HomeAdivasi Dailyजादू-टोने के आरोप में महिला की पीट-पीटकर हत्या

जादू-टोने के आरोप में महिला की पीट-पीटकर हत्या

क 65 वर्षीय आदिवासी महिला की उसके ही रिश्तेदारों ने बेरहमी से पिटाई कर दी जिससे उसकी मौत हो गई.

आदिवासी क्षेत्रों में अंधविश्वास के कारण महिलाओं पर जादू-टोना करने का आरोप लगाकर हत्या कर देने की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं.

ऐसी ही एक घटना मध्य प्रदेश के सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र में घटी.

यहां एक 65 वर्षीय आदिवासी महिला की उसके ही रिश्तेदारों ने बेरहमी से पिटाई की जिससे उसकी मौत हो गई.

क्या है पूरा मामला ?

यह मामला कुसमी थाना क्षेत्र के मेढ़रा गांव का है.

ग्रामीणों को लंबे समय से महिला पर जादू-टोना करने का शक था. इसी संदेह के चलते उसके ही कुछ रिश्तेदारों ने उसे बेरहमी से पीटा. पिटाई के दौरान मौके पर ही उसकी मौत हो गई.

बुधवार रात करीब 8 बजे मेढ़रा ग्राम से पुष्पराज, दिलीप, संतोष, अजय सिंह और इंद्रभान सिंह आए और चिराऊंजिया सिंह के घर में घुस गए.

मृतिक महिला के पति श्रीमान सिंह को देखकर उन्होंने उसपर हमला कर दिया. इसके बाद आरोपी बुजुर्ग महिला को घर से एक किलोमीटर दूर लेकर गए.

वहां ले जाकर उन्होंने उसे इतना पीटा कि उसने दम तोड़ दिया.

महिला का बेटा और पोता मौके पर पहुंचे तो उनसे भी मारपीट की. सभी आरोपी महिला के देवर के बेटे हैं. 

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारी

हत्या की सूचना मिलते ही कुसमी थाना प्रभारी भूपेश सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी दी.

थाना प्रभारी भूपेश ने बताया कि सभी घायलों को अस्पताल में भर्ती करवाया गया है. इसके बाद एसडीओपी रोशनी ठाकुर ने भी घटनास्थल पर पहुंचकर मामले की जांच शुरू की.

पुलिस ने इस अपराध में शामिल पांच लोगों को हिरासत में लिया है और उनसे पूछताछ जारी है.

पुलिस ने ग्रामीणों से अपील की है कि वे अंधविश्वास और अफवाहों से बचें और किसी भी संदेहजनक घटना की सूचना तुरंत प्रशासन को दें.

यह घटना साबित करती है कि समाज में अंधविश्वास और कुप्रथाओं की जड़ें कितनी गहरी हैं.

जादू-टोना और डायन प्रथा के नाम पर निर्दोष महिलाओं को प्रताड़ित करना और उनकी हत्या कर देना एक गंभीर सामाजिक समस्या बनी हुई है.

खासकर आदिवासी समुदायों में इस तरह की घटनाएं अधिक देखने को मिलती हैं, जहां बिना किसी प्रमाण के महिलाओं को डायन करार देकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है.

आदिवासी क्षेत्रों में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार और सामाजिक संगठनों को मिलकर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है.

शिक्षा और जागरूकता के अभाव में ही इस तरह की कुप्रथाएं बनी रहती हैं. प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसी घटनाओं पर त्वरित कार्रवाई करे और दोषियों को सख्त सजा दिलाए ताकि भविष्य में इस तरह के अपराधों पर रोक लग सके.

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