ओडिशा के बड़े आदिवासी क्षेत्र में आम की गुठली भोजन में एक आम चीज है. खास तौर पर दक्षिणी और पश्चिमी ओडिशा के कोरापुट, रायगढ़ा, कंधमाल, बलांगीर, कालाहांडी और बौध जैसे जिलों में जंगली आम की गुठली खाई जाती है. ख़ासतौर पर उस समय जब परिवार के सामने भोजन का संकट होता है.
यहां के आदिवासी इलाकों में आम की गुठली को टुकड़ों में तोड़कर बांस की टोकरी में रखकर एक हफ़्ते के लिए नदी या झरने के बहते पानी में छोड़ दिया जाता है. इसके बाद इन गुठलियों को धूप में सुखाया जाता है.
सूखी गुठली के टुकड़ों को पीसकर दलिया बनाया जाता है, जिसे चावल या रागी के साथ खाया जाता है.
लेकिन कई बार इन सूखी गुठलियों में किसी में अगर नमी रह जाए या फिर अगर उन्हें किसी साफ़-सुथरी जगह पर ढंग से ना रखा जाए तो इनमें फ़फूंदी लग जाती है. इस सूरत में ये गुठली स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक हो सकती है.
ओडिशा सरकार आदिवासी इलाकों में ग़रीबी घटने का दावा करती रही है. मसलन साल 2015-16 और 2019-21 के बीच ओडिशा में बहुआयामी गरीबी में 48 फीसदी की गिरावट के दावे किये गए. लेकिन इन सरकारी दावों के बावजूद ओडिशा के आदिवासी इलाकों से भूख और भुखमरी की खबरें आती रही हैं.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-2021) के मुताबिक, ओडिशा में 5 वर्ष की आयु तक के 65.6 फीसदी ग्रामीण बच्चे एनीमिया से पीड़ित थे. इसके अलावा 65.2 फीसदी महिलाएं और 49 वर्ष की आयु तक की 62 फीसदी गर्भवती महिलाएं भी एनीमिया से पीड़ित थीं.
देश की सबसे खराब गरीबी के साथ आदिवासी ओडिशा की स्थिति भारत की भूख के “गंभीर” स्तर को दर्शाती है. जो 2024 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 127 देशों में से 105वें स्थान पर है. इस स्थिति में 2016 की तुलना में केवल मामूली सुधार देखा गया है.
श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल सहित भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति भी इस मामले में बेहतर बताई जाती है.
यह अफ़सोस की बात है कि जब भारत के ग्रामीण इलाकों में भूख या भूखमरी के आंकड़े सामने आते हैं तो केंद्र सरकार ने इन आंकड़ों को स्वीकार करते हुए स्थिति को सुधारने का संकल्प लेने की बजाए आंकड़ों और तथ्यों को ख़ारिज करने की नीति अपनाई है.
आदिवासी समुदाय ओडिशा के हाशिए पर रहने वाले लोगों में से कुछ है. जो अपने नियमित आहार में आम की गुठली पर निर्भर हैं.
यह प्रथा ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में व्याप्त “अर्ध-भुखमरी की स्थिति, भूख और खाद्य असुरक्षा” को दर्शाती है. स्थानीय समुदायों के पास पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक सीमित पहुंच है और उन्हें खेती-किसानी से ज़्यादा कुछ नहीं मिलता है.
खाद्य असुरक्षा
ओडिशा के कंधमाल, कालाहांडी, मलकानगिरी और अन्य इलाकों में ज़्यादातर आदिवासी पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में रहते हैं. इन इलाकों में खेती नाम मात्र की होती है जिनका उत्पादन परिवार को पालने के लिए भी काफ़ी नहीं होता है.
इसलिए इसलिए इन इलाकों में रहने वाले आदिवासी राशन प्रणाली पर बहुत अधिक निर्भर हैं. लेकिन इन इलाकों में खाद्यान्न की आपूर्ति अनियमित है. इन इलाकों में परिवारों को राशन मासिक आधार पर मिलने के बजाय कई बार दो महीने में या तीन महीने में एक बार मिलता है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 ओडिशा में गरीबी उन्मूलन उपायों का केंद्र है. साल 2023 के अंत में भारत सरकार ने कहा कि वह अपने मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम को पांच साल के लिए बढ़ाएगी, जिससे 81.35 करोड़ लोग या सभी भारतीयों के दो तिहाई लोग लाभान्वित होंगे.
केंद्र सरकार की इस घोषणा के कुछ दिनों बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी यही किया, राज्य के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को पांच साल के लिए बढ़ा दिया, जो NFSA के तहत छूटे हुए लोगों को कवर करता है.
लेकिन अक्सर अनियमित होने के अलावा महीने का जो राशन मिलता है वह पूरी महीने परिवार का पेट भरने के लिए काफ़ी नहीं होता है. कंधमाल जिले के दूरदराज के गांवों में ग्रामीणों, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों से संबंधित लोगों के खाने में संतुलन अच्छा नहीं है. यहां के खाने में कार्बोहाइड्रेट ज़्यादा जबकि प्रोटीन और वसा न्यूनतम या न के बराबर हैं.
जिले में महिलाओं में एनीमिया और बाल कुपोषण की उच्च दर की रिपोर्ट है. एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के मुताबिक, जिले में 5 वर्ष से कम आयु के कम से कम 34.2 फीसदी बच्चे अविकसित हैं, जबकि इसी आयु वर्ग के 23.2 फीसदी बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं.
कंधमाल में 15-49 वर्ष की आयु के बीच कम से कम 48.9 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं.
ग्रामीण रागी दलिया, चावल, नमक और हरी मिर्च के दैनिक सेवन के अलावा पहाड़ों और जंगलों से मौसमी रूप से इकट्ठा की गई हरा साग, ऐमारैंथस, रतालू जैसी चीज़ों का सेवन करते हैं.
यह देखा गया है कि इन इलाकों में सितंबर, अक्टूबर और नवंबर के महीने हमेशा कम खाद्यान्न कम मिलता है. क्योंकि इस समय में जंगल में खाने के लिए ज़्यादा कुछ उपलब्ध नहीं होता है.
आम की गुठली पर बहस आम की गुठली का दलिया खाने से होने वाली मौतों के मामले ओडिशा में नए नहीं हैं. 1990 के दशक में जब जे बी पटनायक मुख्यमंत्री थे, तब दूरदराज के इलाकों में आम की गुठली का दलिया खाने से आदिवासियों की मौत की कई घटनाएं हुई थीं.
साल 2001 में पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल-भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार के कार्यकाल के दौरान रायगढ़ जिले के काशीपुर ब्लॉक में 24 आदिवासी आम की गुठली का दलिया खाने से मर गए थे.
साल 1996 में कंधमाल में मंडीपांका से 20 किलोमीटर दूर सरमुली ग्राम पंचायत के अंतर्गत बुटेंडी गांव में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.
इस तरह की घटनाएं होने के बावजूद ग्रामीण इसे क्यों खाते रहते हैं? इस पर ग्रामीणों ने बस इतना कहना है कि जब पीडीएस चावल की आपूर्ति अनियमित है और आय अर्जित करने का कोई साधन नहीं है तो जो उपलब्ध है उसे खाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
विशेषज्ञों का कहना है कि आम की गुठली का दलिया और इसी तरह की दूसरी चीजों का सेवन अत्यधिक खाद्य संकट और भूख का संकेत है.
आम की गुठली को हाशिए पर पड़े समुदायों के परिवारों के घरों में खाद्य संकट के समय खाने के लिए रखा जाता है. लेकिन अक्सर इन आम की गुठली को खाने से पहले ठीक से स्टोर नहीं किया जाता है, जिससे स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव पड़ता है.
सरकार ने जांच के आदेश दिए
तीन आदिवासी महिलाओं की मौत के बाद 27 नवंबर को ओडिशा के खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता कल्याण मंत्री कृष्ण चंद्र पात्रा ने ओडिशा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान बोलते हुए भुखमरी से मौत के आरोप को खारिज कर दिया.
उन्होंने कहा, “सेमनंका घरे जथेस्ता चौला थिला…” (उस समय परिवारों के पास पर्याप्त खाद्य आपूर्ति थी.) उन्होंने कहा कि पीड़ितों के घर गए अधिकारियों ने पाया कि उनके पास पर्याप्त राशन था.
पात्रा ने कहा कि कुछ लाभार्थियों के पास उनके राशन कार्ड के लिए ई-केवाईसी नहीं था लेकिन राशन की आवश्यकता वाले सभी लोगों को उचित आपूर्ति प्रदान की गई थी.
उन्होंने कहा कि शोक संतप्त परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई. पात्रा ने पीडीएस खाद्यान्न की वितरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए चल रहे प्रयासों के बारे भी विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि दूरदराज के क्षेत्रों में राशन केंद्र खोले जाने थे.
राज्य सरकार ने भी घटना की जांच के आदेश दिए हैं. कंधमाल के जिला कलेक्टर ने गांव का दौरा किया, प्रशासन ने प्रत्येक परिवार को 30 हज़ार रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की और इलाज करा रहे लोगों को 10 हज़ार रुपये की अतिरिक्त सहायता प्रदान की.
ओडिशा मानवाधिकार आयोग (ओएचआरसी) ने खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता कल्याण विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिवों के साथ-साथ कंधमाल कलेक्टर को नोटिस जारी कर 20 दिसंबर तक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा.
शत्रुघ्न पुजारी की अध्यक्षता वाले आयोग ने भाजपा सरकार को भूख की समस्या का समाधान करने और प्रभावित आदिवासी परिवारों को तत्काल चिकित्सा सहायता और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया.
प्रशासन के अधिकारियों, राजनीतिक प्रतिनिधियों और मीडियाकर्मियों के मंडीपांका में लगातार आने-जाने के कारण, कभी अनजान रहे इस गांव में चहल-पहल बनी हुई है.
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता देबा रंजन ने हाल ही में मंडीपांका और दामा के पड़ोसी गांव की यात्रा के दौरान कहा कि उन्होंने पाया कि ग्रामीण अभी भी भोजन की कमी के दौरान खाने के लिए आम की गुठली जमा कर रहे हैं.