ओडिशा के गजपति ज़िले के मोहन ब्लॉक के जुबा गांव में 22 मार्च को हुई एक घटना को लेकर आठ सदस्यों की फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने चौंकाने वाला दावा किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने गांव में बिना वारंट घुसकर चर्च को नुकसान पहुंचाया, महिलाओं और बच्चों पर लाठीचार्ज किया और आदिवासी समुदाय के लोगों को परेशान किया.
फैक्ट-फाइंडिंग टीम 9 अप्रैल को गांव पहुंची थी. इसमें 7 वकील और एक सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे. क्लारा डिसूजा, गीता संपति, थॉमस ई.ए., कुलाकांत दंडसेना, सुजाता जेना, अंजलि नायक, अजय कुमार सिंह और सुबल नायक इस टीम के सदस्य थे.
टीम के मुताबिक, पुलिस गांव में भांग की खेती की अफवाह पर छापा मारने आई थी लेकिन कार्रवाई का तरीका अमानवीय था.
चर्च में घुसकर तोड़फोड़
रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 15 पुलिसकर्मी चर्च में उस समय घुस आए जब चार कोंध आदिवासी महिलाएं और लड़कियां रविवार की प्रार्थना की तैयारी कर रही थीं.
इनमें दो नाबालिग लड़कियां थीं जिनकी उम्र करीब 12 साल थी.
पुलिस ने चर्च के धार्मिक सामान तोड़े और पवित्र स्थान का अपमान किया.
यह कार्रवाई बिना किसी वारंट के हुई. यह संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) की धारा 298 का उल्लंघन है. धारा 298 उन कार्यों से संबंधित है जो पूजा स्थल या किसी पवित्र वस्तु को नुकसान पहुंचाते हैं या उसे अपवित्र करते हैं.
महिलाओं और बच्चों पर हिंसा
रिपोर्ट में बताया गया है कि दो युवतियों को लाठियों से पीटा गया और उन्हें चर्च से लगभग 300 मीटर दूर खींचकर पुलिस बस तक ले जाया गया.
जब नाबालिग लड़कियां मदद के लिए पादरियों के पास दौड़ीं तो वहां मौजूद सबर जनजाति की 38 वर्षीय महिला रसोइया को भी बुरी तरह पीटा गया. उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए.
गांव के अन्य बच्चों और महिलाओं को भी बस में भरकर कुछ दूरी पर छोड़ दिया गया.
कुछ के मोबाइल फोन तक छीन लिए गए. ये मोबाइल अब तक वापस नहीं दिए गए हैं. रिपोर्ट कहती है कि यह घटना POCSO एक्ट और BNSS की कई धाराओं का उल्लंघन है.
पादरियों पर हमला
रिपोर्ट में बताया गया है कि अपने आवास से बाहर आए दो कैथोलिक पादरी, फादर जेजी और फादर डीएन को भी पीटा गया.
उन्हें “पाकिस्तानी” कहकर अपमानित किया गया और जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाया गया.
इस घटना में फादर DN का कंधा टूट गया है. आरोप है कि पुलिस ने उनके घर से 40,000 रुपये भी ले लिए.
घरों में तोड़फोड़ और डर का माहौल
स्थानीय लोगों के अनुसार, पुलिस ने कई घरों में घुसकर सामान तोड़ा, महिलाओं और बच्चों को पीटा.
एक विधवा महिला और उसकी नाबालिग बेटी को भी नहीं बख्शा गया.
करीब 20 मोटरसाइकिलें, टीवी के साथ राशन का सामान जैसे चावल, दाल, मुर्गे और अंडे तोड़फोड़ करके नष्ट कर दिए गए.
कोई FIR दर्ज नहीं
रिपोर्ट के अनुसार घटना के 20 दिन बाद तक कोई FIR दर्ज नहीं हुई है.
हालांकि पुलिस अधीक्षक को शिकायत दी गई है.
टीम ने इसे कुछ पुलिसकर्मियों की “साम्प्रदायिक सोच” और “आदिवासी विरोधी मानसिकता” का नतीजा बताया है.
गजपति जिला पहले से ही विकास के मामले में बहुत पीछे है.
यहां 38% आबादी ईसाई है और 50% से अधिक आदिवासी हैं. ज़िले का मोहन ब्लॉक खासकर पिछड़ा हुआ है. इस ब्लॉक के 93 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और यहां महिला साक्षरता दर मात्र 37.11% है.
टीम की सिफारिशें
टीम ने राज्य सरकार से मांग की है कि दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, POCSO और BNSS की धाराएं लगाई जाएं.
पुलिस बल में विविध समुदायों से भर्ती हो और उन्हें धार्मिक स्थानों के सम्मान के बारे में संवेदनशील बनाया जाए.
टीम ने मीडिया से भी अपील की कि वह इस तरह की घटनाओं पर ध्यान दे और पीड़ितों की आवाज उठाए.
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