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दलित, आदिवासी और ओबीसी के लिए आरक्षण के बिना महिला आरक्षण बिल अधूरा – राहुल गांधी

कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पर बोलते हुए सरकार से बिल को लागू करने में देरी करने से बचने की सलाह दी. इसके अलावा उन्होंने आदिवासी और अन्य वंचित तबकों की महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग भी उठाई.

लोक सभा में महिला आरक्षण बिल पर बोलते हुए राहुल गांधी ने (Rahul Gandhi in Parliament) कहा कि यह बेहतर होता अगर नए संसद भवन (New Parliament Building) की शुरूआत राष्ट्रपति करतीं. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ना सिर्फ़ देश की महिलाों का ही प्रतिनीधित्व करती हैं बल्कि वे एक आदिवासी समुदाय से आती हैं.

उन्होंने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि महिला आरक्षण एक बड़ा और सकारात्मक कदम है. लेकिन इस बिल में आदिवासी, दलित और अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण दिया जाना चाहिए था.

उन्होंने महिला आरक्षण बिल पर बोलते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार यह बिल वास्तव में महिलाओं को उचित प्रतिनीधित्व देने की बजाए अन्य मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए लाया गया है. 

राहुल गांधी ने कहा कि महिला आरक्षण बिल को लागू करने के लिए जनगणना या फिर परिसिमन के इंतज़ार की ज़रूरत नहीं है. उन्होंने ज़ोर दे कर कहा कि जब तक यह पता नहीं होगा कि देश में दलित, अन्य पिछड़ी जातियों और आदिवासियों की संख्या कितनी है, तब तक सभी वर्गों की महिलाओं को उचित प्रतिनीधित्व देना संभव नहीं होगा. 

अपने भाषण के समापन में उन्होंने कहा कि यूपीए के ज़माने में जाति जनगणना की गई थी. उसके आंकड़े सरकार को जारी करने चाहिएं. उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि अगर सरकार ये आंकड़े जारी नहीं करती है तो विपक्ष ये आंकड़े जारी कर सकता है.

आदिवासी जनगणना की ज़रूरत

यह हो सकता है कि राहुल गांधी ने संसद में महिला आरक्षण पर जो सवाल उठाया वह काफी हद तक राजनीति का हिस्सा है. कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी दल अन्य पिछड़ी जातियों को बीजेपी के खिलाफ़ एकजुट करने का प्रयास कर रही हैं.

लेकिन जहां तक आदिवासी जनगणना का सवाल है यह आदिवासी पहचान और विकास दोनों से जुड़ा हुआ एक अहम सवाल है. देश के कई राज्यों में आदिवासी यह मांग कर रहे हैं कि जनगणना के फॉर्म में उनकी पहचान के लिए अलग से एक कॉलम होना ही चाहिए. 

इसके अलावा 2014 में देश भर में आदिवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में प्रोफेसर खाखा की अध्यक्षता वाली कमेटी ने एक रिपोर्ट दी थी. इस रिपोर्ट में भी यह सिफ़ारिश की गई थी कि देश के आदिवासियों और ख़ासतौर से विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों की जनगणना होनी चाहिए.

कमेटी का तर्क था कि सरकार को आदिवासी जनसंख्या के बारे में ठीक ठीक आंकड़े नहीं मिलने से योजनाओं को बनाने और लागू करने में दिक्कत आती है. 

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