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महाराष्ट्र: आदिवासी बहुल पालघर में स्कूल छोड़ चुके बच्चों को नहीं मिल रहा कोविड वैक्सीन

कोविड की तीसरी लहर तेजी से फैल रही है, और पालघर की सात दिन की सकारात्मकता दर 13% है, जो मुंबई, पुणे और ठाणे के बाद चौथी सबसे ज्यादा है. केंद्र ने इसे आपातकालीन जिले के रूप में भी चिह्नित किया है.

महाराष्ट्र के पालघर ज़िले के मनोर गांव में एक ईंट भट्ठे के आसपास करीब सात परिवार के 50 आदिवासी रहते हैं. इनमें 15-18 साल की उम्र के नौ बच्चे हैं. यह सभी कोविड वैक्सिनेशन पाने के योग्य हैं, लेकिन इनमें से एक को भी वैक्सीन नहीं लगा है.

इसके पीछे वजह वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट नहीं है, बल्कि वो जानते ही नहीं हैं की टीका कहां से लगवाया जाए, क्योंकि टीकाकरण केंद्र अभी स्कूलों तक ही सीमित हैं. इसके अलावा इनमें से ज्यादातर अपने मां बाप की मदद करने के लिए भट्ठे में काम करते हैं, और उनके पास वैक्सीन लगवाने के लिए लाइन में लगने का समय नहीं है.

आदिवासी बहुल पालघर जिले में ऐसे कई बच्चे हैं जिनके लिए टीका लगवाना मुश्किल हो रहा है. राज्य ने 15-18 आयु वर्ग के लोगों के लिए टीकाकरण पूरे देश के साथ ही 3 जनवरी को शुरू कर दिया था.

पालघर जिले में कोविड वैक्सीन के लिए लगभग 1.46 लाख योग्य बच्चे हैं. 8 जनवरी तक 59,214 बच्चों का टीकाकरण किया गया जो कि पात्र जनसंख्या का 30 प्रतिशत है. अब, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा वैक्सीन कवरेज के साथ जिला ग्यारहवें स्थान पर है.

अपने वैक्सिनेशन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, जिला केवल स्कूलों में टीकाकरण अभियान चला रहा है. लेकिन महामारी के दौरान स्कूल छोड़ने वाले सैकड़ों किशोरों के टीकाकरण का कोई प्रावधान नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस का दावा है कि स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी के चलते, बच्चों के लिए अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में टीकाकरण प्रक्रिया अभी तक नहीं हुई है.

जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ दयानंद सूर्यवंशी कहते हैं, “यह अभियान अभी तक स्कूलों तक ही सीमित है। पीएचसी और अस्पतालों ने इसे अभी तक शुरू नहीं किया है. हम पहले से ही 40% कर्मचारियों की कमी के हो गया है, और उनका इलाज चल रहा है.”

डॉ सूर्यवंशी खुद कोविड पॉजिटिव हैं.

स्कूल केंद्रित अभियान चलाने के लिए जिला प्रशासन स्वास्थ्य कर्मियों को पीएचसी से बाहर भेज रहा है. इसका असर प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा पर भी पड़ा है.

पालघर में सरकारी माध्यमिक आश्रम स्कूल के एक शिक्षक डीपी डापके ने अखबार को बताया कि 3 जनवरी को 112 छात्रों ने टीकाकरण करवाया था. लेकिन नौ छात्र जो अनुपस्थित थे, उन्हें वैक्सीन नहीं लग सका.

अगले दिन, 4 जनवरी, स्कूल टीकाकरण करने वालों का नौ छात्रों को टीका लगाने का इंतजार करता रहा, लेकिन कोई भी नहीं आया.

पालघर के सीईओ एस के सलीमठ का कहना है कि जिला उन छात्रों के डीटेल जुटा रहा है, जो टीकाकरण से चूक गए हैं.

“हम किसी भी बच्चे को इस प्रक्रिया से बाहर नहीं जाने देंगे. एक बार स्कूली बच्चों का टीकाकरण हो जाने के बाद, हम ड्रॉपआउट बच्चों का टीकाकरण करने के लिए गांवों और ईंट भट्टों जैसे इलाकों में कैंप लगाएंगे. हम उनका डेटा शिक्षा विभाग से लेंगे,” सलीमठ ने कहा.

लेकिन शिक्षा विभाग के पास ऐसा कोई आंकड़ा तैयार नहीं है. 2021 में, विभाग ने एक जिले-वार सर्वेक्षण किया था, जहां उन्होंने पाया कि महामारी के बीच 25,000 छात्र स्कूलों से बाहर हो गए थे.

शिक्षाविद मानते हैं की डेटा “गलत” है. ऐसा इसलिए कि स्कूल खुलने के बाद ड्रॉपआउट छात्रों के डेटा को अपडेट नहीं किया गया है.

कोविड की तीसरी लहर तेजी से फैल रही है, और पालघर की सात दिन की सकारात्मकता दर 13% है, जो मुंबई, पुणे और ठाणे के बाद चौथी सबसे ज्यादा है. केंद्र ने इसे आपातकालीन जिले के रूप में भी चिह्नित किया है.

पालघर के आदिवासी इलाके में कुपोषित बच्चों का आंकड़ा ज्यादा है, जिससे उन्हें कोविड के संक्रमण के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए. जुलाई 2021 के सरकारी सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं की ज़िले में 1.72 लाख बच्चों में से 23% का वजन कम था. जिले में गंभीर रूप से कम वजन के 5,860 और सामान्य से कम वजन वाले 34,373 बच्चे थे.

आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाले श्रमजीवी संगठन के संस्थापक विवेक पंडित कहते हैं, “राज्य को स्कूलों, अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर समान रूप से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जहां स्कूल छोड़ने वाले बच्चों तक भी पहुंचा जा सकता है. बड़े पैमाने पर अभियान चलाने और उनके बारे में विज्ञापन देने की जरूरत है.”

एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि कई जिले कोवैक्सिन की कमी का सामना भी कर रहे हैं जो बच्चों के टीकाकरण को और मुश्किल बना रहा है.

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