HomeAdivasi Dailyबंधुआ मज़दूरी से बचाए गए सात मज़दूर और चार बच्चे

बंधुआ मज़दूरी से बचाए गए सात मज़दूर और चार बच्चे

पुलिस ने बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है.

महाराष्ट्र के पालघर जिले से एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां गरीब आदिवासी परिवारों को झांसा देकर गुजरात के सूरत में स्थित ईंट भट्ठों में अमानवीय परिस्थितियों में काम करवाया जा रहा था.

वारली समुदाय के सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से सात मजदूरों और चार बच्चों को बचाया गया है. इसमें 15 महीने से 5 सा8दल की उम्र तक के बच्चे शामिल थे.  

कैसे फंसे आदिवासी मजदूर?

पालघर और दहानू के आदिवासी परिवारों को कुछ एजेंट ने सूरत में काम के लिए अच्छा दाम मिलने का लालच दिया था.

जून 2024 में प्रजापति नाम के एजेंट ने कई मजदूरों को 10 हज़ार की एडवांस रकम दी और कहा कि सूरत में उनके लिए काम तय हो गया है. लेकिन जब नवंबर में मजदूरों ने सूरत जाने से मना किया तो उन्हें धमकाया गया और जबरन सूरत ले गए.

मजदूरों के आरोप

सूरत पहुंचने पर मजदूरों को अहसास हुआ कि केवल वे ही नहीं बल्कि पालघर के कई और परिवार पहले से ही वहां बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं.

आदिवासी मज़दूरों ने आरोप लगाया है कि उन्हें रस्सियों से बांधकर ट्रक में भरकर सूरत ले जाया गया.

उन्होंने बताया कि वहां उनसे 24 घंटे कड़ी मेहनत करवाई जाती है और आराम नहीं करने दिया जाता था. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें पर्याप्त खाना भी नहीं दिया जाता था.

रिहा करवाए गए मज़दूरों में से एक, नितेश ने बताया, “हमें लगातार कठिन काम करना पड़ता था—मिट्टी गूंथना, ईंट बनाना और उन्हें भट्ठे में पकाना. अगर हम थक कर बैठ जाते, तो प्रजापति के गार्ड लाठी लेकर हमला कर देते.”

बारडे ने बताया कि मजदूरों की झोपड़ियों के पास सीसीटीवी कैमरे लगे थे जिनकी निगरानी एक गार्ड करता था. अगर कोई झोपड़ी में सोता दिख जाता तो उसे डंडों से पीटा जाता और ज़बरदस्ती काम पर भेज दिया जाता.

मज़दूरों ने ये भी आरोप लगाया कि बीमार पड़ने पर इलाज की सुविधा नहीं दी जाती थी.

कैसे हुआ खुलासा?

25 वर्षीय नितेश चिम्बाटे किसी तरह वहां से भाग निकले और पालघर लौटकर श्रमजीवी संगठन के कार्यकर्ताओं को पूरी घटना बताई.

इसके बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई और सात मजदूरों को छुड़ाया गया.

8 महीने के मासूम की मौत

इस अमानवीय शोषण का सबसे दर्दनाक पहलू यह था कि वहां एक 8 महीने के बच्चे, मेहुल महेंद्र राहे की मौत हो गई.

उसकी मां रसिका बंधुआ मजदूरी करने को मजबूर थी और जहरीले धुएं की वजह से बच्चा बीमार पड़ गया.

सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक, अभी भी 50 से ज्यादा मजदूर वहां फंसे हुए हैं.

पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया

पुलिस ने बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है.

पुलिस का कहना है कि ज़रूरत पड़ने पर “अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम” को भी जोड़ा जाएगा.

पुलिस ने कहा है कि मामले की जांच जारी है लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है.

सरकार क्या कदम उठाएगी?

महाराष्ट्र आदिवासी विकास समिति के अध्यक्ष विवेक पंडित ने कहा कि सूरत में मजदूरों की भारी कमी है इसलिए कुछ लोग गरीब आदिवासियों को धोखे से ले जाकर उनका शोषण कर रहे हैं.

राज्य सरकार को इस मामले पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी गरीब आदिवासी को इस तरह बंधुआ मज़दूरी के लिए मजबूर न किया जाए.

क्या इस मामले में सख्त कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा? इसका जवाब तो सरकार और प्रशासन को ही देना होगा.

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