जैसे-जैसे गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है…वैसे-वैसे कई राज्यों के आदिवासी इलाकों में जल संकट गहराता जा रहा है. दूरदराज की बस्तियों से आदिवासी महिलाओं को पानी जुटाने के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ रही है.
यहां हम आपको महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के आदिवासी इलाकों में पानी की किल्लत से जूझ रहे लोगों की कहानी बताएंगे…
इगतपुरी में पानी के लिए परेशानी उठाती महिलाएं
महाराष्ट्र के नासिक जिले के इगतपुरी तालुका के दारेवाड़ी इलाके में आदिवासी महिलाओं को अपने घरों के लिए पीने का पानी लाने में काफी परेशानी उठानी पड़ रही है. पहाड़ों और घाटियों से घिरे इस इलाके की महिलाओं को पानी लाने के लिए अपने छोटे बच्चों के साथ 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.
भाम बांध से पानी लाने के लिए उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
गांव में पानी की आपूर्ति करने वाले कुएं सूख चुके हैं. साथ ही दारेवाड़ी के दूसरे कुओं में भी पानी का स्तर नीचे पहुंच चुका है, जिससे पानी की गंभीर समस्या पैदा हो गई है. इस वजह से महिलाओं को सुबह-सुबह और शाम को काम से लौटने के बाद पानी के लिए पैदल ही जाना पड़ता है.
अपने छोटे बच्चों को खड़ी पहाड़ी से नीचे भाम बांध तक ले जाना और फिर उसी पहाड़ पर चढ़ना उनके लिए बड़ी चुनौती है.
इस स्थिति में महिलाओं को न केवल शारीरिक कष्ट सहना पड़ता है बल्कि उनकी जान भी जोखिम में रहती है. पानी लाने के लिए उन्हें घने जंगलों से गुजरना पड़ता है, जहां हमेशा जंगली जानवरों का डर बना रहता है.
इस जल संकट के कारण दारेवाड़ी में महिलाएं और बच्चे परेशान हैं.
ग्रामीणों की मांग है कि प्रशासन इस पर तुरंत ध्यान दे और इस क्षेत्र में पानी की आपूर्ति की व्यवस्था करे. दूरदराज के इलाकों में रहने वाली इन महिलाओं को राहत पहुंचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है.
मीडिया से बात करते हुए एक बच्ची ने कहा, “मैं पास के स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ती हूं. हमें पानी लाने के लिए पहाड़ से नीचे उतरकर बांध की ओर जाना पड़ता है. यह मेरे घर से करीब 4 किलोमीटर दूर है. स्कूल के बाद मैं अपनी मां के साथ बांध से पानी लाने जाती हूं कभी-कभी मुझे पानी लाने के लिए स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है. मुझे यह पसंद नहीं है, मुझे पढ़ना अच्छा लगता है.”
वहीं एक महिला ने कहा, “भगवान जाने ये मुश्किलें कब खत्म होंगी. हमें पानी लाने के लिए अपने बच्चों को साथ ले जाना पड़ता है और दूसरी तरफ यहां तेंदुए और सांपों का भी ख़तरा है. हमारी दयनीय जिंदगी को जानने के लिए कभी कोई नेता या अधिकारी हमसे मिलने नहीं आया. हम अब तंग आ चुके हैं, लेकिन कुछ नहीं कर सकते.”
उमरिया के आदिवासी गंदा पानी पीने को मजबूर
मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल उमरिया (Umaria) जिले का टिकुरा पठारी गांव भीषण जल संकट से जूझ रहा है.
इस गांव के पहाड़ में बसे होने के कारण जल स्रोत सूख चुके हैं. हैंडपंप के अलावा प्यास बुझाने कोइ साधन नहीं है. लेकिन गर्मी बढ़ने के साथ ही हैंडपंप पानी की जगह हवा फेंक रहा है. ऐसे में गांव के लोग पहाड़ों से उतरकर जान जोखिम में डाल कर पानी तक पहुंच रहे हैं.
एक मात्र स्रोत पहाड़ी के नीचे झिरिया में लोग घंटों पानी रिसने का इंतजार करते हैं. मजबूरी में पहाड़ के नीचे पथरीले रास्ते से जाकर गांव के लोग पानी लाते हैं और इसी झिरिया के गंदे पानी से प्यास बुझा रहे है.
गांव के लोगों को सरकारी नल-जल योजना का लाभ भी नहीं मिल सका. गांव में एक हैंडपम्प है, वो भी महीनों से हवा फेंक रहा है.
हर गांव में पेयजल मुहैया कराने के लिए सरकार नल-जल योजना के तहत पानी की टंकी और पाइप लाइन के माध्यम से ग्रामीणों के घरों तक नल से पानी पहुंचा रही है. लेकिन टिकुरा पठारी गांव के लोगों को इस योजना का भी लाभ नहीं मिल सका और गांव के लोग चट्टानों से रिसने वाली एक एक बूंद को इकट्ठा कर घाटी के नीचे से पानी ढोने को मजबूर हैं.
गांव में वर्षों से इसी तरह लोग भारी मशक्कत करके अपनी प्यास बुझा रहे हैं.
ग्रामीणों का कहना कि बच्चों से लेकर बुर्जुगों, युवा, महिला और पुरुष सुबह से ही झिर में जाकर बैठ जाते हैं और अपनी बारी का इंतजार करते हैं. उनका पूरा समय इसी में निकल जाता है और इससे दूसरे काम प्रभावित हो रहे हैं.
पहाड़ी घाटियों से आने जाने पर कई बार लोग गिर भी जाते हैं. इतना ही नहीं गिरने के कारण एक महिला का हाथ भी टूट गया था, जो वृद्ध हैं, ऐसे में उनको और भी दिक्कत है.
ग्रामीणों ने बताया कि जब हमारे गांव में किसी के घर शादी विवाह या दूसरे बड़े काम किए जाते हैं तो हमें दूरदराज से पैसे देकर पानी टैंकर के माध्यम से पानी मंगाना पड़ता है, तब जाकर हम अपना काम कर पाते हैं.
ASR में भी जल संकट
वहीं आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिले के जाजुला बांदा के सुदूर पहाड़ी आदिवासी गांव में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (PVTG) कोंडू समुदाय की महिलाओं को साफ पानी लाने के लिए हर दिन करीब दो किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
सरकारी पहल के तहत कई साल पहले अलग-अलग घरों में नल लगाए गए थे लेकिन परियोजना अभी भी अधूरी है.
मूलपेट पंचायत के अंतर्गत कोय्युरू मंडल में स्थित 180 निवासियों वाले इस गांव में कभी भी स्टोरेज टैंक या पानी की मोटर के लिए बिजली कनेक्शन उपलब्ध नहीं कराया गया.
ट्रांसफार्मर की अनुपस्थिति ने पूरी व्यवस्था को बेकार कर दिया है, जिससे आदिवासी महिलाओं को अपने परिवारों के लिए पानी जुटाने का बोझ उठाना पड़ रहा है.
आदिवासी महिलाओं ने जिला कलेक्टर से तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है. उनकी मांग बस इतनी है कि हर घर में एक चालू पानी का नल हो और उसमें पानी आए.
जल जीवन मिशन के तहत स्टोरेज टैंक, ट्रांसफॉर्मर और जल जीवन मशीन लगाकर सिस्टम को चालू किया जा सकता है. लेकिन आदिवासियों के बार-बार अनुरोध के बावजूद कोई आधिकारिक कदम नहीं उठाया गया, जिससे समुदाय संकट में है.