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मणिपुर हिंसा: इंफाल पश्चिम में गोलीबारी, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगी अपडेटेड स्टेटस रिपोर्ट

मणिपुर के पिछले दो महीने से हिंसा प्रभावित रहने के कारण राज्य में आर्थिक गतिविधियां लगभग ठहर सी गई हैं, जिसका सीधा प्रभाव कारोबारी समुदाय पर पड़ा है. राज्य में कई उद्यमियों ने सोमवार को कहा कि तीन मई को शुरू हुई हिंसा के बाद से कारोबारी समुदाय के अलावा, समाज के सभी वर्ग प्रभावित हुए हैं और उनकी आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं.

मणिपुर में जातीय हिंसा भड़के दो महीने हो चुके हैं लेकिन हालात वैसे ही तनावपूर्ण बने हुए हैं. आए दिन सिलसिलेवार हिंसा की घटनाएं देखने को मिल रही हैं. और राज्य सरकार अब तक इसे रोकने में नाकामयाब साबित हुई है.

इस बीच ताज़ा गोलीबारी की घटना इंफाल पश्चिम में देखने को मिली है. अधिकारियों ने कहा कि सोमवार को इंफाल पश्चिम जिले में दो समूहों के बीच गोलीबारी हुई. उन्होंने बताया कि घटना शांतिपुर गांव के पास हुई.

हालांकि, अधिकारियों ने बताया कि किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं है. अधिकारियों का कहना है कि स्थिति से निपटने के लिए इलाके में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगी रिपोर्ट

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने आज मणिपुर हिंसा को लेकर राज्य सरकार से अपडेटेड स्टेटस रिपोर्ट मांगी है. साथ ही कोर्ट ने मणिपुर सरकार से राज्य में जातीय हिंसा को रोकने के लिए उठाए गए कदमों, बेघर और हिंसा प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास शिविरों के लिए उठाए गए कदमों, बलों की तैनाती और कानून व्यवस्था की स्थिति पर भी विस्तृत स्थिति रिपोर्ट मांगी है.

अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 10 जुलाई को तय की है.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मुद्दे पर सुनवाई की.

मणिपुर हिंसा पर केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्य में स्थिति में धीरे-धीरे ही सही, सुधार हो रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मणिपुर सरकार को जातीय हिंसा प्रभावित राज्य में पुनर्वास सुनिश्चित करने और कानून एवं व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी वाली स्थिति पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.

सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से पीठ ने स्थिति की रिपोर्ट दाखिल करने को कहा. पीठ ने कहा, ‘‘इसमें पुनर्वास शिविरों, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाए गए कदम और हथियारों की बरामदगी जैसे विवरण होने चाहिए.’’

एक संक्षिप्त सुनवाई में, शीर्ष विधि अधिकारी ने सुरक्षा बलों की तैनाती और कानून व्यवस्था की हालिया स्थिति का विवरण दिया. उन्होंने कहा कि राज्य में कर्फ्यू की अवधि अब 24 घंटे से घटाकर पांच घंटे कर दी गयी है.

मेहता के मुताबिक, राज्य में पुलिस, इंडियन रिजर्व बटालियन और सीएपीएफ की 114 कंपनियां भी तैनात हैं.

उन्होंने कहा कि कुकी समूहों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेज़ को चाहिए कि वह मामले को ‘‘सांप्रदायिक रंग’’ नहीं दें.

गोंजाल्वेज़ ने तर्क दिया कि उग्रवादी एक समाचार कार्यक्रम में आए और कहा कि वे ‘‘कुकी समूहों का सफाया कर देंगे’’ लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. उन्होंने आरोप लगाया कि कुकी समूहों के खिलाफ हिंसा ‘‘राज्य द्वारा प्रायोजित’’ थी.

