HomeAdivasi Dailyझारखंड: आदिवासी संगठन पारसनाथ पहाड़ियों को 'बचाने' के लिए शुरू करेगा यात्रा

झारखंड: आदिवासी संगठन पारसनाथ पहाड़ियों को ‘बचाने’ के लिए शुरू करेगा यात्रा

जैन समुदाय के विरोध के बाद पारसनाथ पहाड़ियों में पर्यटन को बढ़ावा देने के झारखंड सरकार के कदम पर केंद्र ने रोक लगा दी थी लेकिन अब आदिवासी भी इस जमीन पर दावा करते हुए इसे जैन समुदाय से मुक्त करने की मांग को लेकर मैदान में कूद पड़े हैं.

आदिवासी पारसनाथ पहाड़ी को ‘‘बचाने’’ के लिए एकजुट नजर आ रहे हैं. आदिवासी संगठन आदिवासी सेंगेल अभियान (Adivasi Sengel Abhiyan) ने घोषणा की है कि वह झारखंड की पारसनाथ पहाड़ी, जिसे आदिवासी समुदाय ‘मरंग बुरु’ कहता है को “बचाने” के लिए आज से एक महीने का आंदोलन शुरू करेगा.

आदिवासी सेंगेल अभियान का कहना है कि मंगलवार से शुरू होने वाली यात्रा का उद्देश्य मरंग बुरु को जैन समुदाय के “चंगुल” से बचाना होगा.

जैन और आदिवासी दोनों इस क्षेत्र पर दावा करते हैं और इसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं. जहां एक तरफ जैन इसे पारसनाथ पहाड़ी कहते हैं, वहीं दूसरी तरफ आदिवासी इसे मरंग बुरु कहते हैं.

झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ हिल्स या मरंग बुरु आदिवासी आबादी वाले क्षेत्र में एक पहाड़ है. वहां लगभग 30 मंदिर हैं जो जैन तीर्थंकरों और पर्वत पर मोक्ष प्राप्त करने वाले भिक्षुओं को समर्पित हैं.

जैन समुदाय के लिए पारसनाथ आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता है. इस समुदाय के 23वें तीर्थांकर पारसनाथ के नाम पर इस पहाड़ का नाम रखा गया है.लेकिन झारखंड की राजधानी राँची से क़रीब 140 किलोमीटर दूर गिरडीह का यह इलाक़ा आदिवासी बहुल है. आदिवासियों के लिए इन पहाड़ियों के खास सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मायने हैं. आदिवासी समुदाय इन पहाड़ों पर अपनी पारंपरिक पूजा पद्धति द्वारा पूजा करते हैं.

आदिवासी सेंगेल अभियान के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि यात्रा के दौरान एएसए कार्यकर्ता इसके अध्यक्ष और पूर्व सांसद सलखन मुर्मू के नेतृत्व में असम, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड के आदिवासी बहुल 50 जिलों में प्रदर्शन करेंगे.

सलखान मुर्मू ने कहा, “मरंग बुरु बचाओ यात्रा फरवरी के अंतिम सप्ताह में समाप्त होने से पहले देश के सभी आदिवासी बहुल जिलों को कवर करेगी.”

14 जनवरी को सलखान मुर्मू ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखकर उस स्थान की पवित्रता को बहाल करने और पारसनाथ पहाड़ियों को आदिवासियों को सौंपने की अपील की थी. उन्होंने झारखंड सरकार पर मरंग बुरू को जैन समुदाय को सौंपने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने आदिवासियों के साथ विश्वासघात किया है.

वहीं देश भर के जैन पारसनाथ पहाड़ियों को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें डर है कि इससे उन पर्यटकों का तांता लग जाएगा जो उनके पवित्र स्थल पर मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन कर सकते हैं.

जैन समुदाय के विरोध के बाद पारसनाथ पहाड़ियों में पर्यटन को बढ़ावा देने के झारखंड सरकार के कदम पर केंद्र ने रोक लगा दी थी लेकिन अब आदिवासी भी इस जमीन पर दावा करते हुए इसे जैन समुदाय से मुक्त करने की मांग को लेकर मैदान में कूद पड़े हैं. इस क्षेत्र के आदिवासी इस क्षेत्र पर अपना ऐतिहासिक दावा करते हैं.

देश की सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक संथाल जनजाति की झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है और ये प्रकृति की पूजा करते हैं.

स्थानीय आदिवासियों का कहना है कि आदिवासी के लिए ये पहाड़ ‘मरंग बुरु’ हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ संथाली और बंगाली में “सबसे बड़े पर्वत देवता” है. जबकि जैन मंदिर पहाड़ी श्रृंखला का एक हिस्सा है और सिर्फ एक पहाड़ी को जैन मंदिर माना जाता है. जबकि संथाल आदिवासियों द्वारा कई अन्य पहाड़ियों की पूजा मरंग बुरु के रूप में की जाती थी, जो प्रकृति, पहाड़ों, जंगलों और नदियों को भगवान के रूप में पूजते थे.

इस क्षेत्र के आदिवासी समुदाय को जैन समुदाय के खिलाफ कई तरह की शिकायतें हैं. इलाके के आदिवासियों ने पहले अखबार को बताया था कि जैन समुदाय अक्सर आदिवासी महिलाओं को जंगलों से लकड़ी इकट्ठा करने से रोकता है.

इसके साथ ही स्थानीय आदिवासियों का कहना है कि कुर्मी और मुसलमानों को भी पर्वत श्रृंखला के 10 किमी के दायरे में प्रवेश करने पर रोक है. इससे पहले संथाल के पवित्र स्थल को दर्शाने वाले दिसाब मांझी टांड बोर्ड को भी जैनियों द्वारा छेड़छाड़ किया गया था और हटा दिया गया था. बाद में स्थानीय लोगों द्वारा और इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों द्वारा इसे फिर से स्थापित किया गया था.

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