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ST दर्जे की मांग को लेकर कुड़मी समाज का ‘रेल रोको’ आंदोलन वापस लेने की घोषणा के बाद भी जारी

आंदोलन के कारण ट्रेनों के कैंसिलेशन और डायवर्जन के चलते गया जंक्शन सहित कोडरमा स्टेशन के बुकिंग काउंडर पर रिफंड को लेकर काफी भीड़ बनी रही.

झारखंड और ओडिशा में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को लेकर कुर्मी समुदाय के सदस्यों द्वारा नाकेबंदी के कारण बुधवार को दक्षिण पूर्व रेलवे (SER) और ईस्ट कोस्ट रेलवे (ECoR) के दायरे में आने वाली कई ट्रेनों को रद्द कर दिया गया या उनका मार्ग बदल दिया गया. जिनमें प्रीमियम राजधानी एक्सप्रेस और वंदे भारत एक्सप्रेस भी शामिल हैं.

एसईआर ने एक विज्ञप्ति में कहा कि कुल सात ट्रेनें रद्द कर दी गईं और नौ अन्य का मार्ग बदल दिया गया. इसमें कहा गया है कि कुर्मी समाज के चल रहे आंदोलन के कारण जिन ट्रेनों का मार्ग बदला गया उनमें पटना-रांची वंदे भारत एक्सप्रेस और हावड़ा-मुंबई दुरंतो एक्सप्रेस शामिल हैं. जबकि रद्द की गई ट्रेनों में हावड़ा-मुंबई गीतांजलि एक्सप्रेस और हटिया-खड़गपुर एक्सप्रेस शामिल हैं.

इस बीच ईस्ट कोस्ट रेलवे ने एक अन्य विज्ञप्ति में कहा कि दिन के लिए कई ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है और उनका मार्ग परिवर्तित कर दिया गया है. जिनमें भुवनेश्वर-नई दिल्ली दुरंतो एक्सप्रेस और भुवनेश्वर-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस शामिल हैं.

इसमें कहा गया, “कुड़मी आदिवासी समाज का आंदोलन, जिसे माननीय कोलकाता उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार कल रद्द कर दिया गया था, ने आज एक नया मोड़ ले लिया है और झारखंड के विभिन्न स्थानों जैसे चक्रधरपुर के पास मनोहरपुर, गोमो और मुरी के आसपास के अन्य स्थानों पर आंदोलन हो रहा है.”

अधिकारियों ने बताया कि टोटेमिक कुर्मी विकास मोर्चा (टीकेवीएम) के सदस्य कथित तौर पर बुधवार सुबह पश्चिमी सिंहभूम जिले के घाघरा स्टेशन पर पटरियों पर बैठ गए.

बड़ी संख्या में कुर्मी समुदाय के सदस्य झारखंड के मुरी जंक्शन के बाहर इकट्ठा हुए और विरोध प्रदर्शन किया. अधिकारियों ने बताया कि रांची के मुरी में करीब 500 आंदोलनकारियों को सुरक्षा बलों ने स्टेशन से एक निश्चित दूरी पर रोक दिया.

रांची रेलवे डिवीजन के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (सीपीआरओ) निशांत कुमार ने पीटीआई को बताया, “आंदोलनकारियों को ट्रेन की आवाजाही बाधित करने से रोकने के लिए मुरी में पर्याप्त बल तैनात किया गया है।”

एक अधिकारी ने बताया कि जिला प्रशासन ने मंगलवार शाम छह बजे से अगले आदेश तक मुरी रेलवे स्टेशन के पास सिल्ली सर्कल में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी है. धारा 144 चार या अधिक व्यक्तियों के गैरकानूनी जमावड़े और समूहों में सार्वजनिक आंदोलन को रोकती है.

वहीं गया-धनबाद रेल सेक्शन के गोमो स्टेशन पर भी कुर्मी समाज की और से बुधवार को अनिश्चितकालीन ‘रेल रोको’ आंदोलन का व्यापक असर ट्रेनों के परिचालन पर पड़ा.

बुधवार की दोपहर करीब 12 बजे करीब एक हज़ार से ज्यादा की संख्या में कुर्मी समाज के आंदोलनकारी गोमो स्टेशन के रेल ट्रैक पर आकर बैठ गए और प्रदर्शन करने लगे.

आंदोलन की सूचना मिलते ही नई दिल्ली से पुरी जाने वाली नई दिल्ली पुरी पुरुषोत्तम एक्सप्रेस और कोसी हटिया सुपर एक्सप्रेस को गया जंक्शन पर रुकी रही. इस दौरान यात्री काफी परेशान रहे. इसके बाद इन ट्रेनों को रूट बदलकर कोडरमा बरकाकाना के रास्ते परिचालित कराया गया.

आंदोलन के कारण ट्रेनों के कैंसिलेशन और डायवर्जन के चलते गया जंक्शन सहित कोडरमा स्टेशन के बुकिंग काउंडर पर रिफंड को लेकर काफी भीड़ बनी रही.

हालांकि, कुर्मी संगठन द्वारा रेल रोको आंदोलन की घोषणा के बाद वापस ले लिया गया था. यही कारण रहा कि रेलवे द्वारा रद्द किए गए और रूट बदले गए ट्रेनों के आदेश को मंगलवार की देर शाम वापस ले लिया गया था. लेकिन बुधवार को अचानक आंदोलनकारी रेल ट्रैक पर आकर रेल रोको आंदोलन शुरू कर दिया.

