HomeAdivasi Dailyवन संरक्षण के नए नियम घातक, ग्रामसभा और आदिवासियों के अधिकार ख़त्म...

वन संरक्षण के नए नियम घातक, ग्रामसभा और आदिवासियों के अधिकार ख़त्म – बृंदा करात

अब ज़रूरी शर्तों की सूचि में ग्राम सभाओं की मंज़ूरी और अधिकारों के मामलों के निपटारे की शर्त को हटा दिया गया है. बृंदा करात ने पर्यावरण और वन मंत्री भूपेन्द्र यादव को लिखे इस पत्र में कहा है कि नए नियमों में किसी भी स्टेज पर ग्राम सभाओं, आदिवासियों या जंगल में रहने वाले समुदायों की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी.

ग्राम सभाओं, आदिवासी समुदायों और जंगल में रहने वाले अन्य समूहों के सभी अधिकारों को ख़त्म करना आपत्तिजनक, निंदनीय और अस्वीकार्य है. पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को लिखे पत्र में सीपीएम की नेता और पूर्व राज्य सभा सदस्य बृंदा करात ने ये कहा है.

सीपीएम की पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने दो दिन पहले भूपेन्द्र यादव को यह पत्र लिखा है. इस पत्र में वन संरक्षण के नियमों में बदलाव के बाद अधिसूचित किए गए वन संरक्षण नियम 2022 पर आपत्ति दर्ज कराई गई है.

पूर्व राज्य सभा सांसद ने इस पत्र में लिखा है कि नए नियमों के मंशा जंगल को कॉरपोरेट के हवाले करना है. उन्होंने उदाहरण देते हुए लिखा है कि पहले के नियमों में 100 हेक्टेयर या उससे ज़्यादा ज़मीन का इस्तेमाल बदलने का प्रावधान का ज़िक्र है. 

लेकिन नए नियमों में अब 1000 हेक्टयर या उससे ज़्यादा ज़मीन को डायवर्ट करने का प्रावधान कर दिया गया है. उन्होंने इस पत्र में याद दिलाया है कि साल 2019 जनजातीय कार्य मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) ने इन नए नियमों के सिलसिले के कई प्रवाधानों के सुझाव का विरोध किया था.

वन संरक्षण नियम 2022 ग्राम सभाओं की शक्ति को ख़त्म करते हैं.

वन संरक्षण नियमों में बदलाव पर बृंदा करात ने कहा है कि यह सरकार काफ़ी समय से ग्राम सभाओं के अधिकारों को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है. इस सिलसिले में उन्होंने कहा है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 पास होने के बाद, 2003 में बने नियमों में संशोधन किया गया था. पर्यावरण और वन मंत्रालय का 3 अगस्त, 2009 का सरकुलर साफ़ साफ़ कि सैद्धांतिक मंज़ूरी से पहले ग्राम सभा की लिखित अनुमति ज़रूरी है. 

सीपीएम की नेता ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा है कि साल 2017 में मोदी सरकार ने नियमों को कमज़ोर किया, लेकिन ग्राम सभा की अनुमति की शर्त क़ायम रही थी. 

वन संरक्षण नियम 2022 के बारे में बात करते हुए उन्होंने कई प्रावधानों पर आपत्ति दर्ज कराई है. उन्होंने कहा है कि नए नियमों के तहत मंज़ूरी दो स्टेज में दिए जाने का प्रावधान है. इसमें पहली स्टेज सैद्धांतिक मंज़ूरी देने की है और उसके बाद फ़ाइनल यानि अंतिम मंज़ूरी देने का प्रावधान है. 

लेकिन अब ज़रूरी शर्तों की सूचि में ग्राम सभाओं की मंज़ूरी और अधिकारों के मामलों के निपटारे की शर्त को हटा दिया गया है. बृंदा करात ने पर्यावरण और वन मंत्री भूपेन्द्र यादव को लिखे इस पत्र में कहा है कि नए नियमों में किसी भी स्टेज पर ग्राम सभाओं, आदिवासियों या जंगल में रहने वाले समुदायों की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी.

उन्होंने सरकार से माँग की है कि इन नियमों पर व्यापक चर्चा की ज़रूरत है. जब तक चर्चा और विचार-विमर्श की प्रक्रिया पूरी नहीं होती है इन नियमों को लागू नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने माँग की है कि वन संरक्षण के नए नियमों को संबंधित संसदीय समिति की समीक्षा के लिए भेजा जाना चाहिए.

इसके अलावा जनजातीय कार्य मंत्रालय की राय भी इन नए नियमों पर ज़रूरी है क्योंकि वो एक नोडल मंत्रालय है. 

बृंदा करात के अलावा पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भी वन संरक्षण नियम 2022 पर आपत्ति दर्ज कराई है. इसके अलावा कांग्रेस के नेता और केरल से सांसद राहुल गांधी ने भी इन नियमों को आदिवासी विरोधी बताया है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments