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बिरसा मुंडा के नाम पर बने भारत के सबसे बड़े स्टेडियम में आदिवासी उम्मीद दबी हैं

लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में मिली जानकारी के अनुसार जब यह 20 हज़ार एकड़ से ज़्यादा ज़मीन अधिग्रहित की गई तो तो उसका कुल मुआवज़ा क़रीब 13248217 रुपये दिया गया था. 

ओडिशा के सुंदरगढ़ ज़िले के आदिवासी भारत के सबसे बड़े हॉकी स्टेडियम के निर्माण से नाराज़ हैं. यह स्टेडियम अब लगभग पूरा हो बन चुका है. उम्मीद की जा रही है कि अगले साल यानि साल 2023 हॉकी विश्वकप के लिए यह स्टेडियम इस्तेमाल हो पाएगा.

इस स्टेडियम का नाम बिरसा मुंडा इंटरनेशनल स्टेडिम रखा गया है. लेकिन सच्चाई यह है कि जिस ज़मीन पर यह स्टेडियम बनाया गया है, वह ज़मीन आदिवासियों को दी जानी थी. दरअसल 1955 से 1976 राऊरकेला स्टील प्लांट और उससे जुड़े अन्य उद्योगों के लिए ज़मीन का अधिग्रहण किया गया था. इसके अलावा मंदिरा डैम के लिए भी ज़मीन ली गई थी.

इस क्रम में 33 गाँवों की कम से कम 20,983.99 एकड़ ज़मीन सरकार ने अधिग्रहित की थी. इसके अलावा स्टील प्लांट के लिए 11,114 एकड़ ज़मीन राज्य सरकार ने दी थी. स्टील प्लांट के लिए ली गई कुल ज़मीन में से क़रीब 6000 एकड़ ज़मीन स्टील प्लांट ने वापस कर दी. 

इस ज़मीन के असली मालिक कई दशक से इस ज़मीन को वापस माँग रहे हैं. आंचलिक सुरक्षा कमेटी से जुड़े देमे उराँव का कहना है, “2006 से सरकार यह आश्वासन दे रही है कि यह ज़मीन उसके असली मालिकों को दे दी जाएगी. सरकार ने कहा था कि अधिग्रहण की गई जो ज़मीन इस्तेमाल नहीं हुई थी उसे लौटा दिया जाएगा. लेकिन अभी तक ज़मीन लौटाई नहीं गई.”

यह मामला राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भी पहुँचा था. आयोग ने इस सिलसिले में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि जो ज़मीन इस्तेमाल नहीं हो रही है वह आदिवासियों को लौटा दी जाए. लेकिन सरकार ने ज़मीन आदिवासियों को लौटाने का ना तो अपना वादा पूरा किया और ना ही आयोग की बातों पर ध्यान दिया.

बल्कि इस ज़मीन में से काफ़ी ज़मीन बीजू पटनायक यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलोजी को दे दी गई. उसके बाद उसी ज़मीन में से स्टेडियम बनाने के लिए भी ज़मीन दी गई है. 2018 में राज्य के रेवेन्यू और डिज़ास्टर मैनेजमेंट विभाग ने एक सर्कुलर जारी किया था.

इस सरकुलर में कहा गया था कि अनुसूचित क्षेत्रों में विस्थापित परिवारों को 5 एकड़ असिंचित भूमि या फिर 2 एकड़ सिंचित भूमि दी जाएगी. लेकिन अभी तक यह वादा भी पूरा नहीं हुआ है. 

लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में मिली जानकारी के अनुसार जब यह 20 हज़ार एकड़ से ज़्यादा ज़मीन अधिग्रहित की गई तो तो उसका कुल मुआवज़ा क़रीब 13248217 रुपये दिया गया था. 

ज़मीन अधिग्रहण के से विस्थापित लोगों को झीरपानी और जालदा की पुनर्वास कॉलोनियों में बसाया गया था. यहाँ के विस्थापित लोगों ने मिल कर एक संगठन भी बनाया है. 

इस संगठन को राऊरकेला स्थानीय विस्थापित संगठन (Rourkela Local Displaced Association) भी बना है. इस संगठन का आरोप है कि सरकार का जो रवैया है वह बेहद नकारात्मक है. सरकार के व्यवहार से लोगों में ज़मीन मिलने की उम्मीद दम तोड़ रही है. 

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