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महाराष्ट्र: गढ़चिरौली में आंदोलन करने वाले आदिवासी है या माओवादी

एक तरफ़ माओवादी कहते हैं कि पुलिस ने आम आदिवासियों पर लाठीचार्ज किया है. वहीं माओवादियों पर आरोप है कि उन्होंने 15 दिन में कम से कम 3 आदिवासियों की हत्या कर दी है.

महाराष्ट्र(maharashtra) के गढ़चिरौली ज़िले (gadchiroli district) के तोड़गट्टा (todgatta) में पिछले 15 दिनों में तीन आदिवासियों की हत्या हो चुकी है. इन हत्यों के बाद पूरे इलाके में दहशत का माहौल बना हुआ है.

इस दहशत की दो अलग-अलग वज़ह बताई गई है. एक पक्ष का दावा है कि यहां पर आदिवासी आंदोलन कर रहे हैं और पुलिस ने आंदोलनकारी आदिवासियों पर बर्बरता की है.

वहीं पुलिस प्रशासन का कहना है कि तथाकथित आंदोलन माओवादी कर रहे हैं.

तोड़गट्टा के प्रदर्शनकारियों (todgatta demonstrator) के अनुसार वे 8 महीनों से नीलाम की गई छह लौह अयस्क खदानों के खिलाफ शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे थे. इस आंदोलन में लगभग 70 से अधिक आदिवासी शामिल थे.

लेकिन 20 नवंबर को पुलिस आधिकारियों द्वारा अंदोलन पर रोक लगा दी गई. प्रदर्शनकारियों द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक उनके आठ नेताओं को पुलिस द्वारा अलग- अलग कर दिया गया और सभी नेताओं को बलपूर्वक हेलीकॉप्टर से ले गए.  नेताओं के फोन भी जब्त कर लिए गए है.

इन आठ नेताओं के नाम मंगेश नरुटी, प्रदीप हेडो, साई कावडो, गिल्लू कावडो, लक्ष्मण जेट्टी, महादु कावडो, निकेश नरुटी और गणेश कोरिया बताए जा रहे हैं.

ये भी आरोप लगाया गया है की पुलिस आधिकारी द्वारा प्रदर्शन स्थल में बने अस्थायी घर या तोड़ दिए गए या फिर जला दिए गए.

प्रदशनकारियों द्वारा पुलिस पर आरोप लगाए जा रहे हैं की वे उनके साथ लाठी से मार पीट कर रही है और करीब 21 प्रदर्शनकारियों को पुलिस अपने साथ ले गई.

ये भी दावा किया गया है की आठ नेताओं के साथ-साथ जिन 21 अन्य प्रदर्शनकारियों को उठाया गया था,  उन्हें वर्तमान में एटापल्ली पुलिस स्टेशन में रखा गया है.

इन सभी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 353 लगाई गई है.

दूसरी तरफ पुलिस आधिकारियों का कहना है कि आम आदिवासियों का इस आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है.

उनके अनुसार माओवादियों (Maoism) द्वारा अब तक तीन आदिवासियों की हत्या कर दी गई है. तीसरी घटना 24 नवंबर देर रात हुई. जहां माओवादियों द्वारा एक आदमी को घसीट कर अपने कोर्ट (जन अदालत) ले गए.

जहां आदिवासी किसान पर यह आरोप लगाया गया की उसने एक महिला के साथ मुठभेड़ की योजना बनाई थी.

जिसके जुर्म में माओवादियों द्वारा उसकी हत्या कर दी गई. इस मृत का नाम रामजी चिन्ना अत्राम बताया जा रहा है. जिसकी उम्र 28 वर्ष थी.

25 नवंबर को कुछ गाँववासियों को रामजी चिन्ना का शव मिला था. इसके शव के ऊपर माओवादी के हस्ताक्षर वाले पर्चे चिपके हुए थे. शव मिलते ही गाँववासियों द्वारा इसे पुलिस थाने पहुंचाया गया.

इसे पहले, 23 नवंबर की देर रात टिटोला गांव में माओवादियों ने कमांडो के पिता लालसु वेल्दा की पत्थर मारकर हत्या कर दी थी, जो खुद पुलिस वार्डन थे. 14 नवंबर को आदिवासी दिनेश गावड़े को भी माओवादियों द्वारा मार दिया गया.

पुलिस आधिकारी द्वारा ये भी दावा किया जा रहा है की माओवादी ने खनन के विरोध प्रदर्शन के दौरान बंद का ऐलान किया था. जिसके बाद क्षेत्र में एक के बाद एक हत्याएं की जा रही है.

इसके अलावा उन्होंने बताया की कुछ स्थानीय लोगों ने उनसे ये शिकायत की थी की माओवादियों ने इस प्रदर्शन पर उन्हें जबरदस्ती बैठने को कहा था.

जब स्थानीय लोग परेशान हो गए तो उन्होंने प्रदर्शन स्थल में बनी झोपड़ियां हटा दी.

इस बारे में कोऑर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स ऑर्गनाइजेशन की 2018 की एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट बताती है की एटापल्ली में खनन कंपनी, स्थानीय प्रशासन और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल सभी एक साथ काम करते हैं.

इस सिलसिले में कम्युनिष्ट पार्टी (माओवादी) ने भी एक बयान जारी किया है. इस बयान में दावा किया गया है कि गढ़चिरौली पुलिस और सी-60 कमांडो ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर अचानक हमला किया था.

इस बयान में कहा गया है कि आम आदिवासी गढ़चिरौली और अन्य इलाकों में सुरक्षाबलों के कैंपों का विरोध कर रहे हैं.

इस पूरे मामले में यह बात स्पष्ट है सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच सुरक्षा कैंपों की स्थापना का संघर्ष केंद्र में है.

माओवादी यह जानते हैं कि सुरक्षा कैंपों की स्थापना से उनके आंदोलन पर दबाव बढ़ेगा. इसलिए इन कैंपों का विरोध किया जा रहा है.

लेकिन इस तरह के आंदोलन में कई बार पुलिस की ज़रूरत से ज़्यादा बल प्रयोग के आरोप भी निराधार नहीं माने जा सकते हैं.

इसलिए यह ज़रूरी है कि पुलिस की ज़्यादतियों के आरोपों की भी निष्पक्ष जांच की जाए.

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