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महाराष्ट्र के पालघर ज़िले में पलायन से बचने के लिए सेनिटरी पैड बना रही आदिवासी महिलाएं

नीवजीवन फाउंडेशन संगठन के निदेशक प्रोटीक कुंडू ने कहा कि कातकरी समुदाय की महिलाएं आमतौर पर साल में आठ महीने अपने घरों से दूर रहती हैं. ऐसे में उन्हें उन व्यवसायों से परिचित कराने के लिए परियोजना शुरू की गई थी, जिसे वे काम के लिए इधर-उधर जाए बिना कर सकती थीं.

महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल पालघर ज़िले में माहवारी के बारे में बात करना अच्छा नहीं माना जाता है. लेकिन दाभोन गांव के कातकरी समुदाय की महिलाओं के लिए सेनिटरी पैड बनाना स्थायित्व और सतत आय के स्रोत की गारंटी है.

कातकरी समुदाय की महिलाओं को ‘प्रिमिटिव वल्नरेबल’ आदिवासी समूह (PVTG) की श्रेणी में रखा गया है. यह महिलाएं आमतौर पर राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर ईंट भट्ठों या खेत में काम करती हैं. लेकिन एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना (ITDP) के तहत जारी एक पहल ने उन्हें एक स्थान पर रहकर आजीविका कमाने का अवसर प्रदान किया है.

दहानु की सब डिविजनल मजिस्ट्रेट असीमा मित्तल के दिमाग की उपज इस परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार के मानव विकास मिशन के जरिए पैसा दिया जा रहा है और आईटीडीपी, दहानू द्वारा इसे क्रियान्वित किया जा रहा है.

आईटीडीपी, दहानु की प्रमुख असीमा मित्तल ने कहा, “कातकरी समुदाय की महिलाएं काम के लिए एक जगह से दूसरे जगह पर जाती थीं. हमने उन्हें ट्रेनिंग दी और अब उन्होंने सेनिटरी नैपकिन बनाना शुरू कर दिया है तो हमें उम्मीद है कि उनके जीवन में बड़ा बदलाव आएगा.”

उन्होंने कहा कि गैर-सरकारी संगठन (NGO) नवजीवन फाउंडेशन ने इन महिलाओं को जैविक तरीके से नष्ट होने वाले सेनिटरी पैड बनाने की प्रक्रिया सिखाने के लिए छह महीने तक ट्रेनिंग दी है. उन्होंने कहा कि ये महिलाएं ‘प्रगति’ नामक ब्रांड के तहत सेनिटरी पैड बना रही हैं.

अधिकारी ने कहा कि अभी 10 महिलाएं यह काम कर रही हैं और ज़िले के अन्य हिस्सों में इस परियोजना को विस्तार देने के बाद कई और महिलाओं के इससे जुड़ने की उम्मीद है.

नीवजीवन फाउंडेशन संगठन के निदेशक प्रोटीक कुंडू ने कहा कि कातकरी समुदाय की महिलाएं आमतौर पर साल में आठ महीने अपने घरों से दूर रहती हैं. ऐसे में उन्हें उन व्यवसायों से परिचित कराने के लिए परियोजना शुरू की गई थी, जिसे वे काम के लिए इधर-उधर जाए बिना कर सकती थीं.

कुंडू ने कहा, “आईटीडीपी दहानु के सक्रिय समर्थन से हमने महिलाओं के साथ जुड़ना शुरू किया और उन्हें विभिन्न व्यवसायों से परिचित कराया. वास्तव में, मासिक धर्म स्वच्छता से संबंधित चुनौतियों और इस दौरान उनके सामने आने वाली अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण वे स्वयं सैनिटरी पैड बनाने के विचार के साथ आई थीं.”

फाउंडेशन ग्रामीण महाराष्ट्र में स्थित आदिवासी महिलाओं और युवाओं के लिए स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ काम करता है ताकि उन्हें काम की तलाश में शहरों की ओर पलायन न करना पड़े.

कुंडू ने कहा कि महिलाओं को टीम वर्क, संभावित ग्राहकों की पहचान करने, बाजार सर्वेक्षण करने, उत्पादों के मूल्य निर्धारण और उन्हें विपणन, खातों और अन्य अवधारणाओं के बीच बही-खाते की ट्रेनिंग दी गई.

उन्होंने कहा कि आईटीडीपी के फंड का इस्तेमाल छोटे पैमाने पर उद्यम शुरू करने के लिए मशीनों, कच्चे माल, पैकेजिंग सामग्री और अन्य संबंधित बुनियादी ढांचे को खरीदने के लिए किया गया था.

कुंडू ने कहा, “हमें पूरी उम्मीद है कि यह परियोजना महिलाओं और उनके सहयोगियों के इस समूह को उनके गांव में बसने और शहरों में उनके प्रवास को रोकने में मदद करेगी.”

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