सरकारी कॉलेज, त्रिपुनितुरा में बीए इतिहास कोर्स में दाखिला मिलने के बावजूद पिछले एक महीने से ज्यादा समय से, वायनाड के सुल्तान बतेरी की एक आदिवासी कॉलोनी के 22 साल विजेश के. ऑनलाइन कक्षाओं से बाहर हैं.
इलाके में इंटरनेट नेटवर्क वैसे ही काफी खराब है, ऊपर से उनके लिए अपनी मां की दैनिक मजदूरी में मोबाइल कनेक्शन को रिचार्ज करवाना लगभग नामुमकिन ही था. विजेश के दाखिले में पहले ही देरी हुई थी, जिसका मतलब था की वो कुछ क्लासेस पहले ही मिस कर चुके थे.
“न मैं अपना असाइनमेंट समय पर जमा कर सका, न ही नोट्स पूरे हो सके हैं. शुरू में, कॉलेज के अधिकारियों को भी हमारी मुश्किलों के बारे में नहीं पता था,” विजेश ने द हिंदू अखबार को बताया.
आदिवासी छात्रों के बीच काम करने वाले स्वयंसेवकों का कहना है कि ऑनलाइन कक्षाओं तक कम पहुंच, गैजेट्स की कमी और ऑनलाइन शिक्षा में भाग लेने के बारे में जानकारी न होना आदिवासी युवाओं के शैक्षणिक विकास को कई साल पीछे धकेल रही है.
“हमारे बच्चों की स्थिति दयनीय है, क्योंकि उनमें से कई तो पढ़ना-लिखना भी भूल गए हैं. इस साल आदिवासी छात्रों के बीच SSLC के परिणाम सिर्फ मूल्यांकन में उदारता की वजह से अच्छे थे. वास्तविकता यह है कि दसवीं पास करने वाले आदिवासी छात्र न तो दाखिले के वक्त अपना नाम लिख सकते थे, और न ही उन्हें उस पाठ्यक्रम के बारे में कोई जानकारी थी जिसके लिए उन्होंने दाखिला लिया था,” केरल पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, वायनाड में एक शिक्षण सहायक सी. मणिकंडन ने कहा.
मणिकंडन ने यह भी बताया कि सरकार का यह सोचना कि ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंच के लिए गैजेट्स उपलब्ध कराने से आदिवासी छात्रों के बीच शिक्षा सुनिश्चित होगी, गलत है.
एक सुझाव यह है कि कम से कम एसएसएलसी और हायर सेकेंडरी छात्रों को गैजेट्स का इस्तेमाल सुरक्षित तरीके से करना सिखाने की जरूरत है, और ऐसा रिटायर्ड अधिकारी और समुदाय के शिक्षित सदस्य कर सकते हैं.
स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर भी स्थिति लगभग यही है.
कई शैक्षणिक संस्थान ऐप का इस्तेमाल कर रहे थे, और ज्यादातर आदिवासी छात्रों को इसका उपयोग करने के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. इसकी वजह से वो समय पर प्रोजेक्ट और असाइनमेंट जमा नहीं कर सके.
लंबे समय से चल रही ऑनलाइन शिक्षा ने आदिवासी युवाओं और समाज के बाकि युवाओं के बीच सीखने का एक बड़ा अंतर खड़ा कर दिया है.