हिमाचल प्रदेश के बागवानी, राजस्व और जनजातीय विकास मंत्री जगत सिंह नेगी (Jagat Singh Negi) ने नई दिल्ली में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुयाल ओराम (Juyal Oram) से मुलाकात की और वन संरक्षण अधिनियम (Forest Conservation Act) के निलंबन पर चर्चा की. जो नौतोड़ नियम के तहत भूमिहीन आदिवासियों को भूमि आवंटित करने की अनुमति देगा.
नेगी ने इस बात पर जोर दिया कि नौतोड़ भूमि (Nautor land) को बहाल करने से आदिवासी क्षेत्रों में बॉर्डर एरिया से पलायन को रोकने और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी.
नौतोड़ भूमि का मतलब केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली बंजर भूमि है, जो शहरों के बाहर स्थित है और जिसे संरक्षित वन के रूप में नामित किया गया है. लेकिन सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के साथ उपयोग के लिए आवंटित किया गया है.
नेगी ने मंगलवार को बैठक के दौरान हिमाचल प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में कई और मुद्दों पर भी चिंता जताई. जिसमें केंद्र सरकार की परियोजनाओं में तेजी लाना और बॉर्डर एरिया से पलायन को संबोधित करना शामिल है.
वहीं केंद्रीय मंत्री ओराम ने राज्य के लिए हर संभव समर्थन का आश्वासन दिया.
राज्यपाल कार्यालय में 2 साल से लंबित है प्रस्ताव
वन संरक्षण अधिनियम निलंबन का मुद्दा राजस्व मंत्री और राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला के बीच विवाद का विषय बन गया है.
नेगी ने मंजूरी में देरी पर मुखर होकर कहा कि प्रस्ताव करीब दो साल से राजभवन में लंबित है.
राज्य में नौतोड़ भूमि आवंटन के लिए फिलहाल 12 हज़ार 742 मामले लंबित हैं.
वहीं राज्यपाल ने हाल ही में अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा था कि उन्होंने प्रस्ताव को अस्वीकार नहीं किया है, बल्कि कुछ सवाल उठाए हैं. उन्होंने आश्वासन दिया था कि एक बार इन चिंताओं का समाधान हो जाने के बाद इस मुद्दे पर आगे बढ़ा जा सकता है.
नेगी इस अधिनियम को निलंबित करने के लिए दबाव डाल रहे हैं. उनका कहना है कि आदिवासी क्षेत्रों में उद्योगों, नौकरियों और संसाधनों की कमी है.
उन्होंने तर्क दिया है कि अतीत में नौतोड़ कानूनों के तहत भूमि प्रदान करने से आदिवासी परिवारों को बाग लगाने में मदद मिली, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक स्थिरता और समृद्धि आई.
नौतोड़ नियम के इतिहास पर एक नज़र
1968 में लागू नौतोड़ नियम (Nautor rule) के तहत मूल रूप से भूमिहीन लोगों को न्यूनतम करों (Minimal taxes) के साथ 20 बीघा तक ज़मीन प्राप्त करने की अनुमति थी. इस नियम से राज्य के हज़ारों भूमिहीन लोगों को फ़ायदा हुआ, ख़ास तौर पर आदिवासी इलाकों में.
लेकिन 1980 में FCA लागू किया गया, जिससे पूरे देश में नौतोड़ भूमि आवंटन पर रोक लग गई. हालांकि, यह आदिवासी इलाकों में लंबे समय तक जारी रहा. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में अधिनियम के सख़्ती से क्रियान्वयन का निर्देश दिया, जिससे आदिवासी इलाकों में भी नौतोड़ भूमि आवंटन पर रोक लग गई.
2014 में हिमाचल प्रदेश में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में आदिवासी लोगों को नौतोड़ भूमि आवंटन प्रदान करने के लिए अधिनियम के निलंबन के लिए पांचवीं अनुसूची के तहत राज्यपाल को एक प्रस्ताव पारित किया था.
शुरुआत में इस अधिनियम को 2014 से 2016 तक दो साल के लिए निलंबित कर दिया गया था. जिसमें कठिन शर्तों के कारण नौतोड़ भूमि का सीमित आवंटन किया गया था.
संशोधनों के साथ यह अधिनियम अगले दो वर्षों के लिए निलंबित रहा लेकिन बाद में मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2018 में केवल एक मामले का निपटारा किया.
दरअसल, नौतोड़ भूमि के किसी भी आवंटन को सक्षम करने के लिए राज्यपाल को वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) को निलंबित करना पड़ता है.