ओडिशा के कोरापुट जिले में एक आदिवासी नाविक ने अपने गन्ने के खेत को गिरवी रखकर एक बांस का पुल बनाया है.
नाविक जयदेव भात्रा ने इंद्रावती नदी पर जो पुल बनाया है, वो 100 मीटर लंबा है. यह पुल कोरापुट और नबरंगपुर, ओडिशा के दो दक्षिणी जिलों, को जोड़ता है. इस एक पुल से तीन पंचायतों के लगभग 10,000 लोगों को फायदा हो रहा है.
भात्रा लंबे समय से अपनी नाव के इस्तेमाल बसुली घाट पर लोगों को लाने – ले जाने के लिए कर रहे थे. उनका बेटा बनमाली भात्रा उनकी मदद करता था. इंद्रावती नदी कोरापुट की गुमुडी पंचायत को नबरंगपुर जिले की कांटासरगुडा पंचायत से अलग करती है.
कांटासरगुड़ा के लोग अपनी ज़रूरतों के लिए कोरापुट जिले के कोटपाड़ ब्लॉक पर निर्भर हैं और इसलिए उन्हें नदी पार करनी पड़ती है. चिरमा घाट पर एक पुल बनाने का प्रस्ताव था, लेकिन भूमि विवाद के कारण यह बन नहीं सका. इसलिए लोगों को बसुली घाट आकर भात्रा की नाव का इस्तेमाल करना पड़ता था.
भात्रा ने द हिंदू को बताया, “नाव इतनी पुरानी हो गई थी कि रोज इतने सारे लोगों को ढो नहीं सकती थी. जब तक सरकार चिरमा में स्थायी पुल नहीं बना लेती, तब तक लोगों ने बसुली घाट पर एक अस्थायी पुल बनाने का फैसला किया. पहले साल तो लोगों ने बांस से बने पुल के निर्माण में योगदान दिया. लेकिन, कुछ महीनों के बाद यह बंद हो गया.”
चूंकि पुल पर काम शुरू हो चुका था, और नाव से लोगों को ले जाना जोखिम भरा था, इसलिए भात्रा ने खुद पुल का काम पूरा करने का जिम्मा उठाया. इसके लिए उन्हें अपना तीन एकड़ का गन्ने का खेत गिरवी रखना पड़ा. भात्रा अब तक पुल पर एक लाख रुपए खर्च कर चुके हैं.
गुमुडा ग्राम पंचायत के सरपंच सोनारू पुजारी ने कहा कि सरकार को कई मौकों पर पुल की जरूरत के बारे में बताया गया था.
नबरंगपुर के कलेक्टर कमल लोचन मिश्रा के कहना है कि व्यक्तिगत प्रयास से बने पुल की रिपोर्ट उन्हें मिली है. वो मानते हैं कि यह शर्मनाक है की एक आदमी को अकेले पुल बनाना पड़ा. अब उन्होंने प्रस्तावित पुल के संबंध में ग्रामीण विकास विभाग से रिपोर्ट मांगी है.