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संसदीय समिति की बैठक में सुशील मोदी ने आदिवासियों को UCC के दायरे से बाहर रखने की वकालत की

संसदीय समिति की बैठक सुशील मोदी की अध्यक्षता में हुई. वो इस स्थाई संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं. इसमें कांग्रेस के सांसद विवेक तन्खा और DMK के सांसद पी. विल्सन शामिल थे. उन्होंने  UCC के लागू होने पर सवाल उठाए.

इस समय समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का मुद्दा पूरे देश में गर्म है. प्रधानमंत्री नरेंद मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के हालिया बयान के बाद इस मुद्दे पर बहस तेज़ हो गई है.

इस बीच बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी ने पूर्वोत्तर और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में इसके लागू होने की संभावना पर सवाल किए हैं. उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि आदिवासियों के रीति-रिवाज और परंपराएं बाकी समुदायों से अलग हैं और उन्हें संविधान से विशेष अधिकार भी प्राप्त हैं.

सुशील मोदी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 371 के तहत आने वाले क्षेत्रों को किसी प्रस्तावित यूसीसी के दायसे से दूर रखा जाना चाहिए. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक कानून में कोई न कोई अपवाद होता है.

दरअसल, सोमवार को कर्मचारिय, लोक शिकायत, कानून और न्याय की स्थाई संसदीय समिति की बैठक हुई. बैठक में लॉ कमीशन के 14 जून के उस नोटिस पर कानूनी कार्य, विधायी विभाग और लॉ कमीशन के विचार सुने गए, जिसमें UCC पर सभी हितधारकों के सुझाव मांगे गए थे.

ये बैठक सुशील मोदी की अध्यक्षता में हुई. वो इस स्थाई संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं. इसमें कांग्रेस के सांसद विवेक तन्खा और DMK के सांसद पी. विल्सन शामिल थे. उन्होंने  UCC के लागू होने पर सवाल उठाए.

विल्सन ने सुशील मोदी को बताए नोट्स ट्विटर पर भी पोस्ट किए. उन्होंने लिखा, “यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने से देश की विविधता खत्म हो जाएगी. शादी, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं. इन पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं. लेकिन अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि UCC देश के सभी नागरिकों पर लागू होगी. ऐसे में राज्य सरकार इसमें संशोधन नहीं कर पाएंगी.”

उन्होंने आगे कहा, ”भारत 398 भाषाओं का घर है, जिनमें से 387 सक्रिय रूप से बोली जाती हैं और 11 विलुप्त हो चुकी हैं. हिंदू धर्म के भीतर भी कई उपसंस्कृतियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशिष्ट पहचान, परंपरा और रीति-रिवाज हैं. अगर आप व्यक्तिगत कानूनों का एक सेट लेते हैं और इसे सभी धर्मों, उप-संप्रदायों और संप्रदायों पर बलपूर्वक लागू करते हैं तो यह उनकी विशिष्टता और विविधता को नष्ट कर देगा.”

वहीं कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने भी अपने जमा किए नोट्स ट्विटर पर शेयर किए. उन्होंने लिखा, “यूनिफॉर्म सिविल कोड 138 करोड़ लोगों पर असर डालेगा. मैं 21वें लॉ कमीशन के फैमिली लॉ पर दिए कंस्लटेशन से सहमत हूं. अगर समान नागरिक संहिता पर आम सहमति नहीं बनती है तो अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों को जारी रहने दिए जाना चाहिए. हमें बस ये ध्यान रखना होगा कि ये व्यक्तिगत कानून भारत के संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करें.”

बैठक में कानूनी मामलों के विभाग, विधायी विभाग और भारत के विधि आयोग के अधिकारियों ने भाग लिया था. विधि आयोग के अधिकारियों ने कहा कि यूसीसी के संबंध में अब तक 19 लाख सुझाव प्राप्त हुए हैं.

बैठक में भाजपा, कांग्रेस, बसपा, शिवसेना और द्रमुक सहित विभिन्न दलों के सदस्यों ने भाग लिया.

बैठक में कुछ सदस्‍यों ने सरकार पर इस कानून को जल्द लाए जाने का आरोप लगाया है. समिति के कुछ सदस्यों का कहना था कि सिर्फ एक फैमिली लॉ नहीं बनाया जाना चाहिए. यह समाज के हर धर्म, जाति, समुदाय से जुड़ा हुआ मामला है, लिहाजा इसको ध्यान में रखना जरूरी है. बताया गया कि इस मुद्दे पर समिति अभी कोई फैसला या आदेश नहीं दे रही है.

हालांकि संजय राउत के नेतृत्व वाली यूडी सेना ने कहा कि यह अमेरिका और अन्य देशों में है इसलिए हम इसका समर्थन करते हैं. लेकिन यूसीसी को चुनावों को ध्यान में रखते हुए नहीं लाया जाना चाहिए.

संजय राउत ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत को लेकर चर्चा की गई है, उनके पास अपने कानून हैं और उत्तर-पूर्व के नगालैंड और मिजोरम में पहले से ही तनाव में है. इस पर मंत्रालय के प्रतिनिधि ने कहा कि उन राज्यों में विधानसभा की मंजूरी के बिना कोई कानून पारित नहीं किया जा सकता.

इसके बाद एक सदस्य ने कहा कि आदिवासियों को संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा मिलती है. अगर उन्हें छूट मिलेगी तो एकरूपता कैसे आएगी?

यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा अर्थ एक देश-एक कानून है. अभी शादी, तलाक, गोद लेने के नियम, उत्तराधिकारी, संपत्तियों से जुड़े मामलों के लिए सभी धर्मों में अलग-अलग कानून हैं. अगर समान नागरिक संहिता आती है तो फिर सभी के लिए एक ही कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का ही क्यों न हो.

स्थायी समिति की सिफ़ारिश अहम है

नरेन्द्र मोदी सरकार पर यह आरोप है कि उसके कार्यकाल में संसदीय स्थायी समितियों को बेमानी बना दिया गया है. इन समितियों में अक्सर सांसद अपनी पार्टी की लाइन से उपर उठ कर क़ानूनों और नीतियों की समीक्षा करते थे.

लेकिन अब सत्ताधारी दल के लोग इन समितियों में वही बोलते हैं जो सरकार चाहती है. लेकिन इस मामले में सुशील मोदी की UCC पर सरकार को सलाह एक स्वागत योग्य कदम है.

हालाँकि यह देखा गया है कि प्रधानमंत्री ने UCC पर बहस शुरू ज़रूर की थी, लेकिन आदिवासी इलाक़ों में इस बहस में नकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद बीजेपी सावधानी से पीछे हट रही है.

स्थायी समिति की बैठक में सुशील मोदी के विचार भी इसी क्रम का हिस्सा हो सकते हैं.

(Image credit: PTI)

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