HomeAdivasi Dailyआदिवासी छात्र अगर फेल हुए तो टीचरों को कीमत चुकानी पड़ेगी

आदिवासी छात्र अगर फेल हुए तो टीचरों को कीमत चुकानी पड़ेगी

शिक्षकों को यह भी सुनिश्चित करना है कि कक्षा दसवीं और बारहवीं के छात्रों को उच्च शिक्षा संस्थानों में शामिल होने के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षाओं की आवश्यकता के बारे में सूचित और जागरूक किया जाए और उन्हें जरूरी सहायता प्रदान की जाए.

तमिलनाडु आदिवासी कल्याण विभाग ने अनुरोध किया है कि शिक्षक दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के लिए गए रिवीजन टेस्ट में खराब प्रदर्शन करने वाले छात्रों को विशेष कोचिंग दें. इसके लिए विभाग ने सभी स्कूलों को पत्र भेजा है. विभाग के निदेशक द्वारा स्कूलों को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि अगर छात्र पिछले वर्ष की तुलना में अपने विषयों में खराब प्रदर्शन करते हैं तो शिक्षकों को निलंबित कर दिया जाएगा.

विभाग के आठ एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों और 320 सरकारी आदिवासी आवासीय विद्यालयों में 30 हज़ार से अधिक छात्र नामांकित हैं. दरअसल, पब्लिक एग्जामिनेशन में पास प्रतिशत सरकारी स्कूलों की तुलना में कम होने के बाद विभाग को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है. इसलिए विभाग अभी से कड़ाई कर रहा है.

सभी स्कूल के प्रिंसिपल को लिखे एक पत्र में आदिवासी कल्याण निदेशक ने खराब प्रदर्शन करने वाले छात्रों को ग्रुप में बांटने और उन्हें परीक्षा पास करने में मदद करने के लिए अतिरिक्त कोचिंग प्रदान करने की सिफारिश भी की है.

पत्र में कहा गया है, “शिक्षकों को इन छात्रों के लिए विशेष कोचिंग आयोजित करने से पहले उनके माता-पिता या अभिभावकों से संपर्क करना है. ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि खराब प्रदर्शन करने वाले छात्र इन कक्षाओं में आएं. अच्छे परिणाम दिखाने वाले शिक्षकों को मंत्री द्वारा सम्मानित किया जाएगा.”

शिक्षकों को यह भी सुनिश्चित करना है कि कक्षा दसवीं और बारहवीं के छात्रों को उच्च शिक्षा संस्थानों में शामिल होने के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षाओं की आवश्यकता के बारे में सूचित और जागरूक किया जाए और उन्हें जरूरी सहायता प्रदान की जाए. जब तक वे उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला नहीं लेते तब तक अगले शैक्षणिक वर्ष के छात्रों के संपर्क में रहें.

पत्र में आगे कहा गया है, ” NEET, CLAT, JEE  के बारे में जागरूकता पैदा की जानी चाहिए और इन प्रवेश परीक्षाओं के लिए आवेदन करने वाले छात्रों का विवरण निदेशालय को भेजा जाना चाहिए. इसके अलावा सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए प्रदान की गई 7.5 प्रतिशत सीटों के तहत आदिवासी कल्याण स्कूलों के अधिक से अधिक छात्रों को मेडिकल कोर्स में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.”

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

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