठा करते हैं, ताकि उसे अपनी और आसपास की बस्तियों में बेच सकें.
यह आदिवासी पिछले कई दशकों से प्राकृतिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग करके कई तरह के कृषि उत्पादों की खेती कर रहे हैं. यह लोग रासायनिक उर्वरकों और हानिकारक कीटनाशकों का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करते.
लेकिन इन जैविक उत्पादों को बेचने का फ़ायदा उन्हें नहीं मिलता, क्योंकि इन उत्पादों के लिए जैविक प्रमाणीकरण उन्हें अब तक नहीं मिला था.
हालात तब सुधरे जब यहां के कलेक्टर वी विष्णु पिछले हफ़्ते मैदानी इलाकों में अपने कृषि उपज ले जाने के लिए, इन आदिवासियों को एक मिनी-कार्गो वाहन भेंट करने के लिए मिले. आदिवासियों के साथ बातचीत के बाद उन्होंने ऑर्गैनिक सर्टिफ़िकेशन के लिए ज़रूरी कागज़ दिलाने का ज़िम्मा उठाया.
कैसे मिला सर्टिफ़िकेशन
मयिलार काणी कुडियिरुप्पु इको डेवलपमेंट कमेटी की ओर से नेशनल प्रोग्राम फ़ॉर ऑर्गैनिक प्रोडक्शन स्टैंडर्ड्स और स्विस ऑर्गैनिक फार्मिंग ऑर्डिनेंस को ऑर्गैनिक सर्टिफिकेशन के लिए एक आवेदन भेजा गया.
इसके बाद कोयंबत्तूर स्थित तमिलनाडु जैविक प्रमाणन विभाग ने जगह और उत्पादों का निरीक्षण कर, और 25 जून, 2021 से 24 जून, 2022 तक एक साल के लिए सर्टिफ़िकेट जारी किया.
सर्टिफ़िकेट की वैधता सभी ज़रूरी मानकों के निरंतर अनुपालन पर निर्भर करती है, और वार्षिक निरीक्षण के अधीन है.
कलेक्टर वी विष्णु ने कहा कि यह सर्टिफ़िकेट पिछले कई दशकों से काणी लोगों की ईमानदारी, और कड़ी मेहनत के लिए एक गर्व का पल है. अब इन आदिवासियों के 40 कृषि उत्पाद जैविक प्रमाणीकरण के साथ उपलब्ध होंगे, जिससे उन्हें बेहतर कीमत मिलेगी.