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असम में जनजाति का दर्जा देने का वादा कर बीजेपी फँस गई है, मुख्यमंत्री के कौशल की परीक्षा होगी

बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र ने जनवरी 2019 में पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill), 2019 पर बड़े पैमाने पर विरोध के बीच इन समुदायों के लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे को मंजूरी दी थी. तत्कालीन केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम ने इन छह समुदायों को एसटी श्रेणी में शामिल करने के लिए राज्य सभा में एक विधेयक पेश किया था लेकिन उस पर मतदान नहीं हुआ और बाद में यह समाप्त हो गया.

बीजेपी (BJP) ने 2014 में अपनी ऐतिहासिक जीत से पहले किए गए वादों में से एक वादा असम के छह समुदायों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) की सूचि में शामिल करने का भी किया था. उस समय बीजेपी ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार को अपने 10 वर्षों के शासन के दौरान उनके लिए कुछ नहीं करने के लिए आलोचना भी की थी.

तब से आठ साल बीत गए हैं लेकिन ताई अहोम, मोरन, मटक, चुटिया, कोच राजबंशी और टी ट्राइब की लंबे समय से चली आ रही यह मांग अब तक पूरी नहीं हुई है.

इन 6 जातीय समूहों को असम में फिलहाल अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. हाल ही में केंद्र ने कई समुदायों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने को मंजूरी दी है. लेकिन असम के इन 6 समुदायों को फिर छोड़ दिया.

ज़ाहिर है कि ये समुदाय केन्द्र और असम में बीजेपी सरकार से नाराज़ हैं. असम के मुख्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि सरकार इस मामले की जटिलताओं को दूर करने के बाद इस मुद्दे पर आगे बढ़ेगी.

हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि उनकी सरकार और अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग करने वाले छह समुदायों के प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे को हल करने के लिए एक त्रिपक्षीय बैठक के लिए सहमति व्यक्त की है.

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि वे मौजूदा मतभेदों को कम करने और समुदायों को एसटी का दर्जा देने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए सभी पक्षों को साथ ला कर बातचीत करेंगे. इसमें सरकार, समुदाय प्रतिनिधियों और अन्य जनजातीय निकायों को शामिल करते हुए एक त्रिपक्षीय बैठकें की जाएँगी.

दरअसल, बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र ने जनवरी 2019 में पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill), 2019 पर बड़े पैमाने पर विरोध के बीच इन समुदायों के लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे को मंजूरी दी थी. तत्कालीन केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम ने इन छह समुदायों को एसटी श्रेणी में शामिल करने के लिए राज्य सभा में एक विधेयक पेश किया था लेकिन उस पर मतदान नहीं हुआ और बाद में यह समाप्त हो गया.

बीजेपी ने राज्य चुनावों से पहले इस मुद्दे को असम विजन डॉक्यूमेंट 2016-2025 (Assam Vision Document 2016-2025) में भी शामिल किया था. आख़िरकार बीजेपी असम में कांग्रेस के 15 साल के शासन को खत्म कर सत्ता में आई, लेकिन उसने अपने इस चुनावी वादे को पूरा करने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं किया.

फिर सितंबर 2020 में, असम विधानसभा ने कोच-राजबंशी, मोरन और मटक समुदायों के लिए स्वायत्त परिषद बनाने के लिए तीन विधेयक पारित किए. विपक्ष ने इस कदम की आलोचना की और सत्तारूढ़ बीजेपी पर छह जातीय समूहों के बीच “फूट डालो और राज करो की नीति” अपनाने का आरोप लगाया.

छह समुदायों में, कोच-राजबंशी 1996 के उपद्रव के कारण सबसे अधिक पीड़ित प्रतीत होते हैं. 6.9 लाख आबादी के साथ ये मजबूत समुदाय 1960 के दशक के अंत से एक अलग कामतापूर राज्य के अलावा एसटी का दर्जा देने की मांग कर रहा है.

27 जनवरी 1996 को इसे एक अध्यादेश के माध्यम से आदिवासी का दर्जा दिया गया था लेकिन इसे समय पर अधिनियमित नहीं किया गया था और तब से मामला लटक रहा था.

दूसरी ओर, असम के चाय बागानों में काम करने के लिए पूर्वी और मध्य भारत से अंग्रेजों द्वारा लाए गए आदिवासियों को राज्य के बाहर एसटी का दर्जा प्राप्त है, लेकिन असम में इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं प्राप्त है.

केंद्र ने हाल ही में पांच आदिवासी उग्रवादी संगठनों और उनके अलग हो चुके समूहों के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन इस पर कोई स्पष्टता नहीं है कि असम में टी ट्राइब के रूप में जाने जाने वाले समुदाय को कब आदिवासी का दर्जा दिया जाएगा.

ब्रू लोग अब भी वोटर लिस्ट में नहीं

जनवरी 1997 में मिजोरम के साथ जातीय संघर्ष के बाद मिजोरम से पलायन करने के बाद से 30 हज़ार से अधिक ब्रू आदिवासी त्रिपुरा में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं. ब्रू प्रतिनिधियों, केंद्र, त्रिपुरा और मिजोरम सरकारों द्वारा 2020 में हस्ताक्षरित एक त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार, सभी विस्थापित आदिवासी स्थायी रूप से त्रिपुरा में बस जाएंगे.

लेकिन इस समुदाय के लोगों को अभी तक वोटर लिस्ट में अपना नाम नहीं मिला है. ये एक ऐसा मामला है जिसने त्रिपुरा हाई कोर्ट को परेशान कर दिया है. कोर्ट ने हाल ही में भारत के चुनाव आयोग, राज्य चुनाव पैनल और त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (Tripura Tribal Areas Autonomous District Council) को नोटिस जारी किए हैं.

ग्राम परिषद चुनाव से पहले 16 सितंबर को वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया था. लेकिन इसमें उनका नाम नहीं है. ब्रू आदिवासियों की बस्तियों के लिए एडीसी जिम्मेदार है और ग्राम परिषद के चुनाव नवंबर तक होंगे.

ब्रू समुदाय के एक समूह ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर समुदाय के लोगों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किए जाने पर प्रकाश डाला था. 2020 के समझौते के मुताबिक केंद्र ब्रू लोगों के बसावट और चहुंमुखी विकास के लिए करीब 600 करोड़ रुपये का पैकेज मुहैया कराएगा.

प्रत्येक विस्थापित परिवार को भूमि का एक भूखंड, 4 लाख रुपये की सावधि जमा, दो साल के लिए 5,000 रुपये प्रति माह नकद, घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये और पुनर्वास की तारीख से दो साल के लिए मुफ्त राशन दिया जाएगा. इस समझौते के तहत त्रिपुरा सरकार जमीन मुहैया कराएगी.

भारत के उत्तर पूर्व में असम सहित कई राज्यों ने जातीय हिंसा को झेला है. इनमें से असम और त्रिपुरा में काफ़ी हद तक उग्रवाद और हिंसा से छुटकारा मिल चुका है. लेकिन इन राज्यों में जातीय सवाल (Ethnicity Question) अभी भी बेहद संवेदनशील मुद्दा है.

बीजेपी ने बेशक चुनाव के दौरान असम के कई समुदायों को जनजाति का दर्जा देने का वादा कर दिया था. लेकिन यह आसान काम नहीं है. असम के मुख्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में चाणक्य और संकट मोचक की भूमिका निभाते रहे हैं. लेकिन अपने ही राज्य में नाराज़ समुदायों को मनाने में उनके कौशल की परीक्षा होगी.

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