तेलंगाना के आदिवासी अधिवक्ता संघ सहित आदिवासी समूहों ने प्रस्तावित प्रस्तावित तेलंगाना रिकॉर्ड ऑफ राइट्स बिल, 2024 के बारे में गंभीर चिंता जताई है. क्योंकि ये आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों को कमजोर कर सकता है.
यह विधेयक तेलंगाना भूमि अधिकार और पट्टादार पास बुक अधिनियम, 2020 की जगह लेता हुआ लगता है.
इसके अलावा यह कहा जा रहा है कि यह विधेयक 1959 के तेलंगाना अनुसूचित क्षेत्र भूमि हस्तांतरण विनियमन I (1971 और 1978 में संशोधित) और पंचायतों के अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार (पेसा) अधिनियम 1996 का स्पष्ट उल्लंघन है.
तेलंगाना राज्य सरकार ने अधिकारों के रिकॉर्ड में परिवर्तन किए हैं. इसके अलावा लैंड रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की पहल भी की गई है. जो मौजूदा कानूनों के तहत आदिवासियों को दी जाने वाली सुरक्षा को ख़तरे में डालता है.
राज्य में 1959 का आंध्र प्रदेश अनुसूचित क्षेत्र भूमि हस्तांतरण विनियमन (1959 का विनियमन I) अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि की ख़रीद बिक्री पर रोक लगाता है.
आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद इन विनियमों को तेलंगाना राज्य द्वारा अपनाया गया था.
2004 में गठित कोनेरू रंगा राव भूमि समिति (Koneru Rangarao Land Committee) ने अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा सरकारी भूमि और अन्य काश्तकारों सहित भूमि जोत की अवैधता पर प्रकाश डाला है.
समिति ने पाया कि भद्राचलम एजेंसी क्षेत्र में करीब 15 हज़ार एकड़ भूमि गैर-आदिवासियों द्वारा एक अवैध सरकारी आदेश (सं. 41) के तहत कब्जाई गई थी, जिसका मूल्यांकन 2004 तक 75 करोड़ था.
इस समिति ने पूर्ववर्ती आदिलाबाद जिले के उत्नूर मंडल के बारे भी चिंता जताई है. यहां करीब 21,062 एकड़ भूमि 1950 से पहले गैर-आदिवासियों द्वारा रखे गए पुराने पट्टों के तहत दर्ज की गई थी.
इस रिपोर्ट के आधार पर अधिकारियों को यह सत्यापित करने का निर्देश दिया गया था कि क्या गैर-आदिवासियों ने ऐसी भूमि रखने के लिए कलेक्टर की अनुमति प्राप्त की थी. अगर नहीं तो भूमि को रद्द करके आदिवासियों को सौंप दिया जाना था.
इसके अलावा समिति ने गैर-आदिवासियों के पक्ष में निपटान आदेशों की समीक्षा करने का निर्देश दिया और सिफारिश की कि भूमि हस्तांतरण विनियमन (Land Transfer Regulations) के उल्लंघन में जारी किए गए किसी भी निपटान पट्टे के खिलाफ अपील दायर की जाए.
आंध्र प्रदेश सरकार ने आदेश संख्या 68 जारी किया, जिसमें पुष्टि की गई कि गैर-आदिवासियों को दिया गया कोई भी निपटान पट्टा अमान्य है.
तेलंगाना के अधिकारी अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा प्राप्त किए गए धोखाधड़ी वाले निपटान पट्टों के खिलाफ अपील दायर करने के लिए कार्रवाई करने में विफल रहे हैं.
गैर-आदिवासी बेदखली और भूमि का पुनर्वितरण
समिति ने वीरान गांवों में खेती योग्य भूमि से गैर-आदिवासियों को बेदखल करने की सिफारिश की. इसके साथ ही समिति ने कहा कि भूमि को आदिवासियों को दोबारा आवंटित किया जाना चाहिए.
इसने कोठागुडा, पूर्ववर्ती वारंगल जिले में बिल्ला नंबर (सर्वेक्षण रहित) भूमि का सर्वेक्षण करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जहां करीब 21 हज़ार एकड़ भूमि आदिवासियों और गैर-आदिवासियों दोनों के पास है.
