HomeAdivasi Dailyवक़्फ़ संशोधन कानून पर क्या है JMM का रुख?

वक़्फ़ संशोधन कानून पर क्या है JMM का रुख?

JMM ने इस अधिनियम को न केवल अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला बताया, बल्कि यह भी कहा कि यह भारत के संघीय ढांचे (Federal Structure) को कमजोर करने वाला कदम है.

रांची के टाना भगत स्टेडियम में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के 13वें महाधिवेशन की शुरुआत के साथ ही पार्टी ने एक बार फिर यह साफ़ कर दिया कि वह सामाजिक न्याय, क्षेत्रीय अस्मिता और संविधान के संघीय ढांचे के पक्ष में मज़बूती से खड़ी है.

दो दिवसीय इस अधिवेशन में कई राजनीतिक प्रस्ताव पारित किए गए. इन प्रस्तावों में वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम का विरोध भी शामिल था.

JMM ने इस अधिनियम को न केवल अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला बताया, बल्कि यह भी कहा कि यह भारत के संघीय ढांचे (Federal Structure) को कमजोर करने वाला कदम है.

पार्टी के वरिष्ठ नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने साफ़ शब्दों में कहा कि भूमि राज्य का विषय है लेकिन केंद्र ने वक्फ़ कानून में संशोधन करते वक्त किसी राज्य सरकार से राय लेना ज़रूरी नहीं समझा. यह सीधा-सीधा राज्यों के अधिकारों को कुचलने का प्रयास है.

मुख्यमंत्री और कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने अपने संबोधन में कहा कि JMM देश के मूल ढांचे को कमजोर करने वाली शक्तियों से कभी नहीं डरी है और न ही भविष्य में ऐसी शक्तियों के सामने झुकेगी.

उन्होंने कहा, “यह सरकार आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की है. जिनका हक़ छीना गया उन्हें अब उनके जल, जंगल और ज़मीन का अधिकार वापस मिल रहा है.”

वक़्फ़ कानून को लेकर JMM का यह विरोध नफरत या टकराव के आधार पर नहीं बल्कि संविधान और क्षेत्रीय स्वायत्तता की भावना के आधार पर है.

पार्टी का मानना है कि यह संशोधन सिर्फ एक धार्मिक समुदाय या संस्था का मसला नहीं बल्कि यह बताता है कि किस तरह केंद्र सरकार एकतरफा फैसले लेकर राज्यों की भूमिका को नगण्य बनाने की कोशिश कर रही है.

पार्टी ने साफ़ कर दिया है कि झारखंड में इस संशोधित कानून को लागू नहीं होने दिया जाएगा.

इसके लिए न सिर्फ कानूनी और राजनीतिक तौर पर बल्कि सामाजिक स्तर पर भी विरोध दर्ज कराया जाएगा.

JMM ने अन्य क्षेत्रीय दलों और सिविल सोसाइटी से भी इस विषय पर एकजुट होने की अपील की है.

महाधिवेशन में पास किए गए अन्य प्रस्तावों में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण, प्राइवेट इंडस्ट्रीज़ में 75% स्थानीय आरक्षण, जातीय जनगणना, सरना धर्म कोड की मान्यता और आदिवासियों को ज़मीन का स्थायी टाइटल देने की मांग प्रमुख रही.

JMM का यह अधिवेशन सिर्फ राजनीतिक नीतियों की घोषणा भर नहीं था, बल्कि यह आदिवासी, मूलवासी और हाशिए पर खड़े समुदायों की आवाज़ को और बुलंद करने का मंच था। जब वक़्फ़ कानून जैसे मुद्दों पर कोई सरकार सवाल उठाती है तो यह सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करने की कोशिश होती है — और JMM इसी रास्ते पर चल रही है.

महाधिवेशन के समापन के साथ ही पार्टी ने संकेत दे दिए हैं कि आने वाले लोकसभा चुनावों में भी वह अपने सामाजिक न्याय के एजेंडे के साथ झारखंड से बाहर, बिहार, बंगाल और असम जैसे राज्यों में अपनी भूमिका मज़बूत करने की तैयारी में है.

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