आदिवासी समुदायों के ज़मीन से जुड़े अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि अगर ज़मीन अधिसूचित क्षेत्र में नहीं आती है तो आदिवासी अपनी ज़मीन गैर-आदिवासियों को बेच सकते हैं.
फैसले में कहा गया है कि यह सौदा मजबूरी में किया गया हो और यह फर्जी या दिखावटी न होना चाहिए.
यह छूट कुछ खास परिस्थितियों में ही दी जाएगी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ज़रूरत की स्थिति का मतलब बच्चों की शादी, कर्ज़ चुकाना या दूसरी पारिवारिक ज़रूरतों के मौकों पर ज़मीन की बिक्री को रोका नहीं जा सकता. यहां भी सौदे में पारदर्शिता और उचित मूल्य पर ज़मीन बेचने की बात को प्राथमिकता दी गई है.
यह फैसला न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने दिया.
मामला मध्य प्रदेश के रतलाम जिले से जुड़ा था. यहां कुछ आदिवासी परिवारों ने अपनी 6.290 हेक्टेयर ज़मीन में से 4.440 हेक्टेयर ज़मीन एक गैर-आदिवासी को बेचने का समझौता किया था.
यह ज़मीन खेती में इस्तेमाल नहीं हो रही थी. इसे बेचने से मिले पैसे से आदिवासी अपने बच्चों की शादी और पुराने कर्ज निपटाना चाहते थे.
उन्होंने कुछ हिस्सा अपने पास भी रखा और यह बताया गया कि उनके पास अन्य गांवों में भी ज़मीन है.
कोर्ट ने पाया कि ज़मीन की बाज़ार कीमत ₹1.75 लाख प्रति बीघा था.
इस हुसाब से कुल कीमत ₹38.31 लाख बनती थी लेकिन आदिवासियों को ₹45 लाख मिले यानी सौदा बाजार कीमत से कहीं ज़्यादा दाम पर हुआ. इससे साबित हुआ कि बिक्री में शोषण या धोखाधड़ी नहीं थी.
मध्य प्रदेश सरकार ने इस सौदे को एमपी भूमि राजस्व संहिता की धारा 165 के खिलाफ बताया और कहा कि आदिवासी लोग आसानी से बहकावे में आ सकते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलीलों को खारिज कर दिया.
पीठ ने कहा कि धारा 165 की उपधारा (6) में दो भाग हैं
क्लॉज (i) कहता है कि अगर कोई ज़मीन ऐसी जगह स्थित है जहाँ ज़्यादातर आदिवासी लोग रहते हैं और जिसे सरकार ने अधिसूचित (नोटिफाइड) क्षेत्र घोषित किया है और वह ज़मीन किसी आदिवासी के नाम पर है तो उस ज़मीन को किसी गैर-आदिवासी को बेचना पूरी तरह से मना है.
यानि ऐसे इलाकों में आदिवासी ज़मीन सिर्फ आदिवासियों को ही बेच सकते हैं, गैर-आदिवासियों को नहीं.
क्लॉज (ii):
अगर ज़मीन अधिसूचित क्षेत्र के बाहर है तो आदिवासी कुछ ज़रूरी कारणों जैसे शादी, कर्ज चुकाना या बसने के लिए,
गैर-आदिवासी को ज़मीन बेच सकते हैं. लेकिन शर्त ये है कि सौदा सही हो, ज़मीन की सही कीमत मिले और यह कोई फर्जी सौदा न हो.
रतलाम ज़िले की यह ज़मीन किसी अधिसूचित क्षेत्र में नहीं आती इसलिए इस पर रोक लगाने का सवाल ही नहीं उठता.
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी.