डोंगरिया कोंध एक भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी वेदांता के बॉक्साइट खनन का सालों से विरोध कर रहे हैं.
डोंगरिया कोंध अपने इस विरोध के कारण राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रही है.
हाल ही में इन्होंने चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है. क्योंकि इन आदिवासियों का कहना है कि खनन के विरोध को रोकने के लिए सरकार ने इन पर झूठे मामले दर्ज किए हैं.
आइए आज जानते है, डोंगरिया कोंध आदिवासी कौन है और डोंगरिया कोथ बनाम वेदांता कंपनी मुद्दा क्या है?
डोंगरिया कोंध ओडिशा में स्थित नियमगिरि पहाड़ियों में रहते हैं. यह पहाड़ियां दक्षिण-पश्चिमी ओडिशा के रायगड़ा और कालाहांडी जिलों में फैली हुई है.नियमगिरि घने जंगल, गहरी पहाडियों और खबसरत अरनों को क्षेत्र है.
ऐसा कहा जाता है कि डोंगरिया कोंथ, कोंध आदिवासियों की उपजनजाति है. 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या लगभग 8000 हैं.
डोंगरिया कोंध के पड़ोसी इन्हें डोंगरिया कहते हैं. इनका अपना नाम झरनिया है, यानि जलधाराओं के रक्षक.
डोंगरिया कोंध के पड़ोसी इन्हें डोंगरिया इसलिए कहते है क्योंकि डोंगर का अर्थ है पहाड़िया.
डोंगरिया आदिवासी ज्यादातर पहाड़ों, जंगलों और ऊंचे इलाकों में निवास करते हैं.
डोंगरिया समाज की महिलाएं हो या पुरुष दोनों ही अपने बालों को हेयरक्लिप से सजाते हैं. वहीं महिलाएं खुद को और आकर्षित दिखाने के लिए अपने बालों को फूलों से सजाती है.
इसके अलावा डोंगरिया कोंध की महिलाएं नाक पर तीन अंगूठियां, गले में अंगूठियां और मोती की माला पहनती हैं. फूलों के अलावा महिलाओं के बालों में खुरपी की तरह दिखने वाला एक छोटा सा हथियार भी गूंथा होता है.
यह आदिवासी कुवी नामक भाषा बोलते हैं. डोंगरिया कोंध के अधिकतर लोग पांरपरिक कपड़े पहनते हैं.
लेकिन आजकल के युवाओं में जींस, टी-शर्ट और शर्ट का भी प्रचलन हैं. डोंगरिया आदिवासियों को वन में मौजूद पौधों और वन्यजीवों का विशेषज्ञ जान है.
यह आदिवासी जंगल से आम, अनानास, कटहल और शहद जैसे जंगली खाद्य पदार्थ इकट्ठा करते हैं.
नियमगिरि के इन जंगलों में ऐसी जड़ी-बूटियां भी पाई जाती है, जो अब दुलर्भ हो चुकी है.
डोंगरिया आदिवासी इन जड़ी बूटियों का इस्तेमाल हड्डी के फ्रैक्चर, मलेरिया और सांप का काटना जैसे कई बीमरियों के इलाज के लिए करते हैं.
डोंगरिया आदिवासियों का रोज़गार डोंगरिया आदिवासी जंगलों पर कई फसलों की खेती करते है. जिनमें संतरे, केले, अदरक, मीठा पापीता आदि शामिल हैं. इन फलों को यह बाज़ारों में जाकर बेचते है.
इसके अलावा यह आदिवासी जंगलों से 200 विभिन्न खाद्य पदार्थ इकट्ठा करते हैं.
उन्हें पहाड़ियों से बहुत कम ही वनोपज की आवश्यकता पड़ती है. यह आदिवासी मुर्गी, सुअर, बकरी और भैंस भी पालते हैं.
डोंगरिया आदिवासियों के अपने स्थानीय देवी-देवताओं, नियम राजा, पहाड़ियों और झरनों के प्रति अटूट श्रद्धा है.
इनकी कला में भी यह भलीभांति झलकता है. डोंगरिया कौंध बनाम वेदांता कंपनीवेदांता एक भारतीय बहुराष्ट्रीय खनन कंपनी है.
वेदांता पर यह आरोप है कि उन्होंने खनन की अनुमति मिलने से पहले ही, लांजीगढ़ गाँव में कन्वेयर बेल्ट पर काम करना शुरू कर दिया.
यह कन्वेयर बेल्ट बॉक्साइट को सीधे रिफाइनरी तक लाने का काम करेगा.
रिफाइनरी की इजाजत सरकार ने इस शर्त पर दी की किसी भी जंगल का उपयोग नहीं किया जाएगा,
डोंगरिया कोंध बनाम वेदांता कंपनी
वेदांता एक भारतीय बहुराष्ट्रीय खनन कंपनी है. वेदांता पर यह आरोप है कि उन्होंने खनन की अनुमति मिलने से पहले ही, लांजीगढ़ गाँव में कन्वेयर बेल्ट पर काम करना शुरू कर दिया.
यह कन्वेयर बेल्ट बॉक्साइट को सीधे रिफाइनरी तक लाने का काम करेगा.
रिफाइनरी की इजाजत सरकार ने इस शर्त पर दी की किसी भी जंगल का उपयोग नहीं किया जाएगा,
लेकिन वेदांता कपनी ने 60 हेक्टेयर ग्रामीण जंगल पर कब्जा कर लिया, कंपनी पर यह भी आरोप है कि इन्होंने किनारी गांव पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया,
इस गाँव में रहने वाले सैकड़ों माझी काँध आदिवासियों को शरणार्थी बनाकर दूसरे इलाकों में बसाया गया.
इन आदिवासियों के पास खेती के लिए भूमि तक उपलब्ध नहीं है.इन शरणार्थियों में से कुछ वेदांता कंपनी के लिए काम कर रहे है.
लेकिन बाकी के आदिवासी जैसे- तैसे अपना गुजारा करते हैं. वेदांता का यह खनन 23 वर्षों तक प्रति दिन 16 घंटे चलेगा.डोंगरिया कॉध ने वेदांता के इस खनन का पूरी तरह से विरोध किया.
जब वेदांता कपंनी की एक जीप को पहाड़ के पवित्र पठार पर ले जाया गया, तो आदिवासियों ने आक्रोश में आकर वे जीप जला दी.
2007-2008 में उन्होंने कंपनी के खिलाफ नियमगिरि आंदोलन किया था. डॉगरिया काँध का यह आंदोलन रोकने के लिए उन पर माओवादियों का समर्थन करने, पुलिस को परेशान करने, खनन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने जैसे कई अपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं.
इन अपराधिक मामलों को डोंगरियां कोंध ने झूठा बताया है. ओडिशा के डोंगरियां कौंध ने यह फैसला किया कि जब तक उनके ऊपर से यह अपराधिक मामले हट नहीं जाते वे चुनाव का बहिष्कार करेंगे.