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छत्तीसगढ़ में पहले चरण का मतदान: कांग्रेस को कई मुश्किलों के बावजूद आदिवासी गढ़ों में भाजपा को पछाड़ने की उम्मीद

छत्तीसगढ़ में पहले चरण में 20 सीटों पर चुनाव हो रहा है जिसमें बस्तर संभाग की 12 सीटें भी हैं जो नक्सल प्रभावित हैं.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए आज 90 में से 20 सीटों पर मतदान हो रहा है. इनमें से बारह सीटें नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र की आदिवासी सीटें हैं.  बाकी आठ निर्वाचन क्षेत्र – जिनमें एक आदिवासी सीट, मोहला मानपुर भी शामिल है जो निकटवर्ती दुर्ग डिवीजन से हैं.

2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने इन 20 सीटों में से 17 सीटें जीती थी और बाद में दो उपचुनाव जीतकर अपनी संख्या 19 तक बढ़ा ली. इस चरण में भाजपा के एकमात्र मौजूदा विधायक तीन बार के सीएम रमन सिंह हैं, जिन्होंने अपनी राजनांदगांव सीट से अच्छे अंतर से जीत हासिल की थी.

इस चुनाव में कांग्रेस अपनी कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा कर रही है जबकि भाजपा भ्रष्टाचार और धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर केंद्रित है.

बस्तर में प्रमुख मुद्दों में से एक बेरोजगारी है. वहीं एक मुद्दा ये भी है कि सरकारी नौकरियां नहीं भरी जा रही हैं और “स्थानीय लोगों के बजाय बाहरी लोगों को चुना जा रहा है.”

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2019 के बाद से बस्तर में बेरोजगारी में वृद्धि देखी गई है, जबकि छत्तीसगढ़ के बाकी हिस्सों में इसमें गिरावट आई है. हालांकि, सरकारी खेमे का दावा है कि यह एक “अच्छा संकेत” है क्योंकि आदिवासी ग्रामीण “नक्सल प्रभाव से दूर जा रहे हैं और मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं.”

दूसरा बड़ा मुद्दा पेसा कानून को मजबूत करना है, जिसका वादा राहुल गांधी ने 4 नवंबर को जगदलपुर की एक रैली में किया था. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करेगा कि भूमि अधिग्रहण के लिए ग्राम सभा की अनुमति की आवश्यकता होगी. लेकिन हराम राज पार्टी के नेता विनोद नागवंशी ने राहुल के वादे को ”फर्जी” बताया.

हमार राज पूर्व कांग्रेस नेता अरविंद नेताम की सर्व आदिवासी समाज द्वारा बनाई गई एक नई पार्टी है, जो कई आदिवासी संगठनों का एक छत्र संगठन है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे ‘बीजेपी की बी टीम’ करार दिया है.

तीसरा बड़ा मुद्दा धर्मांतरण का है. जिसे लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों एक दूसरे पर हमलावर हैं.

2013 के चुनावों में इन 20 सीटों में से 8 बीजेपी ने जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं.

2018 के चुनावों में कांग्रेस तीन सीटें हार गई थी. दंतेवाड़ा और राजनांदगांव सीटें भाजपा से हार गई थी और खैरागढ़ निर्वाचन क्षेत्र जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़-जोगी (जेसीसी-जे) के हाथों हार गई थी, जिसे 2016 में छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता अजीत जोगी द्वारा शुरू किया गया था, जिनका 2020 में निधन हो गया.

जबकि बघेल दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है, भाजपा अपने अभियान में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है.

पिछले शनिवार को दुर्ग में एक रैली को संबोधित करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बघेल और राज्य की कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “उन्होंने महादेव के नाम को भी नहीं बख्शा.”

उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा पिछले दिन किए गए दावों के संदर्भ में अपनी टिप्पणी की कि सीएम को ऑनलाइन सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म महादेव ऐप के प्रमोटरों से कथित तौर पर 508 करोड़ रुपये की रिश्वत मिली थी. बाद में केंद्र ने महादेव ऐप सहित 22 अवैध सट्टेबाजी ऐप्स और वेबसाइटों को ब्लॉक करने की घोषणा की.

वहीं सीएम बघेल ने चुनावों को प्रभावित करने के लिए लगाए गए आरोपों को ”राजनीति से प्रेरित” बताते हुए खारिज कर दिया. मोदी पर पलटवार करते हुए उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र पर अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.

इसके अलावा कोंडागांव में जहां मंत्री और पूर्व राज्य कांग्रेस प्रमुख मोहन मरकाम पिछली बार बेहद कम अंतर से जीते थे, मरकाम इस बार फिर कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. उन्हें ईसाई आदिवासियों द्वारा बनाई गई पार्टी सर्व आदि दल की आलोचना का भी सामना करना पड़ रहा है, जिसने सरकार पर धर्मांतरण के मुद्दे पर उन्हें अत्याचारों से नहीं बचाने का आरोप लगाया है.

ऐसी ही स्थिति का सामना बस्तर क्षेत्र की नारायणपुर सीट पर कांग्रेस के चंदन कश्यप को करना पड़ रहा है.

जबकि मंत्री कवासी लखमा 2018 में सुकमा के कोंटा से पांचवीं बार जीते थे, तब बीजेपी और सीपीआई भी पीछे नहीं थीं. इस बार सीपीआई के मनीष कुंजाम को बढ़ावा मिला है क्योंकि हमार राज उनका समर्थन कर रहे हैं. कुंजाम ने स्थानीय लोगों को सरकारी नौकरियां न मिलने के अलावा फर्जी मुठभेड़ों और आदिवासियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे भी उठाए हैं.

कवर्धा में मंत्री मोहम्मद अकबर का मुकाबला बीजेपी के एक लोकप्रिय चेहरे से है, जो 2021 में इलाके में भड़की सांप्रदायिक हिंसा का आरोपी है. अकबर ने पिछली बार रिकॉर्ड अंतर से सीट जीती थी.

भाजपा के स्टार प्रचारकों और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा जैसे प्रमुख हिंदुत्व चेहरों ने कवर्धा में अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए प्रचार किया है.

जहां सर्व आदि दल ने नौ उम्मीदवार उतारे हैं, वहीं हमार राज ने पहले चरण के मतदान में आठ उम्मीदवार उतारे हैं, जो कांग्रेस के वोटों में कटौती कर सकते हैं.

सीपीआई, बीएसपी, आप और जेसीसी-जे जैसी अन्य छोटी पार्टियों ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं, हालांकि उनकी संभावनाएं भी उज्ज्वल नहीं हैं.

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