देश के संविधान की व्यस्था के अनुसार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) को राजनीतिक आरक्षण के साथ-साथ रोज़गार और शिक्षा में बराबरी के मौके देने के लिए आरक्षण (Reservation) मिलता है.
लेकिन यह हर 10 साल के बाद नवीकृत किया जाता. क्योंकि सरकार ने आरक्षण को हर 10 साल के बाद नवीकृत करने का प्रावधान किया गया है.
अब इस नियम को हटाने के लिए सुप्रीम र्कोट में एक याचिका दर्ज की गई है. जिस पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख बताई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की इस मामले की सुनवाई 21 नवंबर को होगी.
याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ वकील सीए सुंदरम ने कहा कि मुख्य मुद्दा यह होगा कि क्या आरक्षण की अवधि बढ़ाने वाले संवैधानिक संशोधनों ने संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन किया है.
इसके साथ ही उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 334 का भी जिक्र किया है. जिसमें उन्होंने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 334 में एक निश्चित अवधि के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति(ST/SC) के लिए सीटों के आरक्षण के विशेष प्रावधान और लोकसभा, राज्य विधानसभाओं में नामांकन द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय के विशेष प्रतिनिधित्व को समाप्त करने का उल्लेख है.
इस मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान बेंचने(A five-judge Constitution bench) की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़(Chief Justice D Y Chandrachud) ने कहा कि वह 104वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम की वैधता की जांच करनी चाहिए. जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए कोटा अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया है.
इसके साथ उन्होंने जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा के साथ मिलकर कहा है कि 104वें संशोधन की वैधता उस सीमा तक निर्धारित की जाएगी. जहां तक यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर लागू होती है. क्योंकि एंग्लो इंडियंस के लिए आरक्षण संविधान के प्रारंभ से 70 साल की समाप्ति के बाद समाप्त हो गया है.
इसके अलावा याचिका पर शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कहा है की पहले वह संशोधनों के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण के बारे में विचार करेंगे.
इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि कार्यवाही का शीर्षक, संविधान के अनुच्छेद 334 का मामला होगा.
जहां एक ओर सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति महिलाओं को आरक्षण दे रही है. वहीं दूसरी तरफ समाज का एक तबका कहता है कि आरक्षण की व्यवस्था देश से ख़त्म हो जानी चाहिए. इसी सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में लोकसभा और विधान सभा में मिलने वाले आरक्षण के 10 साल के बाद नवीकृत होने वाले 104वें संशोधन को र्कोट में याचिका दर्ज करके चुनौती दे रहे है.
लोक सभा में 84 सीटें अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई है.