28 अक्टूबर को झारखंड के जामताड़ा में सामूहिक बालात्कार की शिकार हुई आदिवासी महिला ने खुद को फाँसी लगा ली.
महिला का शव पुलिस को पेड़ की डाल से लटका हुआ मिला. घटना से जुड़े सभी तीन आपराधियों को पुलिस द्वारा 29 अक्टूबर को गिरफ्तार किया जा चुका है.
घटना के बारे में मिली जानकारी के अनुसार तीन अपराधियों का नाम प्रदुम मोहली, बुकरू मोहली और संतोष मोहली बताया जा रहा है.
अभी तक इस मामले को आईपीसी 302 के अंतर्गत दर्ज किया गया है. हालांकि पुलिस आधिकारी द्वारा अब तक की मिली जानकारी के अनुसार आरोपियों के बायान और मामले की पूरी जांच के बाद ही इसमें आईपीसी की अन्य धारा जुड़ सकती है.
दूसरी खबर राज्य के दुमका से है. नाबालिग आदिवासी लड़की के साथ 11 लड़को ने मिलकर सामूहिक बालात्कार किया था.
इसी सिलसिले में बाल कल्याण आयोग, दुमका के अध्यक्ष अमरेंद्र कुमार यादव ने बताया, “ यह घटना दुमका की है. हमने पीड़िता से भी मामले को लेकर बातचीत की है. हमें ये पता चला है की मामले को दर्ज करने में काफी देरी हुई है.
वहीं दुमका के डीएसपी विजय कुमार ने कहा, “ मामले को दर्ज किया जा चुका है. ये घटना सिंतबर की है. घटना से जुड़े तीन अपराधियों की पहचान की जा चुकी है. बाकी आरोपियों की खोज अभी भी जारी है. जिसके लिए हमने विशेष टीम गाठित की है.
सभी आरोपियों के गिरफ़्तारी के बाद ही पता लगाया जा सकता है की आरोपियों में कोई नाबालिग या नहीं.
क्या है दुमका का पूरा मामला
25 सितंबर 2023 को 11 युवकों ने पीड़िता के साथ सामूहिक बालात्कार किया. पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक उस दिन पीड़िता छात्रवृत्ति के पैसे लेने गई थी.
आदिवासी इलाकों में बलात्कार की वारदातें बड़ी चिंता
2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड राज्य की कुल जनसंख्या का 26.2 प्रतिशत लोग आदिवासी समाज से है. यानि लगभग 80 लाख आदिवासी राज्य में रह रहें हैं.
आदिवासी महिलाओं के साथ बालात्कार की ये खबरें 80 लाख आदिवासियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठाती है.
आदिवासी समुदायों के बारे में यह माना जाता है कि अन्य समुदायों की तुलना में वहां महिलाएं अधिक सुरक्षित हैं.
महिलाओं के यौन शोषण की वारदातें आदिवासी समुदायों में ना के बराबर मिलती थीं. जबकि आदिवासी समुदायों में मुख्य धारा के समाज की तुलना में अधिक आज़ादी मिली है.
आदिवासी इलाकों के बाज़ारों, जंगलों या अन्य स्थानों पर महिलाओं की उपस्थिति हमेशा पुरूष से ज़्यादा रहती है.
समाज शास्त्री कहते है कि आदिवासी समुदायों का खुलापन और प्रेम की छूट इन समुदायों मे महिलाओं के खिलाफ़ अपराधों को कम करते हैं.
लेकिन जिस तरह से आदिवासी समुदायों की महिलाओं के खिलाफ़ बलात्कार के मामले ज़्यादा रिपोर्ट हो रहे हैं, इस धारणा को चुनौती मिल रही है.
इसलिए यह ज़रूरी है कि आदिवासी महिलाओं के ख़िलाफ़ हुए अत्याचारों के मामले में कानूनी कार्रावई के साथ साथ सामाजिक अध्य्यन भी किया जाए.
यह पता लगाया जाना बेहद ज़रूरी है कि क्या आदिवासी समाज और पुरूषों के व्यवहार में कुछ ख़ास तरह के बदलाव आ रहे हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार झारखंड में 2019 में 8760 और 2020 में लॉकडाउन के कारण महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में गिरवाट देखने को मिली है.
हालांकि 2021 में फिर से 8111 महिलाओं के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज किए गए.
ज़ाहिर है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड के आंकड़े सिर्फ उन वारदातों या अपराधों की बात करते हैं जो रिपोर्ट होते हैं. ऐसे भी कई मामले हो सतके हैं जो रिपोर्ट ही नहीं होते हैं.
आदिवासी इलाकों में आमतौर पर महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अत्याचारों को पुलिस में रिपोर्ट नहीं किया जाता है.
यहां अक्सर गंभीर अपराधों में भी फैसले पंचायतों में करा दिये जाते हैं.