राजस्व अधिकारियों को इन अवैध कब्ज़ों से गैर-आदिवासियों को बेदखल करने का निर्देश दिया गया. इसके अलावा समिति ने एलटीआर प्रावधानों के तहत फरारी पट्टा भूमि को गैर-आदिवासी कब्ज़े से वापस लेने का आह्वान किया.
सादा बैनामा के माध्यम से अवैध भूमि जोतों का नियमितीकरण
2016 से तेलंगाना ‘सादा बैनामा’ (transfers executed on unregistered plain papers) के आधार पर भूमि हस्तांतरण को नियमित (regularizing land transfers) कर रहा है.
इस प्रक्रिया ने गैर-आदिवासियों द्वारा अवैध भूमि जोतों के नियमितीकरण को बढ़ा दिया है, जो भूमि हस्तांतरण विनियमों से बचने के लिए पिछली तारीख के दस्तावेज प्रस्तुत करते हैं.
यानि ग़ैर क़ानूनी तरीके के से ख़रीदी गई आदिवासी भूमि के कब्ज़े को सरकार मान्यता दे रही है.
हालांकि विधेयक, 2024 की धारा 5(2) में यह प्रावधान है कि जिस भूमि का लेनदेन की रजस्ट्री नहीं है उसको रेगुलर करने के लिए 1959 के भूमि हस्तांतरण विनियमन (Land Transfer Regulation) का पालन होना चाहिए.
विधेयक तेलंगाना भूमि पट्टादार पासबुक अधिनियम, 2000 के तहत राजस्व अधिकारियों द्वारा लिए गए निर्णयों को भी मान्य करता है.
2004 में कोनेरू रंगाराव भूमि समिति ने सिफारिश की थी कि एलटीआर से पहले के अपंजीकृत दस्तावेज अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि पर गैर-आदिवासी के अधिकार को स्थापित करने के लिए सबूत के रूप में अस्वीकार्य होने चाहिए.
इसके बाद 2008 में सरकार ने एक ज्ञापन जारी किया जिसमें कहा गया कि गैर-आदिवासियों द्वारा प्रस्तुत सादा बैनामा को वैध नहीं माना जाना चाहिए.
वेमुला भास्कर राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2008) में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एलटीआर के तहत आदिवासी अधिकारों की जांच करते समय अपंजीकृत बिक्री पत्रों को वैध नहीं माना जा सकता है.
विधेयक 2024 में विरोधाभास
विधेयक, 2024 राज्य द्वारा सौंपी गई, आवंटित की गई या अलग की गई भूमि को अधिकारों के रिकॉर्ड और भूमि लेनदेन के पंजीकरण से संबंधित प्रावधानों से छूट देता है, जिससे अहम चिंताएं पैदा होती हैं.
इसके अलावा विधेयक पिछली भारत राष्ट्र समिति (BRS) सरकार द्वारा पेश किए गए 2020 अधिनियम के तहत जारी किए गए पट्टादार पासबुक को मान्य करता है.
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एलटीआर को अधिकार रिकॉर्ड अधिनियमों पर वरीयता दी जाती है, यह स्पष्ट करते हुए कि एलटीआर जांच के संदर्भ में गैर-आदिवासियों को इन अधिनियमों के तहत संरक्षण नहीं दिया जाता है.
पेसा नियमों और आदिवासी ग्राम सभाओं की अनदेखी
पंचायतों के अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार (पेसा) नियम 2011 के मुताबिक, सभी भूमि हस्तांतरणों की समीक्षा पेसा-अधिसूचित ग्राम सभा द्वारा की जानी चाहिए ताकि अधिकारों के रिकॉर्ड में सटीक भूमि एंट्री सुनिश्चित की जा सकें.
जबकि विधेयक, 2024 इस प्रक्रिया में ग्राम सभा की भूमिका को कमज़ोर करता है.
लैंड एंट्री को सौंपा गया विधेयक का अनुमानित मूल्य 1970 के एलटीआर 1 (Land Transfer Ruglation) के साथ असंगत है.
यह निर्धारित करता है कि अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा कब्ज़ा की गई भूमि को आदिवासियों से अवैध हस्तांतरण के माध्यम से अधिग्रहित माना जाता है जब तक कि अन्यथा साबित न हो जाए.
