ौमहाराष्ट्र के नासिक जिले के इगतपुरी तालुका के पिंपरी साडो में स्थित एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय के छात्रों ने खराब भोजन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है. इन छात्रों का कहना है कि उन्हें लगातार खराब गुणवत्ता वाला भोजन परोसा जा रहा है.
छात्रों ने इस मुद्दे को लेकर कई बार शिकायत की लेकिन कोई उपयुक्त कार्रवाई न किए जाने के कारण वे आक्रोश में हैं.
गुरुवार को जब दोबारा खराब भोजन दिया गया तो छात्रों ने भोजन फेंक दिया और विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी. इसके बाद छात्रों ने आदिवासी विकास परिषद के राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष लकी जाधव से संपर्क किया.
जाधव के नेतृत्व में छात्रों ने मुंढेगांव स्थित केंद्रीय रसोई तक मार्च किया, जहां से उनके स्कूल में भोजन आपूर्ति होती है. लेकिन पुलिस ने उन्हें रसोई से लगभग दो किलोमीटर पहले ही रोक दिया.
भूख हड़ताल और ठंड में रात बिताई
छात्रों ने स्कूल के बाहर धरना देकर भूख हड़ताल शुरू कर दी और यह घोषणा की कि जब तक उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कोई जिम्मेदार अधिकारी सामने नहीं आएगा तब तक वे विरोध जारी रखेंगे.
विरोध के दौरान छात्रों ने रात का खाना खाने से इनकार कर दिया और ठंडी रात में भी धरनास्थल से नहीं हटे.
ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग
विरोध प्रदर्शन के बाद आदिवासी नेता लकी जाधव ने अधिकारियों, ठेकेदारों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.
उन्होंने इसे छात्रों के स्वास्थ्य और जीवन के साथ खिलवाड़ बताया. नासिक के उप आयुक्त सुदर्शन नागरे, प्रोजेक्ट ऑफिसर अरुणकुमार जाधव और सहायक प्रोजेक्ट ऑफिसर नितांत कांबले ने छात्रों से मुलाकात कर उनकी शिकायतों को सुनने की कोशिश की.
अधिकारियों ने छात्रों के साथ भोजन करके यह संदेश देने की कोशिश की कि उनके मुद्दों को गंभीरता से लिया जा रहा है.. अधिकारियों ने छात्रों के साथ भोजन करके यह संदेश देने की कोशिश की कि उनके मुद्दों को गंभीरता से लिया जा रहा है.
केंद्रीय रसोई की जांच के आदेश
शुक्रवार को विधायक हीरामन खोसला ने मुंढेगांव की केंद्रीय रसोई से भोजन के नमूने आदिवासी विकास आयुक्त नयना गुंडे को सौंपे. इस रसोई से 18,000 छात्रों के लिए भोजन तैयार होता है.
आयुक्त गुंडे ने इसे गंभीर लापरवाही बताते हुए कहा कि यह छात्रों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है. उन्होंने आठ दिनों में जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है.
इस तरह का ये कोई पहला मामला नहीं है जब आदिवासी छात्रों को खराब भोजन खाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इस बार तो छात्रों ने समझदारी दिखाकर किसी बड़ी दुर्घटना को होने से रोक लिया है लेकिन कई मामलों में तो आदिवासा छात्र खराब गुणवत्ता का भोजन खाने से अस्पताल पहुंच जाते हैं तब जाकर कहीं अधिकारी होश में आते हैं. कुछ दिनों तक तो सावधानी बरती जाती है लेकिन फ़िर से वही सिलसिला शुरु हो जाता है.
महाराष्ट्र के पालघर में चार महीने पहले ही दहानू परियोजना के अंतर्गत विभिन्न आश्रम शालाओं के 100 से अधिक बच्चों भी भोजन विषाक्तता से पीड़ित होने की खबर मिली थी.
ये घटनाएं केवल घटिया भोजन तक सीमित नहीं है बल्कि यह आदिवासी समुदाय के छात्रों के प्रति प्रशासनिक उदासीनता को भी उजागर करती है.
अधिकारियों को केवल तत्काल समाधान के बजाय दीर्घकालिक नीति बनाकर इन समस्याओं को सुलझाने की आवश्यकता है.