सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग दिसंबर के पहले सप्ताह गोरखा समुदायों के कुछ समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए दिल्ली कूच करने की योजना बना रहे हैं. यह भाजपा का किया एक वादा है जो साढ़े चार साल से अधूरा है.
भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में 11 पहाड़ी समुदायों को आदिवासी दर्जा देने का वादा किया था. लेकिन अब तक गोरखा समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिल पाया है.
मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग की सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) भाजपा का सहयोगी दल है. इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक सीएम तमांग ने शुक्रवार को गंगटोक में विभिन्न जातीय समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की है.
यह बताया गया है कि केंद्र सरकार पहाड़ी समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के मुद्दे पर संवेदनशील है. यह भी पता चला है कि प्रेम सिंह तमांग ने केंद्र सरकार के उच्च अधिकारियों से बैठक के लिए समय माँगा है.
वहीं ऐसा भी बताया जा रहा है की प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा से भी मुलाक़ात करेंगे.
आदिवासी दर्जा देने और दार्जिलिंग-तराई-दुआर क्षेत्र के लिए स्थायी राजनीतिक समाधान निकालने में भाजपा सरकार की विफलता 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी और उसके सहयोगियों के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी का कारण बन सकती है.
सिक्किम विधानसभा चुनाव आमतौर पर लोकसभा चुनाव के साथ होते हैं. जो समूह आदिवासी दर्जे की मांग कर रहे हैं उनमें भुजेल, गुरुंग, मंगर, नेवार, जोगी, खास, राय, सुनुवर, थामी, यक्का (दीवान) और धीमल शामिल हैं.
ये समुदाय दार्जिलिंग क्षेत्र के अलावा सिक्किम की अधिकांश आबादी में से एक हैं. बंगाल और सिक्किम दोनों की सरकारें इन समुदायों को आदिवासी दर्जा देने के लिए अपनी सिफारिश पहले ही केंद्र को भेज चुकी हैं.
केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने इन 11 समुदायों को जनजातीय दर्जा देने की याचिका की जांच करने और सिफारिश करने के लिए 2016 में एक समिति का गठन भी किया था.
उस समय से ही समिति का तीन बार पुनर्गठन किया गया है और 2019 में जनजातीय मामलों के मंत्रालय के संयुक्त सचिव एमआर शेरिंग की अध्यक्षता वाली एक टीम द्वारा संकलित अंतिम रिपोर्ट ने भारत के रजिस्ट्रार जनरल (ओआरजीआई) के कार्यालय पर पूरी जिम्मेदारी डाल दी थी.
किसी समुदाय या उसके किसी समूह या उपसमूह को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देना एक राजनीतिक फ़ैसला होता है. वैसे तो इस सिलसिले में एक लंबी प्रक्रिया तय की गई है लेकिन यह फ़ैसला काफ़ी हद तक केंद्र सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है.
समिति द्वारा रिपोर्ट सौंपे जाने से पहले ही आरजीआई (Registrar General of India) ने विभिन्न आधारों पर एसटी का दर्जा देने के लिए बंगाल और सिक्किम सरकारों द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को दो बार खारिज कर दिया था.
भारत के लगभग हर उस राज्य में जहां आदिवासी आबादी बसती है यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. इस सिलसिले में असम, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बड़े आंदोलन भी हुए हैं.
2024 में लोकसभा के चुनाव होंगे और इस बात में हैरानी नहीं होनी चाहिए कि जो बड़े समुदाय अनुसूचित जनजाति का दर्जा माँग रहे हैं वे अपनी माँग को मनवाने के लिए बीजेपी और केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ाने की कोशिश करेंगे.