HomeAdivasi Dailyमणिपुर में हिंसा का एक साल: मैतेई-कुकी दंपत्ति अलग-अलग रहने को मजबूर,...

मणिपुर में हिंसा का एक साल: मैतेई-कुकी दंपत्ति अलग-अलग रहने को मजबूर, भविष्य को लेकर आशंकित

मणिपुर हाई कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का निर्देश दिया गया था. जिसके बाद घाटी में स्थित मैतेई और पहाड़ी में स्थित कुकी-ज़ो आदिवासी समूहों के बीच साल भर चलने वाला जातीय संघर्ष पिछले साल 3 मई को शुरू हुआ था.

मणिपुर में पिछले साल मई में जातीय हिंसा भड़कने के बाद कई मैतेई-कुकी दंपतियों को अलग-अलग रहना पड़ रहा है. महीने में सिर्फ एक बार मिलना, बच्चों को नहीं देख पाना और भविष्य में रिश्ता टूटने का डर उनकी नियति बन गया है.

जातीय संघर्ष से प्रभावित राज्य में इंफाल घाटी में मैतेई बहुतायत में हैं तो कुकी समुदाय के लोग पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे हैं. राज्य में अब भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है जहां अंतरजातीय विवाह करने वाले दंपत्ति अब तक इस हिंसा का दंश झेल रहे हैं.

3 मई, 2023 के बाद से हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग विस्थापित हो गए.

इन दंपतियों की अनेक करुणा भरी कहानियां हैं. एक मां है जो महीने में एक बार अपने बच्चों से मिल पाती है तो एक पिता ने अपनी बेटी के जन्म से अब तक उसे नहीं देखा है. यहां तक कि ऐसे हालात बन गए हैं कि परिवारों पर टूटने का खतरा भी पैदा हो गया है.

जातियों के बीच टकराव के हालात ऐसे हैं कि एक महिला को लगता है कि कहीं उसका पति उसे छोड़ तो नहीं देगा. वहीं एक शादीशुदा जोड़ा सोच रहा है कि उनका भविष्य अब क्या होगा. भविष्य को लेकर इन लोगों के मन में अनिश्चितता बनी हुई है.

कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली इरेने हाओकिप शादी के बाद इंफाल में रहने लगीं. 42 वर्षीय हाओकिप को पिछले साल कुकी बहुल चुराचांदपुर में अपने माता-पिता के पास लौटना पड़ा. वहीं उनके पति और पांच साल का एक बेटा तथा तीन साल की बेटी इंफाल में ही रह रहे हैं.

हाओकिप ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘‘मेरे पति निर्माण मजदूर के रूप में काम करते थे. मेरी उनसे मुलाकात बिष्णुपुर में पड़ोस में एक मकान के निर्माण के दौरान हुई थी. हमें प्यार हो गया. वह मुझसे मिलने अक्सर इलाके में आते थे. हमने 2018 में शादी कर ली और हमारे दो बच्चे हुए.’’

बिष्णुपुर मैतेई बहुल इंफाल और कुकी बहुल चुराचांदपुर के बीच है. यहां पहले दोनों समुदायों के लोग रहते थे और अब इसे ‘बफर जोन’ माना जाता है.

हाओकिप ने कहा, ‘‘मेरे पति ने पिछले साल मुझे मेरे माता-पिता के पास भेज दिया. उन्हें संघर्ष शुरू होने के बाद घाटी में मेरी सुरक्षा की फिक्र थी. बच्चे उनके साथ हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि मैतेई के बच्चे होने की वजह से वे चुराचांदपुर में सुरक्षित नहीं हैं.’’

हाओकिप हर महीने पड़ोसी राज्य मिज़ोरम में अपने पति और बच्चों से मिलने जाती हैं. इसके लिए उन्हें एक तरफ से 15 घंटे सफर करना होता है.

उन्होंने बताया, ‘‘वह (पति) वहां बच्चों को भी लेकर आते हैं. कई अन्य दंपति भी ऐसा कर रहे हैं. हम महीने में एक बार मिलते हैं और अपने-अपने घर वापस आ जाते हैं. मेरे बच्चे मेरी कमी महसूस करते हैं लेकिन यह जिंदा रहने और मां की ममता के बीच किसी एक चीज को चुनने जैसा है.’’

कई स्थानीय लोग बताते हैं कि मणिपुर में मैतेई-कुकी विवाह पहले असामान्य नहीं होते थे और इन्हें लेकर कभी कोई सामाजिक समस्या नहीं रही. दोनों समुदाय के लोग आपस में घुल-मिल जाते थे.

समस्या बीते साल तीन मई को तब शुरू हुई जब मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग के खिलाफ पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला गया था और हिंसा भड़क गई.

कुकी समुदाय के लैशराम सिंह हिंसा शुरू होने के करीब एक महीने बाद ही पिता बने थे लेकिन उन्होंने अब तक अपनी बेटी का चेहरा नहीं देखा है.

जब उन्हें 2022 में अपनी पत्नी के गर्भवती होने का पता चला था तो खुशी से फूले नहीं समाए सिंह ने अपनी बेटी के लिए कई सपने देखे थे. इस दंपति ने जून महीने में अपनी पहली संतान के जन्म से पहले कपड़ों और खिलौनों की खरीदारी की. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था.

हिंसा शुरू होने के बाद सिंह कुकी बहुल पहाड़ी क्षेत्र में आ गए और उनकी पत्नी अचनबा, जो मैतेई हैं, वहीं रुकी रहीं. अचनबा के माता-पिता की पांच साल पहले मौत हो गई थी और उन्हें पिछले साल मई में इंफाल घाटी में एक राहत शिविर में जाना पड़ा जहां उन्होंने जून में एक बच्ची को जन्म दिया.

