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छत्तीसगढ़ की ‘गोदना’ आदिवासी कला को पुनर्जीवित करने का बीड़ा युवा कलाकारों ने उठाया

रायपुर के टैटू कलाकार शैलेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि गोदना कला के लुप्त होने की मुख्य वजहों में से एक यह थी कि कई लोगों के लिए एक ही सुई का इस्तेमाल किया जाता था. टैटू बनवाने के दौरान दर्द भी होता है और कई बार इसके नकारात्मक असर भी पड़ते हैं.

छत्तीसगढ़ के बस्तर में स्थानीय लोगों के एक समूह ने क्षेत्र की सदियों पुरानी ‘गोदना’ (Godna) कला को पुनर्जीवित करने की पहल की है. कुछ स्थानीय युवक अब गोदना कला का पर्यटकों के बीच प्रचारित कर इसे फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. आदिवासियों का मानना है कि ‘गोदना’ इकलौता गहना है जो मरने के बाद भी उनके साथ रहता है.

तीर, कमान और जंगली भैंसे के सींग जैसे पारंपरिक डिजाइन के लिए पहचाने जाने वाली यह आदिम कला तेज़ी से बदलती दुनिया में विलुप्त हो रही हैं, क्योंकि लोग आधुनिक टैटू के डिजाइन की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. यह बस्तर के आदिवासी समुदाय के लिए चिंता की बात है.

ऐसे में कुछ स्थानीय युवक अब गोदना कला का पर्यटकों के बीच प्रचारित कर इसे फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. वे पर्यटकों को इसके महत्व के बारे में बता रहे हैं और सुरक्षा, स्वच्छता और अच्छी गुणवत्ता की स्याही एवं अन्य हथियारों का इस्तेमाल कर आधुनिक कलेवर के साथ इसे पेश कर रहे हैं.

जिला प्रशासन ने इस साल मई और जून में बस्तर नृत्य, कला एवं भाषा अकादमी (बादल) में गोदना और आधुनिक टैटू कला पर 15-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें करीब 20 स्थानीय युवाओं ने भाग लिया.

इसमें प्रशिक्षण के बाद ज्यादातर लोगों ने टैटू कलाकार के तौर पर काम करना शुरू कर दिया है और राजधानी रायपुर से करीब 300 किलोमीटर दूर माओवाद-प्रभावित जिले जगदलपुर में और उसके आसपास पर्यटक स्थलों पर अपने स्टॉल लगाए हैं.

उनका कहना है उनका मकसद गोदना टैटू बनाकर सिर्फ पैसा कमाना नहीं है, बल्कि इस कला को संरक्षित करना भी है.

बड़े किलेपाल गांव की 21-वर्षीया आदिवासी महिला ज्योति ने कहा, ‘‘लोग जानते हैं कि गोदना हमेशा आदिवासी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है लेकिन उन्हें इसका महत्व नहीं पता है. इस प्रशिक्षण के दौरान हमें यह बताया गया कि हम इस कला का प्रचार कैसे कर सकते हैं और इसे अपने लिए आजीविका का साधन कैसे बना सकते हैं.’’

ज्योति अपने गांव से जगदलपुर पहुंचने के लिए बस से रोजाना करीब 45 किलोमीटर का सफर तय करती हैं. वह नजदीकी तोकापाल शहर में एक सरकारी कॉलेज से विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई भी कर रही हैं.

उन्होंने बताया कि पहले ज्यादातर आदिवासी महिलाओं के शरीर पर गोदना टैटू होते थे और आदिवासी पुरुष भी इन्हें बनवाते थे.

ज्योति ने कहा, ‘‘हर डिजाइन का अपना खास महत्व होता है. ऐसा माना जाता है कि कुछ डिजाइन बुरी शक्तियों और बीमारियों को दूर रखते हैं जबकि कुछ कहते हैं कि यह इकलौता गहना है जो मरने के बाद भी लोगों के साथ रहता है. मेरी मां के चेहरे पर होठों के नीचे और माथे पर गोदना टैटू बने हुए हैं.’’

