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मध्य प्रदेश के सिधी जिले में आदिवासी युवती की बलात्कार के बाद हत्या

मध्य प्रदेश के सिधी जिले में 17 साल की आदिवासी लड़की को गाला घोटकर मार दिया गया. खबरो की मानें तो लड़की पर धर्मेंद्र सिंह द्वारा शारीरिक संबंध बनाने के लिए जोर डाला जा रहा था. वहीं परिवार वालों का कहना है कि पुलिस तथ्यों को बदलने की कोशिश कर रही है. साथ ही पुलिस ने परिवार और आदिवासी नेताओ के जोर डालने पर बाद में केस को पोक्सो और एसटी/एससी में दर्ज करने की बात पर ध्यान दिया.

मध्य प्रदेश के सिधी जिले में 17 साल की आदिवासी युवती को धर्मेंद्र प्रधान द्वारा गाला घोटकर मार दिया गया था. धर्मेंद्र प्रधान और पीड़िता एक ही गांव से थे. खबरो की माने तो धर्मेंद प्रधान पीड़िता को काफी वक्त से शारारिक संबंध बनाने के लिए जबरदस्ती कर रहा था.

घटना के समय
अगस्त 24 की रात को धर्मेंद्र प्रधान को पता चला की पीड़िता का उसके पोड़सी के साथ संबंध है जिसके बाद धर्मेंद, धीरेंद्र सिंह के साथ पीड़िता के घर पहुंचता है. उस समय पीड़िता अपने भाभी के साथ सो रही थी.

धर्मेंद और धीरेंद्र दोनों ने पीड़िता को दूसरे कमरे में ले जाकर उसके साथ मार पीट की और पीड़िता की भाभी को धमकी भी दी की अगर उन्होंने इसके बारे में किसी को भी बताया तो वो उसे और उसके बच्चे को भी मार देंगे. बाद में धर्मेंद और धीरेंद्र ने पीड़िता के शव को पेड़ के किनारे छिपा दिया.

पुलिस ने की तथ्यों को बदलने की कोशिश
घटना के अगली सुबह ही धर्मेंद्र और धीरेंद्र को पुलिस ने आईपीसी सेक्शन 302 के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया.
वहीं पीड़िता के परिवार वालों और आदिवासी समुदाय के नेता विवेक कोल का कहना है कि पुलिस ने केस को पोक्सो और एसटी के अंतर्गत दर्ज नहीं किया.
परिवार वालों का कहना है की घटना के समय पीड़िता का बलात्कार भी किया गया था. साथ ही पीड़िता के पूरे शरीर में जख्मों के कई निशान भी थे.

पुलिस कर रही है पोस्टमॉर्टम का इंतजार
पुलिस आधिकारी एस पी वर्मा से पूछे जाने पर उन्होंने कहां की पहले गुनहगारो को आईपी सेक्शन 302 हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. पर अब प्राथमिक जांच के बाद आरोपियों पर पोक्सो और एससी/एसटी एक्ट भी लगाया जा सकता है.

अभी पुलिस पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट का इंतज़ार कर रही है. इसके बाद ही पता लगाया जा सकता है की बलात्कार हुआ था या नहीं. बलात्कार के किसी भी केस में ये सामान्यताएं देखने को जरूर मिली है की वक्त रहते पीड़िता या उसके परिवार द्वारा पहले से ही सावधानी नहीं बरती जाती. अगर वक्त रहते ही आदिवासी युवती के परिवार द्वारा छेड़छाड़ के खिलाफ आवाज उठाई जाती तो आज आदिवासी युवती की जान बच सकती थी.

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