सिंह ने पिछले 11 महीने से अब तक अपनी बेटी का चेहरा नहीं देखा है.

वहीं अचनबा को कभी-कभी डर लगता है कि यह दूरी कहीं उनके रिश्ते को खत्म नहीं कर दे. उन्होंने कहा, ‘‘न तो मैं विधवा हूं और न ही तलाकशुदा. फिर पता नहीं यह किस तरह का अलगाव है.’’

पिछले साल तक महिलाओं के बाजार इमा कीथेल में एक दुकान चलाने वाली कुकी समुदाय की निर्मला अब पहाड़ी क्षेत्र में रहती हैं और उनके पास आजीविका का कोई स्थायी स्रोत नहीं है. उनके पति मैतेई हैं और अपने बेटे और माता-पिता के साथ इस समुदाय के बाहुल्य वाले इंफाल के सुगनू इलाके में रहते हैं. शुरू में निर्मला के पति पैसे भेजते थे लेकिन अब उन्होंने ऐसा करना बंद कर दिया है.

निर्मला को डर लगता है कि कहीं उनके पति उन्हें छोड़ नहीं दें.

मैतेई समुदाय की पेमा दिंपू और उनके कुकी पति के बीच अक्सर यह चर्चा होती है कि उन्हें किसी और राज्य में जाकर बस जाना चाहिए. पेमा इंफाल में रहती हैं, जबकि उनके पति पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं.

कुकी-ज़ो और मैतेई समूह 3 मई को अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित करेंगे

वहीं मणिपुर में जातीय संघर्ष के एक साल पूरे होने के उपलक्ष्य में कुकी-ज़ो और मैतेई नागरिक समाज संगठनों ने शुक्रवार, 3 मई को कई कार्यक्रमों की योजना बनाई है.

एक तरफ जहां कुकी समूहों ने इसे अपने खोने वाले लोगों के लिए “स्मरण” और अपने लोगों के “जागृति” के दिन के रूप में मनाने का फैसला किया है. वहीं दूसरी तरफ मैतेई संगठनों ने कहा है कि वे इसे “नार्को-आतंकवादियों द्वारा समर्थित अवैध अप्रवासियों के आक्रामकता के दिन” के रूप में मनाएंगे.

मणिपुर हाई कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का निर्देश दिया गया था. जिसके बाद घाटी में स्थित मैतेई और पहाड़ी में स्थित कुकी-ज़ो आदिवासी समूहों के बीच साल भर चलने वाला जातीय संघर्ष पिछले साल 3 मई को शुरू हुआ.

इस संघर्ष में अब तक 220 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, हजारों लोग घायल हुए हैं और हजारों लोग बेघर हो गए हैं. हजारों लोग राज्य के अंदर और बाहर दोनों जगह राहत शिविरों में रह रहे हैं.

चुराचांदपुर में कुकी आदिवासी निकाय इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने एक सार्वजनिक अपील जारी कर 3 मई को बंद का आह्वान किया है.

आईटीएलएफ ने कहा, “इस महत्वपूर्ण अवसर के हिस्से के रूप में हम कुकी-ज़ो समुदाय के सभी सदस्यों से स्मरण और एकजुटता के प्रतीक के रूप में हर घर पर एक काला झंडा फहराने का आग्रह करते हैं. इसके अलावा सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, संस्थानों और बाजारों से अनुरोध किया जाता है कि वे हमारे शहीद नायकों के सम्मान और श्रद्धांजलि के संकेत के रूप में इस दिन बंद रखें.”

इसमें कहा गया है, “आइए हम अपनी यात्रा पर विचार करने के लिए एक समुदाय के रूप में एक साथ आएं, अपनी एकता की पुष्टि करें और कुकी-ज़ो लोगों के लिए एक उज्जवल भविष्य के प्रति अपने संकल्प को मजबूत करें.”

इसके अलावा आईटीएलएफ ने चुराचांदपुर जिले में जिला आयुक्त कार्यालय के पास “वॉल ऑफ रिमेंबरेंस” पर एक स्मरण कार्यक्रम की योजना बनाई है. कार्यक्रम में विशेष प्रार्थनाएं आयोजित की जाएंगी और भाषण दिए जाएंगे.

कांगपोकपी जिले में कुकी-ज़ो नागरिक समाज संगठनों ने भी इसी तरह का आह्वान किया. कांगपोकपी में कुकी इनपी मणिपुर (KIM) के जंघौलुन हाओकिप ने कहा, “फैजांग में शहीदों के कब्रिस्तान में हमारे मृतकों के सम्मान में एक कार्यक्रम होगा और बाद में शाम को हम उनके लिए मोमबत्तियां भी जलाएंगे.”

3 मई को “कुकी-ज़ो जागृति दिवस” ​​कहते हुए KIM ने कहा, “यह मणिपुर राज्य सरकार के तहत हमारे लोगों के प्रणालीगत उत्पीड़न और उत्पीड़न के खंडहरों से हमारी भूमि और हमारे समाज के क्रांतिकारी परिवर्तन की दिशा में कुकी-ज़ो लोगों के लिए महान जागरूकता के दिन के रूप में याद किया जाएगा.”

इस बीच मैतेई समूह इम्फाल पूर्व में शुमांग लीला सांगलेन में एक कार्यक्रम आयोजित करेगा. कार्यक्रम के दौरान उन 35 से अधिक मैतेई लोगों का पता लगाने की अपील की जाएगी जो पिछले साल हिंसा भड़कने के बाद से लापता हैं.

(Representative image)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments