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छत्तीसगढ़ की पबिया, पविया, पवीया जाति को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने का प्रस्ताव

छत्तीसगढ़ के ये समुदाय लंबे अरसे से अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल होने का इंतज़ार कर रहे थे. राज्य सरकार ने इनकी मांग को तवज्जो दी है और केंद्र को प्रस्ताव भेजा है...

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने कुछ समुदायों के बारे में सोमवार को केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है. यह प्रस्ताव पबिया, पविया, पवीया और पाव जातियों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने के संबंध में भेजा गया है.

इस प्रस्ताव को भेजने से पहले मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कांग्रेस विधायक राजकुमार यादव और इन जातियों के प्रतिनिधि मंडल के साथ मुलाकात की.

मुख्यमंत्री से मिलने के बाद प्रतिनिधिमण्डल ने बताया कि पूरे प्रदेश में इन जातियों की जनसंख्या लगभग 22 हजार है.

वैसे तो यह जनजाति पूरे प्रदेश में मौजूद है, लेकिन मुख्य रूप से ये समुदाय चंद्रपुर, रायगढ़, लैलुंगा, खरसिया, पेंड्रा, मरवाही और जशपुर में रहते हैं.

इसके बाद साय ने प्रतिनिधिमंडल को संबोधित करते हुए कहा कि इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की मांग लंबे समय से लंबित है.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने इस प्रस्ताव के साथ पूरे मामले की रिपोर्ट भारत सरकार को भेज दी है.

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस प्रस्ताव पर केंद्र की ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया आने की उम्मीद जताई है.

यह रिपोर्ट छत्तीसगढ़ के आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा पाव, पबिया, पविया, पवीया जातियों के अध्ययन के बाद तैयार की गई है.

इस रिपोर्ट में इस जाति की स्थिति की तरफ़ संकेत करते हुए इसे अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की सलाह दी गई है.

प्रतिनिधि मंडल में शामिल लोगों के अनुसार अविभाजित मध्य प्रदेश में इस समुदाय के अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र बन रहे थे.

लेकिन बाद में सरकारी दस्तावेज़ों में मात्रा की गलती के कारण पिछले 22 सालों से प्रमाण पत्र बनने बंद है.

कांग्रेस विधायक राजकुमार यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जिस दौर में लोग कलेक्टर और एसपी बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, यह समुदाय 20 साल से अपनी जनजाति साबित करने के लिए लड़ रहा है.

छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के कई राज्यों में कई समुदायों की यह शिकायत है कि मात्राओं की त्रुटि की वजह से वे अनुसूचित जनजाति की सूचि से बाहर हो गए हैं.

इस सिलसिले में लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने कई समुदायों की इस शिकायत को दूर करने के लिए कदम उठाए थे.

लेकिन इस मामले में एक ऐसा उपाय करना होगा जिसका व्यापक असर हो. लेकिन सरकारें चुनाव से पहले राजनीतिक लाभ के लिए टुकड़ों में इस समस्या का निदान करती है.

मसलन पिछले साल यानि जुलाई 2023 में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के 12 समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया था.

लेकिन उस समय इन समुदायों को छोड़ दिया गया.

अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किये जाने की प्रक्रिया काफ़ी लंबी होती है. इसके लिए सबसे पहले इस सूचि में शामिल किये जाने वाले समुदाय के बारे में शोधपत्र तैयार किया जाता है.

इसके बाद राज्य सरकार प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजती है. केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया को भेजती है.

इन दोनों ही संस्थाओं की तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद मंत्रीमंडल की बैठक में प्रस्ताव पास करके संसद के दोनों सदनों में अनुसूचित जनजाति सूचि को संशोधित करने के लिए बिल लाया जाता है.

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