प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने रविवार को अपने ‘मन की बात’ के 119वें संस्करण में बीआरटी टाइगर रिजर्व के सोलिगा आदिवासियों का जिक्र किया और बाघ संरक्षण में उनके योगदान की सराहना की.
उन्होंने कहा कि सोलिगा जनजाति (Soliga tribe) की वजह से कर्नाटक के चामराजनगर जिले के बीआरटी टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी बढ़ रही है.
पीएम ने कहा, “मैं अपने आदिवासी भाइयों और बहनों को भी धन्यवाद देना चाहूंगा क्योंकि वे वन्यजीव संरक्षण से जुड़े कामों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं. कर्नाटक के बीआरटी टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी लगातार बढ़ रही है.”
उन्होंने कहा, “इसका बहुत बड़ा श्रेय सोलिगा जनजाति को जाता है, जो बाघ की पूजा करते हैं. उनकी वजह से इस क्षेत्र में मानव-पशु संघर्ष लगभग नहीं होता है.”
इसके साथ ही पीएम मोदी ने अगले महीने की शुरुआत में विश्व वन्यजीव दिवस मनाने का आह्वान किया.
बिलिगिरी रंगनाथ स्वामी मंदिर (BRT) टाइगर रिजर्व 570 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 40 से अधिक बाघ और 280 से अधिक दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियां हैं.
जंगली जानवरों को हमारे इतिहास और संस्कृति में गहराई से समाहित बताते हुए पीएम ने कहा कि कई जानवरों को हमारे देवी-देवताओं के वाहन के रूप में भी देखा जाता है.
उन्होंने कहा, “हमारे पास कर्नाटक के हुली वेशा, तमिलनाडु के पूली और केरल के पुलिकली जैसे कई सांस्कृतिक नृत्य हैं, जो प्रकृति और वन्यजीवों से जुड़े हैं. मैं अपने आदिवासी भाइयों और बहनों को भी धन्यवाद देना चाहूंगा क्योंकि वे वन्यजीव संरक्षण से जुड़े कामों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं.”
पीएम ने कहा, “मध्य भारत में कई जनजातियां बाघेश्वर की पूजा करती हैं. महाराष्ट्र में वाघोबा की पूजा करने की परंपरा है. भगवान अयप्पा का बाघ से भी बहुत गहरा संबंध है. सुंदरबन में बोनबीबी की पूजा की जाती है, जिनका वाहन बाघ है.”
पीएम ने लोगों से पूछा कि क्या वे एशियाई शेर, हंगुल, पिग्मी हॉग और शेर-पूंछ वाले मैकाक के बीच समानता के बारे में जानते हैं.
उन्होंने कहा, “इसका उत्तर यह है कि ये सभी चीजें दुनिया में कहीं और नहीं पाई जाती हैं. ये केवल हमारे देश में ही पाई जाती हैं. वास्तव में हमारे पास वनस्पतियों और जीवों का एक बहुत ही जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र है.”
सोलिगा जनजाति
सोलिगा आदिवासी कर्नाटक के चामराजनगर की बिलिगिरी रंगना (बीआर) पहाड़ियों और तमिलनाडु के इरोड जिले के कुछ हिस्सों में रहती है. परंपरागत रूप से ये अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर रहे हैं.
सोलिगा आदिवासी, बाघ को देवता मानते हैं. वो उनकी पूजा करते हैं. वो कभी भी बाघों से छेड़खानी नहीं करते, उनके साथ हिंसा तो दूर की बात है.
सोलिगा प्रकृति के बहुत करीब रहते हैं इसलिए वे जानवरों की ज़रूरतों और व्यवहार के पैटर्न को समझते हैं और जानते हैं कि कब बाहर निकलना है या संघर्ष से बचने के लिए घर के अंदर रहना है.
यहां तक कि सोलिगा लोग प्राकृतिक वन उपज की कटाई करते समय भी एक-चौथाई से एक-तिहाई हिस्सा वन्यजीवों के लिए छोड़ देते हैं.
सोलिगा लोगों के वन पारिस्थितिकी तंत्र के साथ गहरे सांस्कृतिक संबंध अच्छी होने के कारण और इलाके के बारे में उनके ज्ञान को देखते हुए, वन विभाग अग्नि सुरक्षा सहित विभिन्न वन-संबंधी गतिविधियों में उनकी मदद लेता है.
सोलिगा बाघ अभयारण्य के अंदर रहने वाला पहला आदिवासी समुदाय है, जिसके वन अधिकारों को 2011 में एक अदालत के फैसले द्वारा मान्यता दी गई.
टाइगर रिज़र्व से जुड़ी स्टडी यह बताती हैं कि यह धारणा सिरे से गलत हैं कि जनजातीय समूह बाघों के आवासों को नुकसान पहुंचाते हैं. इसके बजाय रिसर्च से पता चलता है कि ये समुदाय वास्तव में बाघों की आबादी बढ़ाने और वन्यजीवों की भलाई को प्राथमिकता देने में मदद कर सकते हैं.
वन क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति अक्सर ख़तरा पैदा करने के बजाय संरक्षण प्रयासों का समर्थन करती है.
हालांकि, जंगली जानवरों को बचाने में अहम रोल के बावजूद भारत में कई जगहों से आदिवासियों को हटाया जा रहा है.