इसके अलावा विधेयक अपीलीय और संशोधन अधिकारियों द्वारा पूछताछ के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) 1908 से प्रावधान पेश करता है.
हालांकि सीपीसी अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है, जहां सिविल विवाद न्यायनिर्णयन के लिए एजेंसी नियम, 1924 लागू हैं.
तहसीलदारों को सशक्त बनाना और LTR को कमज़ोर करना
यह विधेयक तहसीलदारों को भूमि लेनदेन के लिए रजिस्ट्रार के रूप में काम करने और भूमि अभिलेखों के म्यूटेशन को लागू करने का अधिकार देता है.
यह भूमि हस्तांतरण नियम 1980 के प्रावधानों को निष्प्रभावी करता है. इस नियम के प्रावधान अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि हस्तांतरण से जुड़े दस्तावेजों को पंजीकृत करने के लिए एक अलग प्रक्रिया निर्धारित करता है.
इसके अलावा पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत पंजीकरण अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाता है.
एलटीआर के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि लेनदेन को पंजीकृत करने के लिए जिला कलेक्टर की अनुमति जरूरी है.
इसके अलावा बिल 2024 राजस्व अधिकारियों को अधिकारों को दर्ज करने और भूमि लेनदेन को पंजीकृत करने में त्रुटियों के लिए नागरिक और आपराधिक दायित्व से प्रतिरक्षा प्रदान करता है.
यह तेलंगाना भूमि अधिकार और पट्टादार पासबुक अधिनियम 2020 के बिल्कुल विपरीत है, जिसमें सेवा से बर्खास्तगी और गलत अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जैसे दंडात्मक उपाय शामिल थे.
मौजूदा सरकारी आदेशों के बावजूद, प्रवर्तन अधिकारी उन्हें लागू करने में विफल रहे हैं. लगातार सरकारें आदिवासी संरक्षण कानूनों की अनदेखी करते हुए रिकॉर्ड ऑफ राइट्स कानून पेश करती रहती हैं.
इससे अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा अवैध भूमि स्वामित्व को वैध बनाने में मदद मिलती है.
विधेयक की समीक्षा और संशोधन की मांग
पेसा क़ानून 1996 और भूमि अधिकार क़ानून 2006 आदिवासी समुदायों को सवैंधानिक अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करते हैं. इसके साथ साथ ये दोनों ही क़ानून आदिवासी समुदायों को सही मायने पर जल, जंगल और ज़मीन पर अधिकार देता है.
इसके अलावा जंगल और ज़मीन के प्रबंधन में भी ये क़ानून आदिवासी समुदायों की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हैं.
लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि राज्य सरकार ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार भी संसद से बनाए गए आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करने वाले इन क़ानूनों को ढीला करने के प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रयत्न करते रहती हैं.
इस मामले में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की सरकारें एक तरह की कार्रावाई करती दिखाई देती हैं. अगर केंद्र में बीजेपी की सरकार वन संरक्षण क़ानून में संशोधन कर इन क़ानूनों के असर को कम करती है तो कई राज्य सरकारें भी ऐसा ही करती हुई दिखाई देती हैं.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के शासन के दौरान हसदेव अरण्य में ग्राम सभाओं के विरोध के बावजूद कोयला खादानों को अनुमति देने का मामला देखा गया था.
अब तेलंगाना में एक ऐसे ही क़ानून पर चिंता प्रकट की जा रही है. यह बेहद अफ़सोस की बात है कि आदिवासी को संविधान और क़ानून से सुरक्षा प्राप्त होने के बाद भी लगातार अपनी ज़मीन की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
यह जरूरी है कि तेलंगाना राज्य सरकार तेलंगाना रिकॉर्ड ऑफ राइट्स विधेयक, 2024 के प्रावधानों की समीक्षा करे और इसे भूमि हस्तांतरण विनियम 1, 1970, PESA अधिनियम, 1996 और तेलंगाना PESA नियम, 2011 के साथ अलाइन करे.
सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके निर्णय कोनेरू रंगा राव भूमि समिति की सिफारिशों और आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए पहले जारी किए गए सरकारी आदेशों का पालन करें.