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राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में आधे से ज़्यादा पद ख़ाली, कई साल से लटके पड़े हैं मामले

अगर क्षेत्रिय कार्यालयों या केन्द्रों की तरफ़ देखें तो इस मामले में मध्यप्रदेश और राजस्थान स्थित केन्द्रों की स्थिति सबसे ज़्यादा ख़राब है. भोपाल के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग केन्द्र में कुल 16 पद हैं. लेकिन नियुक्ति मात्र 4 पदों पर ही हुई है. यानि 16 में से 12 पद ख़ाली पड़े हैं. अनुपात में देखेंगे तो दो तिहाई पद भोपाल केन्द्र में ख़ाली हैं.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Triebes) के दिल्ली मुख्यालय और 6 क्षेत्रिय कार्यालयों में आधे से ज़्यादा पद खाली पड़े हैं. अफ़सोस की बात ये है कि कमीशन के दिल्ली मुख्यालय में भी सभी पदों को नहीं भरा गया है. दिल्ली में कुल 54 पद हैं. लेकिन इस कार्यालय में मात्र 32 नियुक्ति ही हुई हैं. जबकि 22 पद खाली पड़े हैं.

अगर क्षेत्रिय कार्यालयों या केन्द्रों की तरफ़ देखें तो इस मामले में मध्यप्रदेश और राजस्थान स्थित केन्द्रों की स्थिति सबसे ज़्यादा ख़राब है. भोपाल के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग केन्द्र में कुल 16 पद हैं. लेकिन नियुक्ति मात्र 4 पदों पर ही हुई है. यानि 16 में से 12 पद ख़ाली पड़े हैं. अनुपात में देखेंगे तो दो तिहाई पद भोपाल केन्द्र में ख़ाली हैं. 

राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का एक केन्द्र है. यहाँ के लिए कुल स्वीकृत पदों की संख्या है 16 और नियुक्ति मात्र 3 पदों पर ही हुई है. यानि राजस्थान में कमीशन में दो तिहाई से भी ज़्यादा पद ख़ाली हैं. 

सिक्किम के शिलांग केन्द्र के लिए कुल 10 पदों का प्रावधान किया गया है. लेकिन यहाँ पर मात्र 2 पद ही भरे गए हैं. अभी भी 8 पद ख़ाली पड़े हैं. झारखंड में कुल 8 पदों का प्रावधान है. लेकिन यहाँ के राँची केन्द्र में भी आधी ही नियुक्ति हुई हैं और 4 पद ख़ाली ही पड़े हैं. 

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का एक क्षेत्रिय केन्द्र है. यहाँ कुल स्वीकृत पदों की संख्या है 7 और ख़ाली पद हैं 6.

इस मामले में ओड़िशा के भुवनेश्वर केन्द्र की स्थिति सबसे अच्छी नज़र आती है. हालाँकि यहाँ भी सभी पद नहीं भरे गए हैं. फिर भी यहाँ के 13 पदों में से 9 पदों पर नियुक्ति है. 

इन ख़ाली पड़े पदों का सीधा असर कमीशन के काम-काज पर तो पड़ता ही होगा. कम से कम राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पास लंबित पड़े मामलों की तादाद देखें तो ऐसा ही लगता है.

पिछले 4 सालों में कमीशन के पास जो मामले आए उनमें आधे मामलों का भी निपटारा नहीं हो सका है. 

2017 में ही कमीशन के पास कुल 1785 मामले रिपोर्ट हुए थे. लेकिन इनमें से 972 मामले अभी भी लंबित हैं. 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को पिछले चार सालों में जो राशी आवंटित की गई थी वो भी किसी भी साल में पूरी ख़र्च नहीं की गई. मसलन 2017-18 में आयोग के दिल्ली मुख्यालय और क्षेत्रिय केन्द्रों के लिए कुल 1204 लाख रूपये दिए गए. 

लेकिन इसमें से लगभग 200 करोड़ रूपये ख़र्च ही नहीं हुए. साल 2018 में कुल 1621 लाख रूपये का प्रावधान किया गया था, लेकिन ख़र्च हुए 1235 लाख. यानि इस साल कमीशन ने कुल प्रावधान में से 386 लाख रूपये कम ख़र्च किए. 

2019-20 में कमीशन को मिले कुल 1657 लाख रूपये और ख़र्च हुए 1225 रूपये. इस साल कमीशन ने 432 लाख रूपये ख़र्च ही नहीं किए.

ऐसा नहीं है कि कमीशन ने कुछ ख़ास उपाय कर यह ख़र्च कम किया है. बल्कि इसकी सच्चाई यह है कि आयोग में पद ख़ाली पड़े हैं और मामले लंबित. आयोग को आदिवासी समुदाय के लिए जो काम करना है, वो नहीं किया गया है. 

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