HomeAdivasi Daily‘विकसित' गुजरात के आदिवासी इलाकों में कुपोषित बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी

‘विकसित’ गुजरात के आदिवासी इलाकों में कुपोषित बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी

सरकार से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, अहमदाबाद में 'कम वजन' के 1 हज़ार 739 बच्चे हैं, जबकि 497 बच्चे 'गंभीर रूप से कम वजन' के हैं. वहीं दाहोद में 13 हज़ार 225 बच्चे 'कम वजन' और 5 हज़ार 101 'गंभीर रूप से कम वजन' के हैं.

‘विकसित राज्य’ माने जाने वाले गुजरात में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है. कोविड-19 महामारी के दौरान गुजरात में कुपोषित बच्चों की संख्या में चौंकाने वाली वृद्धि दर्ज की गई है. कुपोषित वृद्धि शहरी क्षेत्रों की तुलना में आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में काफी ज्यादा है.

कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी द्वारा विधानसभा में उठाए गए एक सवाल के जवाब में महिला और बाल कल्याण मंत्री, विभावरीबेन दवे ने राज्य विधानसभा को सूचित किया कि अहमदाबाद जिले में 2236 के मुकाबले आदिवासी जिले दाहोद में 18 हज़ार 326 कुपोषित बच्चे हैं.

दाहोद में 18 हज़ार 326 कुपोषित बच्चे 0-6 वर्ष की आयु के हैं. दाहोद में कुपोषित बच्चों की संख्या अहमदाबाद से आठ गुना अधिक है.

इसके अलावा डांग जिले में पिछले दो वर्षों में 575 कुपोषित बच्चे मिले हैं जबकि नर्मदा जिले में कुल 2 हज़ार 443 कुपोषित बच्चे हैं. दशोद, नर्मदा और डांग जिलों में बहुसंख्यक आदिवासी आबादी है.

सरकार से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, अहमदाबाद में ‘कम वजन’ के 1 हज़ार 739 बच्चे हैं, जबकि 497 बच्चे ‘गंभीर रूप से कम वजन’ के हैं. वहीं दाहोद में 13 हज़ार 225 बच्चे ‘कम वजन’ और 5 हज़ार 101 ‘गंभीर रूप से कम वजन’ के हैं.

सरकार ने हालांकि कुपोषित बच्चों में वृद्धि के लिए कोविड-19 को जिम्मेदार ठहराया है और कहा कि “क्योंकि ज्यादातर आंगनवाड़ी केंद्र (भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक प्रकार का ग्रामीण बाल देखभाल केंद्र) मार्च 2020 को बंद कर दिया गया था और फिर दोबारा फरवरी 2022 से खोला गया. महामारी के कारण वर्तमान में यह पता लगाना असंभव है कि कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है या घटी है.”

लेकन दाहोद और बाकी आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सरकार से असहमत हैं.

खाद्य सुरक्षा अभियान की गुजरात संयोजक नीता हार्डिकर के मुताबिक, “सरकार को यह समझना चाहिए कि भौगोलिक कारकों का जनजातीय क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. आंगनबाड़ी केंद्र चाहे खुले हों या बंद, आदिवासी इलाकों के लोगों को आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुंचने में दिक्कत होती है. विशेष रूप से जब परिवार के अधिकांश सदस्य दिहाड़ी मजदूर हो, काम पर जाते हो तो बच्चों को देखने के लिए छोड़ दिया गया एक व्यक्ति उन्हें आंगनवाड़ी केंद्रों तक नहीं ले जा पाएगा.”

उन्होंने आगे कहा, “कोविड-19 के बाद लोगों को सबसे ज्यादा नुकसान उनके रोजगार का हुआ है. ज्यादातर लोगों की नौकरी चली गई है और जिनके पास नौकरी है उनकी सैलरी काटकर मिल रही है. इसका सीधा असर खान-पान पर पड़ा है. यह चक्र लगातार गंभीर होता जा रहा है.  यह बहुत गंभीर स्थिति है. क्योंकि कुपोषण कार्य क्षमता को कम करता है और कार्य क्षमता कम होने से आजीविका प्रभावित होती है. सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए.”

गुजरात जैसे विकसित राज्य से आदिवासी बच्चों में कुपोषण के बढ़ने की ख़बर चौंकाने वाली होने के साथ साथ चिंता की बात भी है. गुजरात ही नहीं हाल ही में महाराष्ट्र और दक्षिण में तमिलनाडु और केरल जैसे विकसित राज्यों से भी आदिवासी समुदाय के बच्चों में कुपोषण बढ़ने की ख़बरें आई हैं.

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