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महिला आरक्षण बिल: आदिवासी और दलित महिलाओं का प्रतिनीधित्व बढ़ेगा, आरक्षित सीटें नहीं

नारी शाक्ति अधिनियम बिल (Women reservation bill ) के तहत महिलाओं को आरक्षण देने की मांग उठ रही है. इस बिल के अंतर्गत आदिवासी महिलाओं को अनुसूचित जनजाति के आरक्षित सीटों का ही 33 प्रतिशत दिया जाएगा. इसलिए आदिवासियों के लिए संसद में सीटों की संख्या में कोई भी बढ़ोतरी नहीं की गई है.

18 सितंबर देश के लिए बहुत ऐतिहासिक रहा है. संसद के दोनों सदन अब नए भवन (New parliament ) से काम कर रहे हैं. इस नई इमारत में 18 सितंबर से 21 सितंबर तक संसद का एक विशेष सत्र (Special session ) आयोजित किया जा रहा है. यह सत्र पांच दिन का होगा.

सेशन के दूसरे दिन कानून और न्याय मंत्री ने लोकसभा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल (Women reservation Bill) पेश किया. अगर इस बिल को लोकसभा से मंजूरी मिल जाती है तो इसे फिर राज्यसभा में पेश किया जाएगा. दोनों ही सभा में पास होने के बाद इसमें राष्ट्रपाति के हस्ताक्षर होगें और फिर इसे एक्ट बनाया जाएगा. जिसे फिर पूरे देश में लागू किया जाएगा

बिल को पहले भी किया गया है पेश

इस बिल को पहले भी कई बार दोनों ही सभा में पेश किया गया था. 1996 में लोकसभा में यह बिल यूपीए सरकार द्वारा पेश किया गया था. उसके बाद भी इसे एनडीए सरकार द्वारा चार बार पेश किया गया था. लेकिन यह बिल फिर भी पास नहीं हुआ.

2010 में इस बिल को लोकसभा से मंजूरी मिल गयी थी. लेकिन राज्यसभा में इसे मंजूरी नहीं मिल पाई.

बिल में क्या कहा गया है?

नारी शाक्ति वंदन अधिनियम के तहत महिलाओं को लोकसभा और विधानसभा की सीटों में 33 प्रतिशत यानी एक तहाई आरक्षण देने की बात कही गई है. यह आरक्षण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनाजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा.

लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सीटें आरक्षित हैं. इन आरक्षित सीटों में से एक तिहाई सीटें अब महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी.

इस समय लोकसभा की 131 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं. इनमें से अनुसूचित जाति के लिए 84 सीटें और आदिवासियों यानि अनुसूचित जनजाति के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं.

महिला आरक्षण विधेयक के क़ानून बन जाने के बाद इनमें से 43 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. इन 43 सीटों को सदन में महिलाओं के लिए आरक्षित कुल सीटों के एक हिस्से के रूप में गिना जाएगा.

इसका अर्थ ये है हुआ कि संसद और विधान सभाओं में दलित और आदिवासी वर्ग की महिलाओं की संख्या भी बढ़ेगी. लेकिन कुल मिला कर इन वर्गों के लिए संसद और विधान सभा में आरक्षित वर्तमान सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं आएगा.

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