शीर्ष अदालत के पास मणिपुर की स्थिति को लेकर कई याचिकाएं हैं. इनमें सत्तारूढ़ भाजपा के एक विधायक द्वारा दायर याचिका शामिल है जिसमें मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है. एक अन्य याचिका में पूर्वोत्तर राज्य में हुई हिंसा की जांच एसआईटी (विशेष जांच दल) से कराने की मांग की गई है. यह याचिका एक आदिवासी गैर सरकारी संगठन की ओर से दायर की गई है.

गैर सरकारी संगठनों में से एक, ‘मणिपुर ट्राइबल फोरम’ ने मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के लिए सेना सुरक्षा और उन पर हमला करने वाले सांप्रदायिक समूहों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है.

जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली अवकाश पीठ ने 20 जून को याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि यह कानून और व्यवस्था का मुद्दा है जिसे प्रशासन को देखना चाहिए.

एनजीओ की ओर से पेश गोंजाल्वेज़ ने कहा कि प्रदेश सरकार के आश्वासन के बावजूद राज्य में जातीय हिंसा में 70 आदिवासी मारे गए हैं.

सॉलीसिटर जनरल ने तत्काल सुनवाई के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा था कि सुरक्षा एजेंसियां हिंसा रोकने और सामान्य स्थिति बहाल करने की पूरी कोशिश कर रही हैं.

उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश से संबंधित मुख्य मामला शीर्ष अदालत द्वारा 17 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.

हिंसा से कारोबार प्रभावित

वहीं पिछले दो महीने से हिंसा प्रभावित रहने के कारण राज्य में आर्थिक गतिविधियां लगभग ठहर सी गई हैं, जिसका सीधा प्रभाव कारोबारी समुदाय पर पड़ा है. राज्य में कई उद्यमियों ने सोमवार को कहा कि तीन मई को शुरू हुई हिंसा के बाद से कारोबारी समुदाय के अलावा, समाज के सभी वर्ग प्रभावित हुए हैं और उनकी आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं.

पूर्वोत्तर के बाहर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में लंबे समय तक सेवा देने के बाद मणिपुर लौटे प्रमुख कारोबारी अब अपने गृह राज्य में समय और पैसा लगाने के फैसले पर अफसोस कर रहे हैं.

आईटी कंपनी एड्डल सोल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक याइकहोम्बा निंगथेमचा ने कहा, ‘‘अत्यधिक प्रभाव पड़ा है. लगभग हर कोई प्रभावित हुआ है. तीन मई से पहले जीवन सामान्य था. पिछले कुछ वर्षों में हम प्रगति के पथ पर थे. कारोबार फल-फूल रहे थे, कोविड-19 के प्रभाव से उबरने के बाद लोग रोजमर्रा के जीवन में आगे बढ़ रहे थे.’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसके बाद यह (जातीय झड़पें) हुईं. अब हमारा जीवन बदल गया और लोगों के कारोबार करने का तरीका बदल गया है. असल में, इसने हमें कुछ साल पीछे कर दिया है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘सभी सामान्य लेनदेन रुकने के अलावा, इंटरनेट पर निर्भर कारोबार थम गया है. हमें अपने लोन की अदायगी के लिए इंटरनेट की जरूरत है. उपभोक्ता हमें भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. हम समय पर जीएसटी (माल एवं सेवा कर) का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं.’’

निंगथेमचा पिछले 15 वर्षों से बेंगलुरु में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत थे और वह अपना कारोबार शुरू करने के लिए 2018 में अपने गृहनगर लौटे थे.

3 मई से जारी है हिंसा

मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की जब मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च आयोजित किया गया था.

मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. जनजातीय नगा और कुकी आबादी का हिस्सा 40 प्रतिशत है और वे पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

दरअसल, मणिपुर हाई कोर्ट के 27 मार्च को दिए गए आदेश में राज्य सरकार को बहुसंख्यक समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर चार सप्ताह के भीतर केंद्र के पास सिफारिश भेजने को कहा गया था. इसके बाद से ही राज्य तनावपूर्ण माहौल की स्थिति पैदा हो गई थी.

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