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कांग्रेस ने प्राइवेट कॉलेजों में SC, ST और OBC को आरक्षण दिलाने की उठाई मांग

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा कि उनकी सरकार के कार्यकाल के दौरान उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय, आईआईटी और आईआईएम सहित सरकारी संस्थानों में ये आरक्षण लागू किया था.

कांग्रेस ने हाल ही में एक बड़ी मांग उठाई है, जिसमें पार्टी ने निजी शिक्षण संस्थानों में भी अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण देने की बात की है. यह मांग कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने उठाई है.

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने निजी शिक्षण संस्थानों में संविधान के अनुच्छेद 15(5) को लागू करने के लिए कानून बनाने की मांग की है.

जयराम रमेश ने इस बात पर प्रकाश डाला कि साल 2006 में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान पेश किया गया यह संवैधानिक संशोधन सरकारी और निजी दोनों शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को सक्षम बनाता है.

उन्होंने 2006 के संशोधन को क्रांतिकारी बताया और वंचित समुदायों को शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए इसके महत्व को समझाया.

जयराम रमेश ने न्यूज एजेंसी ने ANI से कहा, “देश को पता होना चाहिए कि 2006 में संविधान में संशोधन किया गया था, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और अर्जुन सिंह शिक्षा मंत्री थे और हमारे संविधान में अनुच्छेद 15(5) जोड़ा गया था. जिसका अर्थ है कि शैक्षणिक संस्थानों में चाहे वे सरकारी संस्थान हों या निजी संस्थान, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के युवाओं को आरक्षण दिया जा सकता है. यह एक क्रांतिकारी संशोधन था.”

कांग्रेस सांसद ने कहा कि उनकी सरकार के कार्यकाल के दौरान उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय, आईआईटी और आईआईएम सहित सरकारी संस्थानों में ये आरक्षण लागू किया था.

रमेश ने कहा, “पहले चरण में हमने सरकारी शिक्षण संस्थानों, दिल्ली विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम में ऐसा किया. जनवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से कहा कि संविधान में किया गया संशोधन, अनुच्छेद 15(5) हमारे संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं है. फिर चुनाव हुए पीएम मोदी की सरकार आई, 11 साल बीत गए लेकिन इसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया. सरकार से हमारी मांग है कि अनुच्छेद 15(5) को लागू किया जाए.”

संविधान का अनुच्छेद 15(5), जिसे 2005 में 93वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से पेश किया गया था, विशेष रूप से निजी सहित शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधानों की अनुमति देता है.

2008 में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी और तब कोर्ट ने कहा था कि निजी संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा विचारणीय है. हालांकि, इस समय तक इस पर कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया गया था.

जयराम रमेश ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐतिहासिक फैसलों के जरिए अनुच्छेद 15(5) को वैध ठहराया है. जिनमें अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ (2008), आईएमए बनाम भारत संघ (2011) और प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ (2014) जैसे मामले शामिल हैं.

अब कांग्रेस ने एक बार फिर इस मुद्दे को उठाया है और यह दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि एससी, एसटी और ओबीसी को निजी संस्थानों में आरक्षण मिल सकता है.

2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में भी इस आरक्षण को लागू करने का वादा किया था.

शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने भी अपनी 364वीं रिपोर्ट में इस रुख का समर्थन किया है, जिसमें अनुच्छेद 15(5) को लागू करने के लिए नए कानून की सिफारिश की गई है.

अब इस संसदीय समिति की सिफारिश के बाद कांग्रेस ने इस मांग को और तेज़ कर दिया है.

अनुच्छेद 15(5) अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को विशेष रूप से इन प्रावधानों से छूट देता है. जबकि राज्य को सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों में इन समुदायों की उन्नति और विकास के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है, भले ही उन्हें राज्य से सहायता मिलती हो या नहीं.

अब देखना यह होगा कि कांग्रेस की इस मांग पर केंद्र सरकार क्या प्रतिक्रिया देती है. फिलहाल देश के किसी भी निजी शिक्षण संस्थान में जातिगत आरक्षण लागू नहीं है लेकिन इसके बाद अगर यह कानून बनता है तो इसका देश के शिक्षा तंत्र पर बड़ा असर पड़ सकता है.

केंद्र से तत्काल सामान्य जनगणना और जाति जनगणना कराने का आग्रह

वहीं राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आज (1 अप्रैल, 2025) को सरकार से दशकीय जनगणना के साथ-साथ जाति जनगणना भी तुरंत शुरू करने को कहा. साथ ही कहा कि देरी के कारण बड़ी संख्या में लोग कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जा रहे हैं.

उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान बोलते हुए खड़गे ने कहा कि इतिहास में पहली बार सरकार ने जनगणना को अनिश्चित काल के लिए टाल दिया है, जिसके गंभीर परिणाम होंगे.

उन्होंने जनगणना और जाति जनगणना पर चुप रहने के लिए भी सरकार की आलोचना की और बताया कि जनगणना के लिए केवल 575 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन इस वर्ष भी जनगणना कराने के प्रति सरकार की अनिच्छा को दर्शाता है.

उन्होंने कहा कि सटीक और अपडेटेड आंकड़ों के बिना नीतियां मनमानी और अप्रभावी हो जाती हैं.

उन्होंने कहा कि उपभोक्ता सर्वेक्षण, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम जैसे कई महत्वपूर्ण सर्वेक्षण और कल्याण कार्यक्रम जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर करते हैं.

खड़गे ने कहा, “इस देरी के कारण करोड़ों लोग कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जा रहे हैं. नीति निर्माता विश्वसनीय और अप-टू-डेट आंकड़ों के बिना निर्णय ले रहे हैं.”

वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि जनगणना 1881 से हर 10 साल में की जाती रही है और युद्ध, आपातकाल और संकट के बावजूद भी यह जारी रही है. उन्होंने बताया कि जनगणना की प्रक्रिया में न केवल जनसंख्या के आंकड़े एकत्र किए जाते हैं बल्कि रोजगार, पारिवारिक संरचना, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी भी एकत्र की जाती है.

उन्होंने कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध और 1971-72 के भारत-पाकिस्तान युद्ध जैसी बड़ी घटनाओं के दौरान भी जनगणना की गई थी. लेकिन इतिहास में पहली बार सरकार ने जनगणना को अनिश्चित काल के लिए टाल दिया है.”

खड़गे ने जाति जनगणना की भी मांग की और 1931 की उस प्रक्रिया का हवाला दिया जिसमें जनसंख्या जनगणना के साथ जाति जनगणना भी की गई थी.

उन्होंने पूछा कि अगर सरकार पहले से ही अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के आंकड़े एकत्र करती है, तो अन्य जातियों को भी इसमें क्यों शामिल नहीं किया जाता.

उन्होंने कहा, ‘‘1931 की जनगणना से ठीक पहले महात्मा गांधी जी ने कहा था कि जिस तरह हमें अपने स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए समय-समय पर चिकित्सा जांच की जरूरत होती है, उसी तरह जनगणना भी किसी राष्ट्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण जांच है.’’

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