पहले अधिकारियों ने रेल रोको आंदोलन की घोषणा के बाद से एहतियात के तौर पर झारखंड और ओडिशा में क्रमश: दक्षिण पूर्व रेलवे (एसईआर) और पूर्वी तटीय रेलवे (ईसीओआर) के अंतर्गत मंगलवार को कम से कम 11 ट्रेन को रद्द कर दिया था और 12 अन्य का मार्ग बदल दिया था.

मंगलवार को पश्चिम बंगाल में आदिवासी कुर्मी समाज के नेता अजित महतो ने कहा था, ‘‘कुर्मियों द्वारा आहूत अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन वापस ले लिया गया है क्योंकि पुलिस हमारे वरिष्ठ नेताओं को परेशान कर रही है. हम 30 सितंबर को पुरुलिया में भविष्य की कार्रवाई पर सामूहिक निर्णय लेंगे.’’

हालांकि, झारखंड के अग्रणी कुर्मी संगठन ‘टोटेमिक कुर्मी विकास मोर्चा’ (टीकेवीएम) के अध्यक्ष शीतल ओहदार ने दावा किया था कि वे लोग बुधवार को आंदोलन जारी रखेंगे.

कई कुर्मी संगठनों ने समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने और कुरमाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर दबाव बनाने के लिए 20 सितंबर से झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के नौ रेलवे स्टेशन पर रेल रोको का आह्वान किया है.

पिछले साल भी हुआ था आंदोलन

पिछले साल सितंबर और अप्रैल 2023 में भी कुर्मी संगठनों के हजारों लोगों ने लगातार पांच दिनों तक झारखंड में कई स्टेशनों पर धरना दिया था. इस आंदोलन की वजह से दोनों बार रेलवे को तकरीबन 250 ट्रेनें रद्द करनी पड़ी थीं. हावड़ा-मुंबई रूट सबसे ज्यादा ज्यादा प्रभावित हुआ था. एनएच-49 भी कई दिनों तक जाम रहा था और सैकड़ों गाड़ियां जहां की तहां फंस गई थीं.

कुर्मी समाज की मांग

रेल रोको अभियान में शामिल आंदोलनकारियों का साफतौर पर करना है कि जब तक कुड़मी समाज को एसटी का दर्जा नहीं दिया जाता है और कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जाता तब तक वे इस अनिश्चितकालीन रेल रोको आंदोलन जारी रखेंगे.

कुर्मी या कुड़मी समुदाय लंबे वक्त से अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा में 13 जातियों में से 12 जातियों को 1950 में शेड्यूल्ड ट्राइब के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. हालांकि कुर्मी जाति को इससे बाहर रखा गया था. इसके लिए कुर्मी समाज 72 साल से अपने समाज को आदिवासी समाज का दर्जा देने की मांग कर रहा है.

कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग संसद के अलावा झारखंड और पश्चिम बंगाल की विधान सभाओं में भी उठाई जाती रही है.

बंगाल के सांसद अधीर रंजन चौधरी कई बार लोकसभा में यह मुद्दा रख चुके हैं. जमशेदपुर से सांसद रहे सुनील महतो, जमशेदपुर की पूर्व सांसद आभा महतो संसद में इसे लेकर समय-समय पर सवाल उठाते रहे हैं.

कुर्मी समाज की मांग पर आदिवासियों का विरोध

वहीं दूसरी तरफ कुड़मियों की इस मांग पर आदिवासी समाज को सख्त ऐतराज है. यूनाइटेड फोरम ऑफ ऑल आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन (यूएफएएओ) के नेता और बंगाल निवासी सिद्धांत माडी का कहना है कि कुड़मियों की यह मांग आदिवासियों की पहचान पर हमला है. कुड़मी परंपरागत तौर पर हिंदू हैं और वे गलत आधार पर आदिवासी दर्जे के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं.

झारखंड की पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने पिछले दिनों आदिवासियों की एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि कुड़मी समाज की नज़र अब आदिवासियों की जमीन-जायदाद पर टिकी है. उनकी मंशा आदिवासियों के लिए सुरक्षित संवैधानिक पदों को हाईजैक करने की है. इसे आदिवासी समाज कतई बर्दाश्त नहीं करेगा. अपने हक-अधिकार और अस्तित्व की रक्षा के लिए समस्त आदिवासियों का एकजुट रहना होगा.

ST की सूचि में समुदायों को शामिल करने पर बहस

पिछले एक साल में संसद में बार बार यह मुद्दा आता रहा है. क्योंकि सरकार की तरफ से अलग अलग राज्यों में कई समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के बिल पेश किये. हर बार विपक्ष की तरफ से सरकार को चेताया गया कि इस मामले में सरकार को एक व्यापक बिल लाना चाहिए.

क्योंकि देश के अलग अलग राज्यों से इस तरह की मांग लगातार होती रही है. लेकिन सरकार ने विपक्ष की सलाह और चेतावनी को खारिज कर दिया. यह एक ऐसा मुद्दा है जो मणिपुर या झारखंड नहीं बल्कि असम और कई अन्य राज्यों में नए आंदोलन को जन्म दे सकता है.

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