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सरकार की उपेक्षा से ओड़िशा के 150 आदिवासी परिवारों में भ्रम की स्थिति बनी

स्थानीय निवासियों का कहना है कि यहाँ किसी भी ज़मीन पर कोई निशान नहीं हैं. हमने उन जमीनों को अपना बना लिया है जहां हम पीढ़ियों से रह रहे हैं. आरआई से लेकर तहसीलदार तक, हमने कई बार उनसे हमारी ज़मीनों की पहचान करने का आग्रह किया है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

एक तरफ जहां ओडिशा सरकार ने कटक के टांगी-चौद्वार ब्लॉक में आदिवासियों को जमीन उपलब्ध कराकर अपनी पीठ थपथपाई. वहीं दूसरी तरफ करंजी पंचायत के अंतर्गत आने वाले गोडाधुआ गांव के 150 आदिवासी परिवारों की मुश्किलें अभी खत्म होती नहीं दिख रही हैं.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहाड़ी जंगलों से घिरे इस गांव में रहने वाले करीब 150 आदिवासी परिवार पीढ़ियों से वन भूमि पर बसे हुए हैं. लेकिन हर साल टैक्स देने के बावजूद उन्हें नहीं पता कि कौन सी जमीन उनकी है.

1999 में सरकार ने वहां रहने वाले प्रत्येक आदिवासी परिवार को 4 डिसमिल जमीन पट्टे पर दी. लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने कभी जमीन का सीमांकन नहीं किया और इसलिए उन्हें नहीं पता कि सही जमीन कहां है. दर-दर भटकने के बावजूद अधिकारियों ने कथित तौर पर उनकी बात अनसुनी कर दी है.

स्थानीय निवासी ने कहा, “यहाँ किसी भी ज़मीन पर कोई निशान नहीं हैं. हमने उन जमीनों को अपना बना लिया है जहां हम पीढ़ियों से रह रहे हैं. आरआई से लेकर तहसीलदार तक, हमने कई बार उनसे हमारी ज़मीनों की पहचान करने का आग्रह किया है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.”

इससे पहले 1972 में आदिवासियों को खेती के लिए कथित तौर पर दो एकड़ जमीन भी दी गई थी. हालांकि, ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि सरकार ने कभी भी उनकी कृषि भूमि की पहचान नहीं की. ऐसे में परिवारों को जहां भी जमीन मिलती है, वे उस पर खेती कर रहे हैं.

वहीं दूसरी ओर इस गड़बड़ी पर कुछ बेईमान लोगों की नजर पड़ गई है. कथित तौर पर कुछ दलाल खाली पड़ी वन भूमि पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं.

ग्रामीणों ने भूमि अभिलेखों की शीघ्र पहचान नहीं करने पर आगामी चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दी है.

इस बीच टांगी-चौद्वार के तहसीलदार ने कहा कि ग्रामीणों से चर्चा के बाद उचित कदम उठाया जाएगा.

आदिवासी समुदाय का भूमि हस्तांतरण मुद्दा

इन दिनों ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के लोगों को अपनी जमीनें गैर-आदिवासियों को बेचने की मंजूरी देने संबंधी राज्य सरकार का फैसला गरमाया हुआ है. पिछले हफ्ते राज्य सरकार के इस फैसले के विरोध में विधानसभा में विपक्षी पार्टियां जमकर हंगामा कर रही हैं.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस ने सदन में अपना विरोध प्रदर्शन और तेज़ कर दिया और राज्य मंत्रिमंडल का फैसला वापस लिए जाने की मांग की.

विपक्ष के सदस्य आसन के सामने आ गए और उन्होंने बीजू जनता दल (बीजद) सरकार के खिलाफ नारेबाजी की. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी.

सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद भाजपा विधायकों ने राज्यपाल रघुबर दास से मुलाकात कर उन्हें जनजातीय समुदाय से जुड़े भूमि हस्तांतरण के मामले पर एक ज्ञापन सौंपने के लिए राजभवन तक मार्च किया.

वहीं कांग्रेस सदस्यों ने ओडिशा के अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (पीईएसए) अधिनियम, 1996 के उचित कार्यान्वयन की भी मांग की.

दरअसल, ओडिशा मंत्रिमंडल ने 14 नवंबर को एक कानून में संशोधन करने का फैसला किया जिसके बाद अनुसूचित क्षेत्रों में रह रहे अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोग उप जिलाधिकारी से एक लिखित अनुमति के साथ अपनी जमीन गैर-आदिवासियों को बेच सकें.

इस उद्देश्य के लिए ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (एसटी द्वारा) विनियमन, 1956 को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई थी. हालांकि दो दिन बाद सरकार ने फैसले पर रोक लगा दी.

भाजपा इसे पूरी तरह वापस लिए जाने की मांग कर रही है.

ऐसे में विपक्ष के हंगामे और फैसला वापस लेने के जबरदस्‍त दबाव के बीच ओडिशा सरकार ने शुक्रवार को अनुसूचित जनजाति के लोगों को अपनी जमीन गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने की अनुमति देने वाले अपने पहले कैबिनेट फैसले की समीक्षा करने का फैसला किया.

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में शुक्रवार को हुई कैबिनेट बैठक में इस फैसले की समीक्षा का प्रस्ताव लिया गया. 

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