केरल के तिरुवनंतपुरम में चार दिनों में चार आदिवासी लोगों ने आत्महत्या की. जिसमें दो पुरुष और दो महिलाएं थीं और सभी की उम्र 30 से कम थी.
दो हफ्ते पहले पालोडे की नवविवाहिता इंदुजा की मृत्यु तिरुवनंतपुरम में आदिवासी लोगों में आत्महत्याओं में ख़तरनाक वृद्धि का एक संकेत है.
उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, इस वर्ष यानि साल 2024 में अकेले इस जिले में 23 आदिवासी निवासियों ने अपनी जान दे दी, जिनमें से पांच कम उम्र की महिलाएं थीं.
25 वर्षीय इंदुजा, एक कानी जनजाति (Kani tribe) की सदस्य थी, जिसने समुदाय से बाहर शादी करने का फैसला किया था. उसने कथित तौर पर घरेलू दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के दुष्चक्र में फंसने के बाद 6 दिसंबर को यह गलत कदम उठाया.
इसके बाद अगले तीन दिनों में तीन और आत्महत्याएं हुईं. 7 दिसंबर को इडिंजर के 20 वर्षीय अजित ने; 8 दिसंबर को इलावट्टोम की 19 वर्षीय नमिता ने और 9 दिसंबर को अलुममूडु के 30 वर्षीय विष्णु ने आत्महत्या की.
यह पहली बार नहीं है जब राज्य की राजधानी में आदिवासी लोगों द्वारा आत्महत्या की गई हो. मोटे अनुमान के मुताबिक, साल 2011 से 2022 के बीच जिले में करीब 138 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिनमें से ज़्यादातर पेरिंगमला पंचायत में हुईं.
अब आत्महत्याओं का सिलसिला तिरुवनंतपुरम के बाहरी इलाकों में आदिवासी बस्तियों में फिर से शुरू हो गया है.
आत्महत्या करने वालों में से ज़्यादातर 20-30 आयु वर्ग के थे. उनके परिवारों और आदिवासी कार्यकर्ताओं के मुताबिक, बहुत ज्यादा सामाजिक परिदृश्यों के कारण भारी तनाव, समुदाय के बाहर विवाह और रिश्तों के कारण दबाव और उत्पीड़न, साथ ही बढ़ते शराब के धंधे, मौतों के कारण हैं.
इंदुजा के पिता शशिधरन कानी ने का कहना है कि वे (इंदुजा और उनके पति अभिजीत) साथ-साथ पढ़ते थे. शादी के बाद वह बहुत दबाव में थी. उसका परिवार हम आदिवासियों को अपने घर में घुसने नहीं देता था. वे शादी को रजिस्टर करवाने के भी अनिच्छुक थे. मेरी बेटी की हत्या कर दी गई. किसी दूसरे परिवार को यह दर्द नहीं सहना पड़े.
आदिवासी महासभा के अध्यक्ष मोहनन त्रिवेणी ने कहा कि 2023 में इन बस्तियों में पांच से अधिक आदिवासी लोगों की आत्महत्या से मृत्यु हो गई.
उन्होंने कहा कि मृत्यु की संख्या आदिवासी क्षेत्र में चल रहे शराब और सेक्स रैकेट के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है. हमारे बच्चे बाहर जाते हैं, दूसरों से मिलते-जुलते हैं, दूसरे समुदायों के लोगों से प्यार करते हैं और उत्पीड़न का सामना करते हैं. ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण मौतों को रोकने के लिए सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.
जबकि राज्य सरकार मिश्रित विवाह (अन्य समुदायों से) को बढ़ावा देती है.
लेकिन आदिवासी कार्यकर्ताओं का मानना है कि इससे आदिवासी लोगों द्वारा आत्महत्याओं को रोकने में कोई मदद नहीं मिली है.
आदिवासी कांग्रेस मंडलम के अध्यक्ष अभिमन्यु, जिन्होंने सितंबर में अपनी बेटी अनामिका को खो दिया था.
उन्होंने कहा, “हमारी लड़कियों को प्यार के नाम पर बाहर के युवाओं द्वारा बहकाया जा रहा है. मेरी बेटी सिर्फ 18 साल की थी और प्लस-टू की छात्रा थी. दूसरे समुदाय के एक लड़के ने प्यार के नाम पर उसे बहकाया और हमने अपनी बच्ची खो दी.”
आदिवासी कार्यकर्ताओं का मानना है कि खासकर आदिवासी युवा सांस्कृतिक भ्रम के कारण तनाव का सामना करते हैं.
उनका कहना है कि आदिवासियों की युवा पीढ़ी में भ्रम है क्योंकि वे अपने प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में नहीं पले-बढ़े हैं जो बुजुर्गों के बीच मौजूद है. वे छात्रावास जाते हैं और बाहरी दुनिया से सीखते हैं. इससे भ्रम पैदा होता है और अस्तित्व संबंधी दुविधा पैदा होती है.
इसीलिए उच्च शिक्षा के लिए चुने गए आदिवासी छात्रों में पढ़ाई छोड़ने की दर लगातार बढ़ रही है. वे मुख्यधारा के समाज के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते. शराब की लत जैसी समस्याएं भी इसमें योगदान देती हैं.