आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले के रेपल्ले मंडल से एक दर्दनाक मामला सामने आया है. यनादी जनजाति के एक बुजुर्ग आदिवासी दंपति ने बताया कि वे 15 साल तक बंधुआ मजदूरी करने को मजबूर थे.
दंपत्ति का नाम नंबूरु पद्मा और अग्नि है. उन्होंने यह बात बापटल कलेक्टर कार्यालय में एक जन सुनवाई में सबके सामने रखी.
यह दंपति जोड़ा बोब्बरलंका गांव में रहता था. उन्हें काम दिलाने के बहाने कृष्णा ज़िले के एलीसेटिडिब्बा गांव ले जाया गया.
वहां उनसे मैंग्रोव जंगलों में केकड़े पकड़वाए गए. उनसे लकड़ी और अन्य वन उपज भी इकट्ठा करवाई गई. लेकिन इसके बदले उन्हें पैसे नहीं मिले. सिर्फ थोड़ा चावल और सब्ज़ी दी जाती थी.
उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें कई बार बेचा गया.
पहले एक दलाल ने उन्हें 40,000 रुपये में बेचा. इसके बाद दूसरी जगह उन्हें 70,000 में बेचा गया. आखिर में एक और व्यक्ति ने 1.2 लाख रुपये में उन्हें खरीदा.
उन्होंने कहा कि उनका जीवन गुलामी से भी बदतर बन गया.
कुछ समय पहले वे किसी तरह अपने गांव लौटे. इसमें आदिवासी कार्यकर्ताओं ने मदद की. लेकिन गांव लौटने पर उन्हें धमकियां मिलने लगीं.
उनसे कहा गया कि या तो 1.2 लाख रुपये चुकाओ या फिर वापस बंधुआ मज़दूरी करो.
पद्मा के पति अग्नि के पास अभी कोई सरकारी पहचान नहीं है. पद्मा को भी अब जाकर आधार कार्ड मिला है. बिना दस्तावेज़ों के वे किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं ले सकते.
तेलुगू देशम पार्टी की एसटी सेल के ज़िला अध्यक्ष तिरुमलशेट्टी श्रीनु ने बताया कि यह सिर्फ एक जोड़े की कहानी नहीं है.
इलाके में 400 से ज्यादा आदिवासी परिवार ऐसे हालात में जी रहे हैं. वे जंगल की उपज से गुज़ारा करते हैं. लेकिन उन्हें मेहनताना नहीं मिलता. बदले में जो बचा-खुचा खाना मिलता है उसी से वे ज़िंदा रहते हैं.
तिरुमलशेट्टी श्रीनु ने आरोप लगाते हुए कहा कि इनके पास न आधार कार्ड है, न राशन कार्ड, न स्कूल की सुविधा है, न अस्पताल की. वे आज़ादी का मतलब ही नहीं जानते. डर और दबाव में जीते हैं.
इस मामले के बाद ज़िलाधिकारी वेंकट मुरली ने जांच के आदेश दिए हैं.
उन्होंने एक विशेष टीम बनाई है. यह टीम राजस्व, पुलिस, श्रम और जनजातीय विभागों के साथ मिलकर सच्चाई का पता लगाएगी. ज़िलाधिकारी ने आश्वासन दिया कि अगर आरोप सही पाए गए तो सख्त कार्रवाई की जाएगी.
राज्य जनजातीय आयोग के अध्यक्ष डॉ. डी वी जी शंकर राव ने भी मामले को गंभीरता से लिया है. उन्होंने कहा कि आज के समय में भी अगर आदिवासी बेचे जा रहे हैं तो यह बेहद चिंताजनक है. ऐसा दोबारा न हो इसलिए सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है.
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