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आज़ादी के 75 साल पूरे हुए, मगर आदिवासी गांव में पीने का पानी नहीं पहुंचा

एक तरफ़ आंध्र प्रदेश में विश्व आदिवासी दिवस मनाने की तौयारी की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ़ राज्य के अल्लूरी सीतारामाराजू जिले की कुछ आदिवासी महिलाओं ने पीने के पानी के लिए वरिवार को धरना प्रदर्शन किया. यह आदिवासी महिलाएं और उनके परिवार पीने के पानी के लिए पहाड़ी नदियों पर निर्भर हैं. उन्होंने रविवार को कोय्यूरु मंडल के मुलपेटा पंचायत के जाजुलुबंडा में पानी की आपूर्ति के लिए विरोध प्रदर्शन किया.

गांव में कोंडु जनजाति के 170 लोग रहते हैं. इन सभी परिवारों के लिए सबसे नज़दीक पीने के पानी का स्रोत एक पहाड़ी नाला है. इससे अपनी रकोज़ की ज़रूरतों के लिए पानी लाने के लिए महिलाओं को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. दूरी के अलावा उस नाले तक पुहंचना एक जोखिम भरा काम है, क्योंकि रास्ते में फिसलन भरे पत्थर हैं, जो बरसात के मौसम में और भी खतरनाक हो जाते हैं.

विरोध करने के लिए इन आदिवासी महिलाएं घुटने टेककर पानी में बैठ गईं, और पानी से भरे दो-दो बर्तन अपने सिर पर रखे. उनकी मांग है कि उनके गाव में पेयजल की आपूर्ति हो, ताकि उन्हें रोज़ की इस कठिनाई से छुटकारा मिल सके.

प्रदर्शन करने वाली महिलाएं, जिनमें मर्री सीता, जेम्मिली सावित्री, कोरिया अंजलि, बुर्रा ज्योति शामिल हैं, उन्होंने हाथ जोड़कर जिलाधिकारियों से अपील की कि वे उनके गांव में सुरक्षित पेयजल सुविधा स्थापित करने के लिए कदम उठाएं.

उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि देश आजादी के 75 साल मना रहा है, लेकिन उनके पास पीने के पानी की सुविधा तक नहीं है. उन्होंने यही भी कहा कि चूंकि उनके गांव तक कोई सड़क संपर्क नहीं है, तो बीमार और गर्भवती महिलाओं को डोली में डालकर 20 किमी दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाना पड़ता है.

इन महिलाओं की शिकायत है कि राजनेता सिर्फ़ चुनाव के दौरान उनके वोट के लिए उनसे मिलने जाते हैं, लेकिन कभी भी चुनाव के बाद आदिवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए कोई पहल नहीं करते.

महिलाओं ने जिला कलेक्टर से हस्तक्षेप कर अपने गांव में पेयजल सुविधाओं का निर्माण करने का अनुरोध किया है.

जल जीवन मिशन के तहत जलापूर्ति

इस विरोध प्रदर्शन को केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन के नज़रिए से भी देखने की ज़रूरत है. जल जीवन मिशन की परिकल्पना ग्रामीण भारत के सभी घरों में 2024 तक व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए की गई थी.

कार्यक्रम अनिवार्य तौर पर स्रोत स्थिरता उपायों (source sustainability measures) को लागू करेगा, जैसे कि भूजल प्रबंधन, जल संरक्षण और रेन वॉटर हार्वेस्टिंग. जल जीवन मिशन पानी के लिए एक सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है, और इसमें सूचना, शिक्षा और संचार पर काफ़ी ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है.

जेजेएम का लक्ष्य है ‘कोई भी घर न छूटा’. अब तक सिर्फ़ तीन राज्यों – हिमाचल प्रदेश, मणिपुर और मेघालय ने जल जीवन मिशन के तहत गांवों में जलापूर्ति सुविधाएं बनाने के लिए अपने सभी आवंटित धन का इस्तेमाल किया है.

जून के महीने में आंध्र प्रदेश में जल जीवन मिशन के कार्यान्वयन पर हुई एक ज़ोनल वरकशॉप में यह बताया गया था कि यह योजना आंध्र प्रदेश के 99% गांवों में शुरू कर दी गई है. यह भी दावा किया गया है कि राज्य में पहले से ही ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की आपूर्ति के लिए सभी सुविधाएं हैं, जेजेएम का इस्तेमाल नए कनेक्शन के प्रावधान, शुद्धिकरण संयंत्रों की स्थापना और भंडारण क्षमता बढ़ाने के अलावा मौजूदा सुविधाओं में सुधार के लिए किया जा सकता है.

वर्कशॉप में दिए गए आंकड़ों के अनुसार विशाखापत्तनम जिले के चार ग्रामीण मण्डलों के 59,338 जलापूर्ति कनेक्शनों में से 22,887 कनेक्शनों का काम पूरा कर लिया गया है. बाकि को चालू वित्त वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा.

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