राजस्थान में इसी महीने की 25 तारीख को वोट डाले जाएंगे. राजस्थान में परंपरागत तौर पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला होता रहा है.
लेकिन इस बार आदिवासी बहुल दक्षिणी बेल्ट में राजनीति थोड़ी अलग नज़र आ रही है. यहां पर दो आदिवासी पार्टीयां भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) और भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) भी चुनाव मैदान में है.
बीटीपी ने करीब 23 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. वहीं बीएपी ने राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में फैले कई ज़िलों से 19 सीटों की घोषणा की है.
राज्य के कुल आठ ज़िलों के कुछ या पूरे क्षेत्रों को पांचवी अनुसूची के हिस्से के रूप में घोषित किया गया है.
आदिवासी बहुल क्षेत्र बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ हैं. जबकि आंशिक रूप से जनजातीय क्षेत्र उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, सिरोही और पाली हैं.
वहीं बीएपी ने एक सूचि जारी की है. जिसमें मौजूदा विधायक राजकुमार रोत डूंगरपुर के चौरासी से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे हैं और बीएपी के संस्थापक में से एक कांतिताल रोत डूंगरपुर से चुनाव लड़ेंगे.
आदिवासी पार्टी ने आदिवासी लोंगो के लिए चिंता जताते हुए कहा की आज तक आदिवासी लोंगो के साथ अत्याचार ही हुआ है. बीजेपी और कांग्रेस केवल वादा ही करती है.
लेकिन अब ऐसा नहीं होगा आदिवासी पार्टी सत्ता में आने के बाद पुरानी पेंशन योजना, सब्सिडी वाले सिलेंडर, स्वास्थ्य योजना आदि जैसी कल्याणकारी योजनाओं के लिए काम करेगी.
राजकुमार रोत ने बताया की “भारतीय शहरी क्षेत्रों की तुलना में आदिवासी क्षेत्र लगभग अभी भी 100 साल पीछे हैं.
उन्होंने कहा कि आदिवासी पार्टी खाना, कपड़ा और मकान की बुनियादी जरूरतों पर ही ध्यान देने का काम करेगी. इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी डूंगरपुर के आदिवासी लोगों के विकास और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ध्यान देगी.
2018 के चुनाव में वैसे तो एक बार फिर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला रहा था. लेकिन दक्षिण राजस्थान में बीटीपी के प्रदर्शन ने सबको चौंका दिया था.
बीटीपी ने अपने पहले चुनाव में दो सीटें – चोरासी और सागवाड़ा – जीती थीं. वहीं और कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में यह पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी.
इसके बाद राजनीतिक में बदलती विचारधारा के साथ बीटीपी के दोनों विधायक रोत और सागवाड़ा विधायक रामप्रसाद डिंडोर ने पार्टी छोड़ दी और बीएपी में शामिल हो गए हैं.
जिसका गठन सितंबर में हुआ था. 9 अक्टूबर को, चुनाव आयोग ने राजस्थान चुनाव के लिए BAP को हॉकी स्टिक और गेंद का चुनाव चिन्ह आवंटित किया है.
हांलाकि वर्तमान चुनावों की मांगों पर रोत ने कहा है की “संविधान ने जो हमें अधिकार दिया है बस इतना ही चाहिए. इसके अलावा कुछ और हम नहीं मांग रहें.
दुर्भाग्य की बात है की केंद्रीय शक्तियों के बावजूद संवैधानिक आरक्षण के महत्व और आवश्यकता का लाभ आदिवासी नहीं उठा पा रहा है.
वहीं बीएपी के संस्थापक कांतिलाल रोत ने कहा की राजस्थान में अधिक भील जनजाति के लोग रहते है. और इनकी मांग हमेशा ज़मीनो को लेकर रही है.
कांतिलाल ने बताया की इस बार की चुनाव में सत्तारूढ़ सरकारें राज्य और केंद्र दोनों जगहों से आदिवासी लोगों की जमीनों से बाहर करना चाहती है.
इसके साथ ही उन्होंने कहा की भाजपा और कांग्रेस को बार-बार ये याद दिलाने की जरुरत नहीं है की आदिवासी जमीन से जुड़े लोग हैं.
वहां के नेताओं ने आरोप लगाया है की आदिवासियों को उनका अधिकार कभी नहीं दिया गया है और हमेशा उनके योग्य अधिकारों से कम मे ही चुप कराया गया है.
इनकी इतिहास संस्कृति और पहचान की मांग के साथ-साथ इनका धर्म भी राजनीति के कारण लुप्त होते जा रही है.
यहां के ग्रामीणों को पानी की गंभीर चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. दिन प्रतिदिन इनकी संकट और भी बदतर होते जा रही है.
ट्रायबल पार्टी के नेताओं ने आरोप लगाया है की आदिवासी उनकी प्राथमिकताओं की अंतिम सूची में आते हैं.
“आरक्षण का पूरा उद्देश्य यही है की उत्पीड़ित समुदाय को आगे लाना है. उनकी भाषा और संस्कृति के लिए बीजेपी और कांग्रेस कोई भी काम नहीं कर रही है.
ट्राइबल पार्टी का एक ही मुख्य उद्देश्य है की आदिवासियों के साथ-साथ अनुसूचित जाति और ओबीसी और अन्य लोगों के लिए काम करना है.