एक अन्य स्थानीय संदीप बघेल (24) और चार अन्य युवाओं ने प्रसिद्ध चित्रकोट वॉटरफॉल के सामने एक छोटा टैटू बनाने का स्टॉल लगाया है, जो साल भर पर्यटकों के बीच लोकप्रिय स्थान है.

बघेल की बचपन से ही कला और चित्रकला में रुचि रही है. उन्होंने कहा,”स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी और अपने माता-पिता के साथ खेतों में काम करना शुरू कर दिया.”

बघेल ने कहा कि लेकिन प्रशिक्षण सत्र में भाग लेने से पहले उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह एक टैटू कलाकार हो सकते हैं.

उन्होंने कहा,”पर्यटकों को पारंपरिक जनजातीय डिजाइन के साथ गोदन बनवाने में शायद ही कोई दिलचस्पी है, लेकिन जब हम उन्हें इसके महत्व के बारे में बताते हैं तो वे इसके लिए सहमत होते हैं. हम ट्रेंडिंग डिज़ाइन भी बनाते हैं लेकिन हम हमेशा लोगों को पुराने और पारंपरिक रूपांकनों के लिए मनाने की कोशिश करते हैं.”

रायपुर के टैटू कलाकार शैलेंद्र श्रीवास्तव, जिन्होंने इन युवा कलाकारों को प्रशिक्षित किया, ने कहा कि पिछले बस्तर कलेक्टर रजत बंसल को प्रशिक्षण कार्यक्रम का विचार आया था, उनका उद्देश्य समृद्ध गोदना कला, जिसे गोदनी, बाना और बानी के नाम से भी जाना जाता है, को संरक्षित करना था. आधुनिक मोड़ देकर इसे स्थानीय लोगों के लिए आजीविका का साधन बनाना है.

शैलेंद्र श्रीवास्तव ने कहा, “हम ज्यादातर अफ्रीकी और मिस्र की जनजातियों के पुराने टैटू डिजाइन ऑनलाइन ढूंढते हैं, लेकिन बस्तर क्षेत्र के नहीं क्योंकि इसे बढ़ावा नहीं मिलता है. मैं शुरू में इस बात को लेकर आशंकित था कि ये कलाकार 15 दिनों में गोदना कला कैसे सीखेंगे लेकिन उन्होंने सिर्फ एक हफ्ते में महत्वपूर्ण सुधार दिखाना शुरू कर दिया.”

उन्होंने कहा कि गोदना कला के लुप्त होने की मुख्य वजहों में से एक यह थी कि कई लोगों के लिए एक ही सुई का इस्तेमाल किया जाता था. टैटू बनवाने के दौरान दर्द भी होता है और कई बार इसके नकारात्मक असर भी पड़ते हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे सुझाव पर जिला प्रशासन ने सभी 20 कलाकारों को अच्छी गुणवत्ता के टैटू बनाने वाले उपकरण और अमेरिका निर्मित हर्बल स्याही नि:शुल्क उपलब्ध करायी.’’

श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि वह यह सुनिश्चित करेंगे कि इन गोदना टैटू निर्माताओं को स्याही की आपूर्ति किफायती मूल्य पर मिले. साथ ही उन्होंने कहा कि बस्तर के पारंपरिक गोदना डिजाइनों की एक सूची तैयार की जा रही है, जिसमें प्रत्येक पैटर्न के महत्व का उल्लेख है और इसे जल्द ही जारी किया जाएगा.

बस्तर के जिलाधीश चंदन कुमार ने कहा कि यह क्षेत्र शांति, समृद्धि एवं विकास की ओर बढ़ रहा है इसलिए इसकी कला, संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करना तथा उनको बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा कि बस्तर में युवा न सिर्फ गोदना कला में रुचि ले रहे हैं बल्कि वे इसे दूर-दूर तक प्रचारित करना चाहते हैं. उन्होंने कहा, “भविष्य में यह हमारा कर्तव्य होगा कि हम बस्तर में समुदायों के बीच प्रचलित गोदना टैटू रूपांकनों को संरक्षित करें और उनसे जुड़ी कहानियों और किंवदंतियों को भी एकत्र करें.”

(Image Credit: indianculture.gov.in)

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