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केरल: भारी बारिश में सैकड़ों आदिवासी परिवार और बस्तियां बाहरी दिुनिया से कटे

मणिकंदांचल, जंगल के अंदर स्थित कुट्टमपुझा पंचायत के वार्डों में से एक, शनिवार की रात बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कट गया है क्योंकि नदी के पार पूयमकुट्टी और मणिकंदांचल को जोड़ने वाली सड़क 12 घंटे से ज्यादा समय तक पानी में डूबी रही.

केरल में मानसून के मजबूत होने के साथ ही राज्य की आदिवासी बस्तियों का बुरा हाल है. एर्नाकुलम में कुट्टमपुझा की आदिवासी बस्तियां हर साल भारी बारिश से बुरी तरह प्रभावित होती हैं. यह बस्तियां पूयमकुट्टी नदी के पास बसी हैं, और हर साल नदी का जल स्तर बढ़ता है तो बस्तियां मुख्य भूमि से अलग हो जाती हैं.

मणिकंदांचल, जंगल के अंदर स्थित कुट्टमपुझा पंचायत के वार्डों में से एक, शनिवार की रात बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कट गया है क्योंकि नदी के पार पूयमकुट्टी और मणिकंदांचल को जोड़ने वाली सड़क 12 घंटे से ज्यादा समय तक पानी में डूबी रही. 

इसी तरह, नदी के दूसरी ओर स्थित एक दूसरा वार्ड कल्लेलिमेडु भी अलग हो गया है, क्योंकि भारी बारिश के बाद ब्लावाना में नाव सेवा रोक दी गई है.

कल्लेलिमेडु की हालत ज्यादा गंभीर है, क्योंकि उनके पास कनेक्टिविटी का एकमात्र विकल्प यह नौका सेवा ही है. मणिकंदांचल और कल्लेलिमेडु को जोड़ते हुए पुलों की दशकों पुरानी मांग पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. निवासियों ने अब विरोध फिर से शुरू करने का मन बना लिया है.

“यह दो हफ्तों में दूसरी बार है जब मणिकंदांचल में आदिवासी बस्तियों के 500 से ज्यादा परिवार अलग-थलग हो गए हैं. कुट्टमपुझा में लगभग 17 आदिवासी बस्तियां हैं और उनमें से ज्यादातर जंगल के अंदर पूयमकुट्टी नदी के उस पार स्थित हैं. इन तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता या तो पूयमकुट्टी की कच्ची सड़क है, या ब्लावना में फेरी. ये दोनों पानी के स्तर में बढ़ोत्तरी की वजह से हर साल बारिश के मौसम में जोखिम भरे हो जाते हैं,” कांति वेल्लयन, कुट्टमपुझा पंचायत अध्यक्ष ने कहा.

कल्लेलिमेडु और मणिकंदांचल दोनों के निवासियों को नदी पार करके अपने बच्चों की स्कूली शिक्षा, अस्पताल के लिए पूयमकुट्टी पहुंचना पड़ता है, या फिर जिले के दूसरे हिस्सों की यात्रा करनी पड़ती है. इन वार्डों में बहुत कम दुकानें हैं और जब भी नदी का पानी ओवरफ्लो होता है तो निवासियों का जीवन प्रभावित होता है.

पूयमकुट्टी के पूर्व वार्ड सदस्य फ्रांसिस एंटनी ने कहा कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों ने कई बार पुल बनाने का वादा किया है, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

मानसून में आदिवासियों का बुरा हाल

यह पहली बार नहीं है कि भारी बारिश में कोई आदिवासी बस्ती मेनलैंड से अलग-थलग हो गई हो. अभी पिछले महीने ही केरल राज्य मानवाधिकार आयोग ने राज्य के अनुसूचित जनजाति विकास विभाग (STDD) को एक महीने के अंदर मलप्पुरम ज़िले की पोदुकल पंचायत की चार आदिवासी बस्तियों – इरुट्टुकुत्ती, वनियमपुझा, तरिप्पपोटी और कुंबलप्पारा – को जोड़ने वाले प्रस्तावित कंक्रीट पुल की प्रगति के बारे में आयोग को सूचित करने का निर्देश दिया है. यह पुल निलंबूर के पास चालियार नदी पर बनाया जाना है.

2018 की बाढ़ ने मुंडेरी की इन बस्तियों को मेनलैंड से जोड़ने वाले दो पुल नष्ट हो गए थे. इसके बाद से यह आदिवासी परिवार बाहरी दुनिया से लगभग पूरी तरह से कटे हुए हैं.

यह आदिवासी ख़ासतौर पर मॉनसून के दौरान नदी पार करने के लिए बांस की नाव पर निर्भर रहते हैं, जो इनकी जान जोखिम में डालता है.

अगस्त 2019 में आई बाढ़ में यह इलाक़ा पूरी तरह से तबाह हो गया था. उस बाढ़ में नदी के किनारे की सड़कें और बिजली की लाइनें भी नष्ट हो गई थीं. तब से आदिवासियों को मेनलैंड तक पहुंचने के लिए बांस की नाव का इस्तेमाल करना पड़ रहा है, क्योंकि बाढ़ बस्तियों को जोड़ने वाले तीनों पुलों को बहा ले गया.

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