ओडिशा के 12 ज़िलों में बसी आदिम जनजातियों (PVTG) को प्राकृतिक संसाधनों का ठीक से प्रबंधन करने में मदद करने के लिए राज्य सरकार ने हैदराबाद स्थित International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics (ICRISAT) के साथ समझौता किया है.
इसके तहत ICRISAT आदिवासियों के लिए क्षमता निर्माण (Capacity Building) के उपाय करेगा. यानि आदिवासियों को अलग अलग तकनीक की जानकारी दी जाएगी. इसके साथ ही उन्हे नए औज़ारों और खेती के दूसरे साधनों के बारे में बताया जाएगा.
इस योजना के तहत आदिवासियों को खेती से जुड़े कौशल के बारे में बताया जाएगा.
राज्य सरकार और ICRISAT के बीच विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों के लिए क्षमता निर्माण की यह पहल कृषि पर निर्भर होगी.
ICRISAT इन आदिवासियों की जल संचयन, हाइड्रोलॉजिकल मापदंडों और फ़सल उत्पादकता की रिकॉर्डिंग में मदद करेगा. इस सहयोग का मुख्य उद्देश्य क्षमता निर्माण और निगरानी के माध्यम से स्थायी एकीकृत नैचुरल रिसोर्स प्रबंधन को बढ़ावा देना है.
अगले तीन साल में 12 ज़िले कवर होंगे. इनमें सुंदरगढ़, मयूरभंज, देवगढ़, केंदुझर, अंगुल, नुआपाड़ा, कंधमाल, कालाहांडी, रायगडा, गजपति, गंजम और मलकानगिरी शामिल हैं. ICRISAT इन जिलों में रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के माध्यम से भूमि-उपयोग और भूमि-कवर की निगरानी भी करेगा.
ICRISAT इन आदिवासी इलाक़ों में रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी लगाएगा. इसके अलावा चार ज़िलों में जहां जूम खेती की जाती है बारिश, रन-ऑफ और अन्य हाइड्रोलॉजिकल मापदंडों को रिकॉर्ड करने के लिए गेजिंग स्टेशन भी स्थापित किए गए हैं.
ओडिशा सरकार और ICRISAT राज्य के छोटे किसानों और कृषि के लाभ के लिए एक दशक से साझेदारी में हैं. इसके तहत कृषि जलवायु को लचीला और टिकाऊ बनाकर फसल उत्पादकता बढ़ाने और आदिवासियों के पोषण को बेहतर करने पर काम किया जाता है.
यह सहयोग ओडिशा के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के सशक्तीकरण और आजीविका सुधार कार्यक्रम (Particularly Vulnerable Tribal Groups Empowerment and Livelihoods Improvement Programme (OPELIP)) का हिस्सा है.
देश की कुल 75 आदिम जनजातियों में से सबसे ज़्यादा 13 ओडिशा में हैं. यह आदिवासी राज्य के घने जंगलों और दूरदराज़ के इलाक़ों में रहते हैं, और ज़्यादातर अपने आसपास के जंगलों पर निर्भर करते हैं.
इनमें से कम ही खेती किसानी करते हैं, या इसमें माहिर होते हैं. ऐसे में राज्य सरकार की इस तरह की पहलें उनके काम तो आ सकती हैं, लेकिन यह देखने वाली बात होगी कि कितने आदिवासी इसके बारे में जानते हैं, औऱ इसका फ़ायदा उठाते हैं.