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तेलंगाना: पोडु खेती के मुद्दे पर वन विभाग के खिलाफ़ राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई की मांग

इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग के सामने उठाया गया है.

तेलंगाना वन विभाग द्वारा राज्य के मंचेरियल जिले के एक आदिवासी गांव में आदिवासी किसानों के घरों को तोड़ने का प्रयास किए जाने के कुछ दिनों बाद, तेलंगाना आदिवासी अधिवक्ता संघ (Telangana Adivasi Advocates Association – TAAA) ने एक शिकायत दर्ज कराई है.

संघ ने आदिवासी लोगों उत्पीड़न करने के लिए वन और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. इस मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग के संज्ञान में लाते हुए आदिवासी वकीलों ने कहा कि पांच साल से लगातार तेलंगाना के किसानों को वन विभाग द्वारा परेशान किया जा रहा है.

पिछले हफ्ते कवल टाइगर रिजर्व (केटीआर) के हिस्सों के साथ बसे दांडेपल्ली मंडल के कोयापोचागुडेम गांव में, वन विभाग के कर्मचारियों ने विवादित वन भूमि पर किसानों द्वारा बनाई गई झोपड़ियों को तोड़ने का प्रयास किया था. कर्मचारियों ने आरोप लगाए था कि किसान जंगल को नष्ट कर रहे हैं.

उस दिन आदिवासी किसानों ने वन अधिकारियों का कड़ा विरोध किया था, जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे. साइट के कुछ वीडियो में महिलाओं को मिर्च पाउडर और डंडों से जवाबी कार्रवाई करते हुए दिखाया गया, जबकि एक व्यक्ति ने खुद पर पेट्रोल डाला और खुद को आग लगाने की धमकी दी.

जवाबी कार्रवाई में पुलिस और वन अधिकारियों ने महिलाओं सहित कई आदिवासी किसानों को गिरफ्तार किया. वीडियो में अधिकारियों को महिलाओं को सड़क पर घसीटते हुए भी देखा जा सकता है.

गांव के आसपास के इलाके में उस दिन काफी तनाव की स्थिति बनी रही, क्योंकि कई वन और पुलिस अधिकारी भी घायल हो गए थे.

गिरफ्तार की गई महिलाओं ने बाद में आरोप लगाया कि रिमांड पर भेजे जाने से पहले वन विभाग के कार्यालयों, जहां उन्हें रखा गया था, में उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया.

आदिवासी एडवोकेट्स ने इसी सिलसिले में राष्ट्रीय संवैधानिक निकायों को दायर की गई शिकायत में कहा है कि वन विभाग के अधिकारियों ने मंचेरियल जिला पुलिस बलों के समर्थन से कोयापोचागुडेम आदिवासी गांव में निर्दोष आदिवासी महिलाओं और किसानों पर बेरहमी से हमला किया.

शिकायत में यह भी कहा गया है कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत संबंधित विभाग के पास भूमि अधिकारों के उनके दावे लंबित होने के बावजूद आदिवासी किसानों को घर छोड़ने को कहा गया. शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि वन विभाग के अधिकारियों ने किसानों पर हमला करते हुए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है.

“कई आदिवासी महिला किसान शारीरिक और मानसिक रूप से घायल हो गईं. इससे पहले भी इसी जिले में वन अधिकारियों ने 25 से ज्यादा आदिवासी महिला किसानों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कर उन्हें सात साल से कम उम्र के बच्चों समेत आदिलाबाद जिला जेल भेज दिया था. इस तरह की घटनाएं तेलंगाना राज्य के पांचवें अनुसूचित क्षेत्रों (तत्कालीन आदिलाबाद, खम्मम और वारंगल जिलों) में हो रही हैं,” शिकायत में कहा गया है.

एडवोकेट्स ने राष्ट्रीय संस्थानों से आदिवासी गांव और उन क्षेत्रों का दौरा करने का भी आग्रह किया जहां आदिवासी लोगों और वन विभाग के अधिकारियों के बीच संघर्ष हो रहा है. इसके अलावा, घटना की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए, एसोसिएशन ने यह भी कहा कि इस मुद्दे को छोड़ने से “भविष्य में कानून व्यवस्था का मुद्दा” बन जाएगा.

इस बीच, वन विभाग ने दावा किया कि उसके अधिकारी कानून के दायरे में काम कर रहे थे, और उन्होंने आदिवासी लोगों के कब्जे में किसी भी भूमि को नहीं छुआ था. विभाग ने यह भी आरोप लगाया कि स्थानीय आदिवासी किसानों को राजस्व, वन और पुलिस अधिकारियों द्वारा सलाह देने के बावजूद पिछले साल नवंबर से इलाके में वन भूमि का अतिक्रमण हो रहा था.

अधिकारियों ने कहा कि भविष्य में भूमि का अतिक्रमण रोकने के लिए उनके पास कानून के तहत मामला दर्ज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. उन्होंने स्थानीय लोगों को भड़काकर कथित तौर पर फायदा उठाने की कोशिश करने के लिए कुछ संघों और राजनीतिक दलों की भी आलोचना की.

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